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3 Successful Businessman Story in Hindi | सफल व्यवसायीयों की कहानी

यहां कुछ ऐसे उद्यमियों की कहानियां दी गई हैं जिन्होंने हाल के वर्षों में अपने व्यवसाय में बड़ी सफलता हासिल की है। इन कहानियों से आपको न सिर्फ प्रेरणा मिलेगी बल्कि अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने में भी मदद मिलेगी।

1. दो साल में 100 करोड़ का मुकाम - Tanuj Shori


Successful Businessman Story in Hindi

जहां रियल एस्टेट से संबंधित कई स्टार्टअप्स ब्रेकईवन हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं महज 22 माह पुरानी फर्म स्क्वायर यार्ड्स ने लाभ कमाना शुरू कर दिया है। कंपनी को इतने कम वक्त में मिली सफलता के पीछे इसके संस्थापक तनुज शौरी की अनूठी सोच है।


तनुज ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे आंत्रप्रेन्योरशिप की दुनिया में कदम रखेंगे। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक आम युवा की तरह नौकरी ली। नौकरी के दौरान ही मिले एक आइडिया ने उन्हें आंत्रप्रेन्योरशिप की राह अपनाने के लिए प्रेरित किया।


दरअसल, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, लखनऊ से ग्रेजुएशन करने के बाद तनुज ने लेहमैन ब्रदर्स और नॉमूरा के साथ अमेरिका, भारत और सिंगापुर जैसे देशों में आठ साल तक काम किया। इस दौरान उन्होंने बैंकिंग, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, कमॉडिटीज, रिटेल और लग्जरी ब्रांड्स जैसे क्षेत्रों में काम का अनुभव लिया।



रियल एस्टेट में दिखा बिजनेस का अवसर


नौकरी के दौरान हांगकांग में रहते हुए उन्होंने भारत के रियल एस्टेट में निवेश करने का मन बनाया। लेकिन एनआरआई होने के नाते इस काम में उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि मीलों दूर बैठकर भारत में प्रॉपर्टी खरीदना एक मुश्किल और जटिल प्रक्रिया है। इसकी कई वजहें उन्हें नजर आई। पहली यह कि इस स्पेस में ऐसे प्रोफेशनल प्लेयर्स का अभाव था जो उन्हें निवेश की इस प्रक्रिया में मदद या मार्गदशर्न प्रदान कर सके या निष्पक्ष सलाह और सही जानकारी मुहैया करवा सके। ऐसे में अपने देश से बाहर रहते हुए देश में निवेश करना काफी चुनौतीपूर्ण काम है। अपने कुछ एनआरआई दोस्तों से बात करने पर तनुज ने जाना कि वे भी ऐसी समस्याओं का सामना कर चुके हैं। भारतीय रियल एस्टेट में इस गैप को देखकर तनुज को इसमें बिजनेस का अवसर नजर आया और उन्होंने आंत्रप्रेन्योर बनने का फैसला कर लिया।


  • Steve Jobs की सफलता की कहानी

रिसर्च बनी बिनेस की बुनियाद


बिजनेस शुरू करने के फैसले पर आगे बढ़ते हुए तनुज ने 2013 में 1 लाख डॉलर के निवेश के साथ कंपनी स्क्वायर यार्ड्स की नींव रख दी। शुरूआती दौर में तनुज ने भारत के शीर्ष 10 शहरों के विभिन्न माइक्रो मार्केट्स में रियल एस्टेट पर गहराई से रिसर्च करनी शुरू की और इसमें सामने आए तथ्यों को एनआरआई समुदाय के साथ साझा करना शुरू किया। कुछ समय बाद तनुज ने देखा कि एनआरआई की मांग में इजाफा हो रहा है तो उन्होंने भारत के मेट्रो शहरों में अपने ऑफिस स्थापित कर अपने बिजनेस को विस्तार देना शुरू किया। साथ ही उन्होंने चोटी के डेवलपर्स के साथ भी संबंधों का निर्माण करना शुरू किया।

कई उतार चढ़ाव किए पार


कामयाबी के मुकाम तक पहुंचने में स्क्वायर यार्ड्स का सामना भी कुछ ऐसे ही चुनौतियों के साथ हुआ जो आमतौर पर सभी स्टार्टअप्स के सामने आती हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या थी शुरूआती दौर में कंपनी को सही टैलेंट मिलना। लेकिन अपने आठ वर्षों की नौकरी के दौरान मिले अनुभव से तनुज यह बात बखूबी जानते थे कि यह चुनौती किसी भी इडस्ट्री के सामने आ सकती है। उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें कुशल बनाया। यही नहीं उन्होंने कर्मचारियों को काम की पुरी आजादी भी प्रदान की और इस आजादी के साथ आने वाली जिम्मेदारियों को समझने की क्षमता भी। तनुज अच्छी तरह जानते थे कि तरक्की आपके टैलेंट, कड़ी मेहनत और प्रोत्साहन पर निर्भर करती है।

पाया मजबूत मुकाम


प्राइमरी रियल एस्टेट को बेचने के लिए अपनाई गई तनुज की अलग रणनीति ने उनके वेंचर को बहुत ही कम समय में एक कामयाब मुकाम पर पहुंचा दिया है। अपनी शुरूआत के महज 22 माह के अंतराल में कंपनी पांच अलग-अलग देशों और भारत के 14 शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी है। यही नहीं इतने कम वक्त में 900 कर्मचारियों की मजबूत टीम भी खड़ी करने में कामयाब हो चुके है। आंकड़ों की बात करें तो इस वित्तीय वर्ष में स्क्वायर यार्ड्स का रेवेन्यू 100 करोड़ डॉलर को पार कर चुका है। तनुज अपनी इस तरक्की से खुश हैं और दावा करतें हैं कि उनकी कंपनी देश में रेजीडेंशियल प्रॉपर्टी के लिए सबसे बड़ी आर्गनाइज्ड रियल एस्टेट एडवाइजरी फर्म बन चुकि है और सिंगापुर, हांगकांग, दुबई, अबु धाबी और लंदन के एनआरआई मार्केट में वर्चुअल मोनोपॉली हासिल कर चुकि है। भविष्य की योजना के बारे में बताते हुए तनुज कहते हैं कि वित्तीय वर्ष 2016 के अंत तक कंपनी का लक्ष्य 1,00,000 ब्रोकर्स तक पहुंचने और 100 से अधिक संस्थागत टाईअप्स करने का है।


2. इंजीनियर ने दिया लाइफस्टाइल प्रॉडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (Pepperfry Success Story)


businessman story in hindi
आशीष शाह ने पेपरफ्राय डॉट कॉम की नींव जनवरी 2012 में रखी। अपने इस वेंचर की शुरूआत करने से पहले आशीष ने सेल्स ऑपरेशन, बिजनेस डेवलपमेंट, सप्लाई चेन एंड लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में तकरीबन 15 वर्षों तक काम किया। असल में यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे से केमिकल इंजीनियरिंग और फिर गाजियाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी से एडवांस डिप्लोमा इन मटीरियल्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद अमित ने 1998 में अपने कॅरियर की शुरूआत ट्रैडॉक्स पिग्मेंट्स एंड केमिकल्स के साथ ब्रांच सेल्स मैनेजर के तैर पर की। यहां कुछ समय तक काम करने के बाद आशीष ने कंपनी बदली और यहां एक साल तक काम किया। इसी बीच उन्हें कॉमर्स वन इंडिया प्रावेट में चार साल तक और फिर बाजी डॉट कॉम में नौकरी की।

इन सभी कंपनियों में काम करके आशीष ने काफी अनुभव हासिल किया। इसी दौरान आशीष के लिए जीवन का टर्निंग पॉइटं आया जब उन्होंने अपना सबसे बड़ा कदम उठाते हुए ईबे मोटर्स इंडिया में सेल्स  एंड ऑपरेशन के हेड के तौर पर जॉइन कर लिया। ईबे से पहले जहां आशीष ने लॉजिस्टिक्स व सप्लाई चेन से जुड़ा अनुभव हासिल किया वहीं ईबे में अपने स्टिंट के दौरान उन्होंने बिजनेस को सफल बनाने के लिए जरूरी गुर सीखे। उनके अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए कंपनी ने उन्हें बहुत ही कम वक्त में सेल्स एंड ऑपरेशन हेड से बिजनेस हेड- ईबे मोटर्स (भारत व फिलिपींस) के पद पर और फिर हेड-सोशल शॉपिंग के पद पर पदउन्ती कर दिया। आशीष ने ईबे में तकरीबन 10 साल तक काम किया। यहां उनका नाम ऐसे चंद लोगों में शुमार हुआ जिन्होंने इस कंपनी को शून्य से 100 मिलियन डॉलर के बिजनेस के रूप् में परिवर्तित करने और देश के सबसे बड़े ऑटोमोबाइल ट्रांसेक्शन मार्केटप्लेस के तौर पर पहचान दिलाने का काम किया।

10 साल के अनुभव का फल


इस तरक्की ने आशीष को अपने अंदर की ऐसी खूबियों का एहसास दिलाया जो उन्हें पहले पता नहीं थीं। इसेसे न केवल  उनमें आत्मविश्वास जागा बल्कि अपना बिजनेस शुरू करने की प्रेरणा और प्रोत्साहन भी मिला। ईबे में 10 साल के अनुभव और ट्रेडिंग की ट्रिक्स की समझ हासिल करने के बाद आशीष ने एक और बड़ा कदम उठाने का फैसला किया। वह फैसला था अपना बिजनेस शुरू करना। आशीष की इस सोच के बारे में जब ईबे में उनके सहयोगी अम्बरीश मूर्ति ने जाना तो उन्होंने भी आशीष का साथ देने का फैसला कर लिया।बचत के साथ की शुरूआत बिजनेस वेंचर के लिए लाइफस्टाइल सेक्टर को चुना। इस सेक्टर को चुनने के पीछे बड़ी वजह यह थी कि विशाल इंडस्ट्री होने के बावजूद लाइफस्टाइल सबसे बड़ा असंगठीत क्षेत्र था। उन्होंने देखा कि लोग लाइफस्टाइल प्रॉडक्ट्स पर बड़ी राशि खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन खरीदारी आज भी पांरपरिक तरीकों से करते हैं। दूसरी वजह यह थी कि इस सेक्टर में ऑनलाइन ज्यादा काम नहीं हो रहा था जिसके कारण इसमें बिजनेस (business) की प्रबल संभावनाएं नजर आ रही थीं। इस गैप को समझने के बाद आशीष ने लाइफस्टाइल प्रॉडक्ट्स और होम मर्चेंडाइज में ऑनलाइन बिजनेस शुरू करने की ठानी और अपनी बचत के निवेश के साथ पेपरफ्राय डॉट कॉम की नींव रख दी।

पहले ही महीने में उम्मीद से ज्यादा बिजनेस


जुलाई 2011 में अस्तित्व में आई पेपरफ्राय ने अपने बिजनेस की शुरूआत जनवरी 2012 में की और देश के सूक्ष्म उघोगों, कारीगरों और मशहूर ब्रांड्स के फर्नीचर और होम डेकोर प्रॉडक्ट्स ऑनलाइन उपलब्ध करवाने शुरू किए। शुरूआत के एक ही महीने के अंदर उन्होंने उम्मीद से कहीं ज्यादा बिजनेस किया। समय के साथ बिजनेस बढ़ता रहा और वर्ष 2014-2015 में कंपनी की ग्रोथ 350 प्रतिशत रही। यही नहीं आज भारत सहित 12 देशों के 6,50,000 कस्टमर्स के साथ पेपरफ्राय का करोबार  लगातार कढ़ रहा है। इस ग्रोथ को देखते हुए आशीष आशा कर रहे हैं कि 2015 के अंत त कवे 1000 करोड़ के टर्नओवर को हासिल कर लेंगे।

चुनौतियों से भरा सफर


पेपरफ्राय की स्थापना से लेकर सफल होने तक आशीष को कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव और सप्लाई चेन की खामियां सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप् में सामने आईं। आशीष कहते हैं कि ई-कॉमर्स इंडस्ट्री की वृद्धी में यह एक बड़ी बाधा है। इसके चलते देश के ऐसे कोने तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है जहां ऑनलाइन कस्टमर्स का एक बड़ा हिस्सा रहता है। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद आशीष अपने करोबार को बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।


3. रेस्टोरेंट ने लेट की खाने की डिलिवरी तो बना दी - डेल्हीवरी


hindi businessman story

दिल्ली में पले-बढ़े साहिल ने वहीं के सेंट जेवियर हाई स्कूल से शिक्षा पूरी करने के बाद कर्नाअक के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। साहिल ने बेंगलुरू से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से फाइनेंस में न सिर्फ पोस्ट ग्रेजुएशन किया बल्कि ऑल राउंड गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे। यही नहीं साहिल ने पढ़ाई के साथ-साथ काम का तजुर्बा हासिल करने के लिए मेकेनिकल इंजीनियरिंग के दौरान रिसर्च इंटर्न के तौर पर यूएस की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में चार महीने काम किया। दो वर्ष बाद उन्होंने आईआईएम-बी में भी लंदन की बैन एंड कंपनी में तीन माह का समर एसोसिएट इंटर्नशिप की। इसके पूरी होने के बाद साहिल ने आईआईएम से पढ़ाई पूरी की और बैन एंउ कंपनी में ही फुल टाइम एसोसिएट कंसल्टेंट जॉइन कर लिया। अगले एक वर्ष में साहिल प्रमोट होकर सीनियर एसोसिएट कंसल्टेंट बन गए। तरक्की के साथ ही उनकी जिम्मेदारियों के क्षेत्र में भी विस्तार हुआ और उन्हें प्राइवेट इक्विटी, टेलकॉम और हेल्थकेयर जैसे सेक्टर्स सौंपे गए। साहिल की परफॉर्मेंस को देखते हुए जल्द ही उन्हें कंसल्टेंट की जिम्मेदारी दे दी गई।

नौकरी के दौरान ही तलाशा बिजनेस आइडिया


इसी नौकरी के दौरान साहिल की मुलाकात सूरज सहारन और मोहित टंडन से हुई। अपनना वेंचर शुरू करने में दिलचस्पी के चलते ये तीनों दोस्त बन गए। वक्त के साथ वेंचर की शुरूआत का विचार मजबूत होता गया और एक कारगर आइडिया की तलाश होने लगी। इसी के चलते उन्हें नौकरी से छह महीने छुट्टी लेने का फैसला लिया। उन्हीं छुट्टियों में एक रात जब साहिल और सूरज ने गुड़गांव स्थित एक रेस्टोरेंट से ऑनलाइन खाना ऑनलाइन खाना ऑर्डर किया तो इसकी डिलिवरी में हुई परेशानी को देखकर उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया कि भारतीय ई कॉमर्स में डिलिवरी सुविधा में बड़ी कमी है और रेस्टोरेंट्स के लिए डिलिवरी नेटवर्क के लिए कोई ऑनलाइन या फिजिकल मॉडल भी नहीं है। इसी कमी में उन्हें अपना बिजनेस आइडिया मिल गया। दोनों ने रेस्टोरेंट के मालिक से मुलाकात की और डिलिवरी की समस्या सुलझाने का प्रस्ताव दिया। यहीं से डेल्हीवेरी का जन्म हुआ। आइडिया को बिजनेस में बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई और बहुत ही कम समय में जरूरी तैयारी पूरी हो गई। अब वक्त डिलिवरी बॉयज की हायरिंग का था। इसी बीच साहिल की मुलाकात उस रेस्टोरेंट के मालिक से हुई जहां से वे अक्सर खाना ऑडर किया करते थे। मालिक के साथ बातचीत में उन्हें मालूम हुआ कि वह रेस्टोरेंट बंद करके अपने स्टाफ को दूसरी जगह नियुक्त करने की तैयारी कर रहा है। यह जानकर साहिल ने उन कर्मचारियों को हायर करने का प्रस्ताव रख दिया।


डिलिवरी के मॉडल ने दिलाया बिजनेस


अपनी बचत और अर्बनटच डॉट कॉम के अभिषेक गोयल के निवेश के साथ साहिल ने डेल्हीवरी की शुरूआत गुड़गांव में 250 वर्गफीट के एक कॉर्पोरेट आफिस से की। शुरूआत के समय उनके पास कुल दस लागों की टीम थी जिनमें चार डिलिवरी बॉयज थे। अपने बिजनेस को विस्तार देते हुए उन्होंने लोकल रेस्टोरेंट्स के साथ हाथ मिलाना शुरू किया और उनके ऑर्डर को आधे घंटे के अंदर पहुंचाने का वादा भी किया। डेल्हीवरी का मॉडल काफी पसंद किया गया और बहुत कम समय में उन्हें गुड़गांव में ही 100 आर्डर रोज मिलने लगे। अभिषेक गोयल को भी डेल्हीवरी का काम अच्छा लगा और उन्होंने अपने पैकेज डिलिवरी का आर्डर भी साहिल को सौंप दिया। यहीं से डेन्हीवरी के खाते में पहला ई-कॉमर्स क्लाइंट शामिल हो गया।

संभावनाओं को परखा


ई-कॉमर्स से मिलने वाले काम को देखकर साहिल और उनके दोस्तों ने गहराई से मार्केट की पड़ताल की और पाया कि इस क्षेत्र में उनके लिए बड़े अवसर मौजूद हैं, और रेस्टोरेंट डिलिवरीज का काम वे बाद में भी कर सकते हैं। अपनी इसी सोच के साथ उन्होंने जनवरी 2011 में डेल्हीवरी को पूरी तरह ई-कॉमर्स पर केंद्रित कर दिया। वर्ष के अंत त कवे दिल्ली और एनसीआर में अपने तीन सेंटर्स के साथ 5 ई-कॉमर्स क्लाइंट्स के लिए 500 शिपमेंट्स डिलिवर कर रहे थे। कुछ ही वक्त बाद उन्होंने फंडिंग के साथ अपनी स्टोरेज सेवाओं का विस्तार किया और दिल्ली के साथ चेन्नई में भी अपना ऑपरेशन शुरू किया।

कम समय में पाई बड़ी सफलता


स्टोरेज के साथ कंपनी जल्द ही अपना कारोबार देश के 31 शहरों में फैलाने में कामयाब हो गई। यहां से साहिल और उनके साथियों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पांच साल पहले पांच को-फाउंडर्स और मुट्ठी भर डिलिवरी बॉयज के साथ शुरू हुई कंपनी वर्तमान में 3200 कर्मचारियों की अपनी टीम के साथ देश के 175 शहरों के साथ-साथ मिडिल ईस्ट और साउथ एशिया में अपने करोबार कर रही है। यही नहीं इसी वित वर्ष में कंपनी ने 220 करोड़ का टर्नओवर पार कर लिया है।

  • जीवन और व्यापार में समय-प्रबंधन का महत्व

कामयाबी की राह में आईं चुनौतियां भी


कंपनी की शुरूआत में साहिल और उनके साथियों को कई मुश्किलें भी हुई। कई लोगों ने इनसे कहा कि यह आइडिया चलने वाला नहीं है और बिजनेस बीच में ही बंद करना पड़ जाएगा। वहीं कुछ लोगों ने उनसे जुड़ने के लिए इनकार करते हुए कहा कि वे लॉजिस्टिक्स का काम इन-हाउस ही कर लेंगे क्योंकि आपका शुल्क काफी ज्यादा है। कुछ फैसलों ने भी राह में बधाएं खड़ी की। लेकिन इन्हीं फैसलों से उन्होंने काफी सीखा और प्रयास जारी रखते हुए सफलता का मुकाम हासिल किया।

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