दोस्तों, दुनिया में समय-समय पर ऐसी महान आत्माओं का जन्म हुआ हैं, जिनका जीवन एक प्रकाश-स्तंभ के समान है, जो निरन्तर अपनी रौशनी से सारे जग को प्रकाशित करता रहेगा। ऐसे ही एक प्रकाश-पुंज थे महान कर्मयोगी स्वामी विवेकानन्द जी। यहां उन्हीं के जीवन से जुड़ी कुछ प्रेरक कहानियों को प्रस्तुत किया जा रहा हैं। हमें आशा है, कि ये कहानियाँ आपके जीवन को एक नई दिशा देंगी।
दूसरों के पीछे मत भागो
एक बार स्वामीजी अपने आश्रम में एक छोटे पालतू कुत्ते के साथ टहल रहे थे। तभी अचानक एक युवक उनके आश्रम में आया और उनके पैरों में झुक गया और कहने लगा - "स्वामीजी मैं अपनी जिंदगी से बड़ा परेशान हूं। मैं प्रतिदिन पुरुषार्थ करता हूं लेकिन आज तक मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाया। पता नहीं ईश्वर ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है, जो इतना पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी मैं नाकामयाब हूं।"
युवक की परेशानी को विवेकानंद जी तुरंत समझ गए।
उन्होंने युवक से कहा - "भाई! थोड़ा मेरे इस कुत्ते को कही दूर तक सैर करा दो। उसके बाद मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा।"
उनकी इस बात पर युवक को थोड़ा अजीब लगा लेकिन दोबारा उसने कोई प्रश्न नहीं किया और कुत्ते को दौड़ाते हुए आगे निकल पड़ा।
बहुत देर तक कुत्ते को सैर कराने के पश्चात जब युवक आश्रम में पहूंचा तो उन्होंने देखा कि युवक के चेहरे पर अभी भी तेज है, लेकिन वह छोटा कुत्ता थकान से जोर-जोर से हांफ रहा था।
इस पर स्वामीजी ने पूछा - "क्यों भाई, मेरा कुत्ता इतना कैसे थक गया? तुम तो बड़े शांत दिख रहे हो। क्या तुम्हे थकावट नहीं हुई?"
युवक बोला - "स्वामीजी मैं तो धीरे-धीरे आराम से चल रहा था लेकिन यही बड़ा अशांत था। रास्ते में मिलने वाले सारे जानवरों के आगे-पीछे दौड़ रहा था। इसीलिए एक जैसी दूरी तय करने के बावजूद भी यह इतना थक गया।"
तब विवेकानन्द जी ने कहा - "भाई, तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर भी तो यही हैं! तुम्हारा लक्ष्य तुम्हारे अगल-बगल है। वो तुमसे कही दूर थोड़ी है। परन्तु तुम अपने लक्ष्य का पीछा करना छोड़ अन्य लोगों के आगे-पीछे दौड़ते रहते हो और इस तरह तुम जिस चीज़ को पाना चाहते हो उससे दूर चले जाते हो।"
युवक उत्तर से संतुष्ट हो गया और अपनी गलती को सुधारने में लग गया।
दोस्तों, क्या आपको नहीं लगता आज हम भी इसी कहानी के कुत्ते के समान दूसरों को follow करने में लगे हुए है। आपका मित्र फैशन डिजाइनर है, तो आप भी वही बनना चाहते है। भले ही उसमें आपकी कोई रूचि हो या नहीं। ऐसा करके हम अपनी प्रतिभा को खो बैठते है और जिंदगी भर संघर्ष करते करते रहते है। इसलिए दोस्तों, दूसरों को follow न करें। अपना लक्ष्य खुद बनाये और उसके पीछे पूरे लगन से लग जाए।
स्वामीजी और विदेशी महिला
स्वामीजी से जुड़ा एक रोचक प्रसंग है। शिकागो विश्व-धर्म सम्मेलन के भाषण के बाद विवेकानन्द जी विदेशों में काफी लोकप्रिय हो गए थे। उनके वेदांत दर्शन से प्रभावित होकर हजारों लोग उनके शिष्य बन गए थे।
उसी समय एक विदेशी महिला उनसे भेंट करने भारत आई।
काफी देर बात करने के बाद वह विदेशी महिला विवेकानन्द जी से बोली - "स्वामीजी क्या आप मुझसे शादी करेंगे?"
इस पर वे चौंक गये और मुस्कुराने लगे।
फिर बोले - "देवी ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मैं ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा हूं।"
इस पर महिला ने कहा - "हे स्वामी! मुझे आप के समान ही प्रवीण बालक चाहिए। जो आगे चलकर विश्व को एक नई दिशा दे और अपनी माता का नाम प्रसिद्ध करें।"
इस पर स्वामीजी दोनों हाथ जोड़कर उसके सामने झूक गये और बोले - "हे देवी, चलिए आज से ही मैं आपको अपनी माता मान लेता हूं। इस तरह आपको मेरे जैसा तेजस्वी बालक भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य धर्म के पालन में भी कोई बाधा नहीं आएगी।"
स्वामीजी का यह उत्तर सुनते ही वह महिला भाव-विभोर हो गई तथा उनके पैरों में गिर पड़ी। वे सचमुच महान थे।
एकाग्रता का रहस्य
स्वामी विवेकानंद और जर्मनी के संस्कृत भाषा के विद्वान प्रोफेसर पाल डायसन संस्कृत साहित्य पर चर्चा कर रहे थे। किसी कारणवश प्रोफेसर साहब को उठकर बाहर जाना पड़ा।
स्वामीजी पास पड़ी एक किताब उठाकर उसके पन्ने पलटने लगे। वह कविताओं का संकलन था। वे उसे पढ़ने में लीन हो गए। थोड़ी देर बाद प्रोफेसर डायसन अपना काम निबटाकर लौट आए। लेकिन स्वामीजी किताब पढ़ने में इस कदर खोए थे कि डायसन के लौटने का उन्हें पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद डायसन को लगा कि स्वामीजी जान-बूझकर उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं। पूरी किताब पढ़ने के बाद जब स्वामीजी ने अपनी गर्दन ऊपर उठाई तो डायसन को सामने बैठकर इंतजार करता पाया। वे बोले - 'क्षमा कीजिएगा, मैं पढ़ रहा था। इसलिए आप कब आए, इसका पता ही नहीं चला।'
स्वामी विवेकानंद द्वारा माफी मांगने के बावजूद डायसन के मन का मलाल खत्म नहीं हुआ। उन्हें यही लगता रहा कि स्वामीजी ने जान-बूझकर उनकी उपेक्षा की। स्वामी विवेकानंद उनके मन का भाव जान गए। उन्हें दुख हुआ। डायसन को यकीन दिलाने के लिए वे किताब की कुछ कविताएं सुनाने लगे। लेकिन इसका उलटा असर हुआ। कविता की पंक्तियां सुनने के बाद डायसन ने कहा - 'लगता है, आपने यह किताब पहले भी पढ़ी है।'
डायसन के इस तरह सोचने का कारण यह था कि 200 पन्नों वाली किताब कोई व्यक्ति इतने कम समय में नहीं पढ़ सकता था। वे बोले - 'किताब की सारी कविताएं आधे घंटे में याद हो जाना मुमकिन नहीं है।'
इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा - "मिस्टर डायसन!
जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है - एकाग्रता। एकाग्रता जितनी अधिक होगी, आपका समय उतना ही कम लगेगा या काम का परिणाम उतना ज्यादा होगा।"