Title : शिव पुराण
Page : 170
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Language : Hindi
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केवल पढ़ने के लिए : यदि गुरू,पिता,नेता, स्वामी एवं पूज्यजनों की महिमा-बड़ाई देख-सुन कर शिष्य, पुत्र, अनुगामी तथा
आश्रयीजन प्रसन्न नहीं होते और शिष्य, पुत्र तथा अनुगामी की उन्नति को देखकर गुरू, पिता तथा श्रेष्ठजन संतुष्ट नहीं होते, तो इन सब में परस्पर सुन्दर व्यवहार कैसे हो सकता है। और सुन्दर व्यवहार बिना परिवार तथा समाज का सु़द्वद़ होना और परिवार तथा समाज के सदस्यों को मानसिक प्रसन्नता, निर्मलता, उत्साह एवं सुख-शांति का प्राप्त होना आकाश-कुसुम ही हो जायेगा।
ज्ञान-वैराग्य की लम्बी-चैड़ी बातें बनाने से कोई फल नही होता, जब तक व्यवहार पवित्र न बनाया गया हो। साथी लोग अपना व्यवहार पवित्र रखें या न रखें हमें अपने व्यवहार को समुज्जवल बनाए रखना चाहिए।
जिसका हृदय कोमल है, जिसके मन, वाणी, कर्म सरल हैं, जो निरंकारी, निर्मानी तथा निष्कामी है, उसी का व्यवहार पवित्र रह सकता है। जिन पुरूषो तथा देवियों के सुन्दर व्यवहार से सम्पर्क में आनें वाले लोग पवित्रता, निर्भयता तथा प्रेम की प्राप्ति करते हैं, वे संसार-सागर के रत्न, पृथ्वी के भूषण तथा समाज के प्रकाश स्तम्भ है।
अपने कर्तव्यों को न देखकर दूसरे के कर्तव्यों पर दृष्टी रखना; दूसरे के अधिकार की रक्षा न करना, अपने अधिकार की लालसा रखना; स्वयं सहन न करना दूसरे को सहाने की चेष्टा करना; अपनी कामना की पूर्ति को प्राथमिकता देना, दूसरे की विवेकपूर्ण इच्छा की भी पूर्ति न चाहना; अपने मन को न मारना, दूसरे के मनोभावों को कुचलने की चेष्टा रखना- ये सभी पवित्र व्यवहार के शत्रु है। उपर्युक्त दुर्गुण जिनके पास हैं, वे व्यवहार-कुशल नहीं हो सकते। उनके व्यवहार लोगों को सुख नहीं दे सकते। उपर्युक्त त्रुटियों को निकाल देने पर व्यवहार अपने आप पवित्र हो जायेगा।
कतिपय बातों को छोड़कर महाराज श्री राम के जीवन-व्यवहार गृहस्थों के लिए प्रकाशस्तम्भ हैं। महामना महाराज श्रीराम, महाप्राण महाराज श्रीभरत तथा महातपस्विनी श्रद्वेया मां सीता-इन सबके त्याग, तप, उदारता अत्यन्त सराहनीय हैं। राम-भरत जैसा भाई-भाई में परस्पर त्याग तथा प्रेम की भावना आ जाय तो आज ही समाज का कायापलट हो जाय।
कोई मुसलमान, ईसाई तथा अन्य लोग महाराज श्री राम का नाम सुनकर घबरा न जायं महापुरूषों का जीवन-आदर्शएक जाति, सम्प्रदाय तथा देश मात्र के लिए नहीं होता। जैसे सूर्य, चन्दªमा, पृथ्वी वायु,जल,अग्नि आदि सबके हैं, इसी प्रकार महापुरुष सबके हैं, और उनका मानवीय जीवन-आदर्श सबको समान अनुकरणीय हैं।
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महाराज श्री राम और भरत का त्याग और तप, महात्मा ईसा की क्षमा,हजरत मुहम्मद का अत्याचारों के प्रति आजीवन जूझने का साहस,महात्मा बु़द्व की करूणा तथा त्याग, स्वामी दयानन्द की अंधविश्वास के प्रति अनास्था तथा सुधार-दृष्टि, स्वामी विवेकानन्द की समन्वयात्मक दृष्टि, गोस्वामी श्री तुलसीदास जी की अनूठी काव्य-कला तथा विनम्र सुधार-भावना और सदगुरु कबीर का पक्षपात, अज्ञान, अंधरूदि़यों के प्रचार की निर्भय ज्वलंत दृष्टि-इन सबको हम एक ही साथ क्यों न स्वीकार लें!