शिव खेड़ा विश्व के उन प्रभावशाली प्रेरक प्रवक्ताओं में से एक है, जिन्होंने हजारों लोगों की जिंदगी अपने व्यावहारिक बुद्धि और गहरे विश्वास से बदलने में मदद की हैं। उन्होंने लोगों को अपने नजरिए को दोबारा देखने के लिए प्रेरित किया हैं। यहां उनकी प्रसिद्ध पुस्तक जीत आपकी (You Can Win) में प्रकाशित कुछ सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायिक कहानियाँ दी जा रही है। जिन्हें स्वयं शिव खेड़ा द्वारा संकलित किया गया हैं। ये छोटी-छोटी कहानियाँ लोगों को उनकी सच्ची क्षमता का अहसास कराती हैं।
हीरों से भरा खेत
हफीज अफ्रीका का एक किसान था। वह अपनी जिंदगी से खुश और संतुष्ट था। हफीज खुश इसलिए था कि वह संतुष्ट था। वह संतुष्ट इसलिए था क्योंकि वह खुश था। एक दिन एक अक्लमंद आदमी उसके पास आया। उसने हफीज से कहा, ‘अगर तुम्हारे पास अंगूठे जितना बड़ा हीरा हो, तो तुम पूरा शहर खरीद सकते हो, और अगर तुम्हारे पास मुट्ठी जितना बड़ा हीरा हो तो तुम अपने लिए शायद पूरा देश ही खरीद लो।‘ वह अक्लमंद आदमी इतना कह कर चला गया। उस रात हफीज सो नहीं सका। वह असंतुष्ट हो चुका था, इसलिए उसकी खुशी भी खत्म हो चुकी थी।
दूसरे दिन सुबह होते ही हफीज ने अपने खेतों को बेचने और अपने परिवार की देखभाल का इंतजाम किया, और हीरे खोजने के लिए रवाना हो गया। वह हीरों की खोज में पूरे अफ्रीका में भटकता रहा, पर उन्हें पा नहीं सका। उसने उन्हें यूरोप में भी दूंढ़ा, पर वे उसे वहां भी नहीं मिले। स्पेन पहुंचते-पहुंचते वह मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्तर पर पूरी तरह टूट चुका था। वह इतना मायूस हो चुका था कि उसने बार्सिलोना नदी में कूद कर खुदखुशी कर ली।
इधर जिस आदमी ने हफीज के खेत खरीदे थे, वह एक दिन उन खेतों से होकर बहने वाले नाले में अपने ऊंटों को पानी पिला रहा था। तभी सुबह के वक्त उग रहे सूरज की किरणें नाले के दूसरी और पड़े एक पत्थर पर पड़ी, और वह इंद्रधनुष की तरह जगमगा उठा। यह सोच कर कि वह पत्थर उसकी बैठक में अच्छा दिखेगा, उसने उसे उठा कर अपनी बैठक में सजा दिया। उसी दिन दोपहर में हफीज को हीरों के बारे में बताने वाला आदमी खेतों के इस नए मालिक के पास आया। उसने उस जगमगाते हुए पत्थर को देख कर पूछा, ‘क्या हफीज लौट आया?‘ नए मालिक ने जवाब दिया, ‘नहीं, लेकिन आपने यह सवाल क्यों पूछा?‘ अक्लमंद आदमी ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह हीरा है। मैं उन्हें देखते ही पहचान जाता हूं।‘ नए मालिक ने कहा, ‘नहीं, यह तो महज एक पत्थर है। मैंने इसे पाले के पास से उठाया है। आइए, मैं आपको दिखता हूं। वहां पर ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े हुए हैं। उन्होंने वहां से नमूने के तौर पर बहुत सारे पत्थर उठाए, और उन्हें जांचन-परखने के लिए भेज दिया। वे पत्थर हीरे ही साबित हुए। उन्होंने पाया कि उस खेत में दूर-दूर तक हीरे दबे हुए थे।
इससे हमें सीख मिलते हैं-
- जब हमारा नजरिया सही होता है, तो हमें महसूस होता है कि हम हीरों से भरी हुई जमीन पर चल रहे हैं। मौके हमेशा हमारे पावों तले दबे हुए हैं। हमें उनकी तलाश में कहीं जाने की जरूरत नहीं है। हमें केवल उनको पहचान लेना है।
- दूसरे के खेत की घास हमेंशा हरी लगती है।
- जिन्हें मौके की पहचान नहीं होती, उन्हें मौके का खटखटाना शोर लगता है।
सोने की तलाश में
एंड्रयू कार्नेगी अपने बचपन के दिनों में ही स्कॉटलैंड से अमरीका चले गए। उन्होंने छोटे-मोटे कामों से शुरूआत की, और आखिरकार अमरीका में स्टील बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी के मालिक बन गए। एक ऐसा वक्त आया जब उनके लिए 43 करोड़पति काम करते थे। करोड़ रूपये इस जमाने में भी बहुत होते हैं लेकिन सन् 1920 के आसपास तो उनकी बहुत ज्यादा कीमत थी।
थ्कसी ने कार्नेगी से पूछा, ‘आप लोगों से कैसे पेश आते हैं?‘ उन्होंने जवाब दिया- 'लोगों से पेश आना काफी हद तक सोने की खुदाई करने जैसा ही है। हमको एक तोला सोना खोद निकालने के लिए कई टन मिट्टी हटानी पड़ती है। लेकिन खुदाई करते वक्त हमारा ध्यान मिट्टी पर नहीं, बल्कि सोने पर रहता है।
एंड्रयू कार्नेगी के जवाब में एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश छिपा हुआ है।
हो सकता है कि किसी इंसान, या किसी हालात में कोई अच्छी बात साफ तौर पर न दिखाई दे रही हो। ऐसी हालत में हमें उसे गहराई में जाकर तलाशना होगा।
हमारा मकसद क्या है? सोना तलाशना। अगर हम किसी इंसान, या किसी चीज में कमियां ढूंढ़ेंगे, तो हमको ढेरों कमियां दिखाई देंगी। लेकिन हमें किस चीज की तलाश है- साने की या मिट्टी की? कमियां ढूंढ़ने वाले तो स्वर्ग में भी कमियां निकाल देगे। अधिकतर लोगों को वही मिलता है, जिसकी उन्हें तलाश होती है।
विल्मा रूडोल्फ़ की कहानी
विल्मा रूडोल्फ़ का जन्म टेनेसेसी के एक ग़रीब परिवार में हुआ था। चार साल की उम्र में उसे डबल निमोनिया और काला बुखार ने गंभीर रूप से बीमार कर दिया। इनकी वजह से उसे पोलियो हो गया। वह पैरों को सहारा देने के लिए बै्रस पहना करती थी। डॉक्टरों ने तो यहाँ तक कह डाला था कि वह जिंदगीभर चल-फिर नहीं सकेगी। लेकिन विल्मा की माँ ने उसकी हिम्मत बढ़ाई और कहा कि ईश्वर की दी हुई क्षमता, मेहनत और लगन से वह जो चाहे कर सकती है। यह सुन कर विल्मा ने कहा कि वह इस दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनना चाहती है। नौ साल की उम्र में डॉक्टरों के मना करने के बावजूद विल्मा ने ब्रैस को उतार कर पहला क़दम उठाया, जबकि डॉक्टरों ने कहा था कि वह कभी चल नहीं पाएगी। 13 साल की होने पर उसने अपनी पहली दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे पीछे रही। उसके बाद वह दूसरी, तीसरी, चौथी दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रही और हमेशा आखि़री स्थान पर आती रही। वह तब तक कोशिश करती रही, जब तक वह दिन नहीं आ गया, जब वह फ़र्स्ट आई।
15 साल की उम्र में विल्मा टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी गई, जहाँ वह एड टेम्पल नाम के कोच से मिली। विल्मा ने उन्हें अपनी यह ख़्वाहिश बताई कि 'मैं दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनना चाहती हूँ।‘ तब टेम्पल ने कहा, ‘तुम्हारी इसी इच्छाशक्ति की वजह से तुम्हें कोई भी नहीं रोक सकता और साथ में मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा।'
आखि़र वह दिन आया जब विल्मा ने ओलंपिक में हिस्सा लिया। ओलंपिक में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में मुकाबला होता है। विल्मा का मुक़ाबला जुत्ता हैन से था, जिसे कोई भी हरा नहीं पाया था। पहली दौड़ 100 मीटर की थी। इसमें विल्मा ने जुत्ता को हरा कर अपना पहला गोल्ड मेडल जीता। दूसरी दौड़ 200 मीटर की थी। इसमें विल्मा ने जुत्ता को दूसरी बार हराया और उसे गोल्ड मेडल मिला। तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और विल्मा का मुक़ाबला एक बार फिर से जुत्ता से ही था। रिले में रेस का आखि़री हिस्सा टीम का सबसे तेज़ एथलीट ही दौड़ता है। इसलिए विल्मा और जुत्ता, दोनों को अपनी-अपनी टीमों के लिए दौड़ के आखिरी हिस्से में दौड़ना था। विल्मा की टीम के तीन लोग रिले रेस के शुरूआती तीन हिस्से में दौड़े और असानी से बेटन बदली। जब विल्मा के दौड़ने की बारी आई, उसके हाथ से बेटन ही छूट गई। लेकिन विल्मा ने देख लिया कि दूसरे छोर पर जुत्ता हैन तेज़ी से दौड़ चली है। विल्मा ने गिरी हुई बेटन उठाई और मशीन की तरह ऐसी तेज़ी से दौड़ी कि जुत्ता को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीता। यह बात इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई कि एक लकवाग्रस्त महिला 1960 के ओलंपिक में दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई।
हम विल्मा के जीवन के इस प्रेरक-प्रसंग से क्या सीख सकते है? इससे हमें शिक्षा मिलती है कि क़ामयाब लोग कठिनाईयों के बावजूद सफलता हासिल करते हैं, न कि तब, जब कठिनाईयाँ नहीं होती।.
नकारात्मक पहलू
एक शिकारी ने चिड़ियों को पकड़ने वाला एक अद्भुत कुत्ता खरीदा। वह कुत्ता पानी पर चल सकता था। शिकारी वह कुत्ता अपने दोस्तों को दिखाना चाहता था। उसे इस बात की बड़ी खुशी थी कि वह अपने दोस्तों को यह काबिले-गौर चीज दिखा पाएगा। उसने अपने एक दोस्त को बत्तख का शिकार देखने के लिए बुलाया। कुछ देर में उन्होंने कई बत्तखों को बंदूक से मार गिराया। उसके बाद उस आदमी ने कुत्ते को उन चिड़ियों को लाने का हुक्म दिया। कुत्ता चिडियों को लाने के लिए दौड़ पड़ा। उस आदमी को उम्मीद थी कि उसका दोस्त कुत्ते के बारे में कुछ कहेगा, या उसकी तारीफ करेगा, लेकिन उसका दोस्त कुछ नहीं बोला। घर लौटते समय उसने अपने दोस्त से पूछा कि क्या उसने कुत्ते में कोई खास बात देखी। दोस्त ने जवाब दिया,
'हां, मैंने उसमें एक खास बात देखी। तुम्हारा कुत्ता तैर नहीं सकता।'
कुछ लोग हमेशा नकारात्मक पहलू को देखते हैं। निराशावादी किसे कहते है?
निराशावादी लोगों के ये लक्षण होते हैं-
- जब चर्चा करने के लिए उनके पास कोई तकलीफ नहीं होती, तो वे नाखुश रहते हैं।
- वे जिंदगी के आइने में हमेशा दरारें तलाशते हैं।
- उन्हें चांद में केवल ध्ब्बे दिखाई देते हैं।
- वे जानते हैं कि कड़ी मेहनत से किसी को नुकसान नहीं पहुंचता पर सोचते हैं कि कोई खतरा क्यों उठाया जाए।
संघर्ष
जीव विज्ञान के एक अध्यापक अपने छात्रों को पढ़ा रहे थे कि सूँड़ी तितली में कैसे बदल जाती है। उन्होंने छात्रों को बताया कि कुछ ही घंटों में तितली अपनी खोल से बाहर निकलने की कोशिश करेगी। उन्होंने छात्रों को आगाह किया कि वे खोल से बाहर निकलने में मदद न करें। इतना कह क रवह कक्षा से बाहर चले गए।
छात्र इंतजार करते रहे। तितली खोल से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगी। छात्र को उस पर दया आ गई। अपने अध्यापक की सलाह न मान कर उसने खोल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही तितली की मदद करने का फ़ैसला किया। उसने खोल को तोड़ दिया, जिसकी वजह से तितली को बाहर निकलने क लिए और मेहनत नहीं करनी पड़ी। लेकिन थोड़ी ही देर में मर गई।
वापस लौटने पर शिक्षक को सारी घटना मालूम हुई। तब उन्होंने छात्रों को बताया कि खोल से बाहर आने के लिए तितली को जो संघर्ष करना पड़ता है, उसी की वजह से उसके पंखों को मज़बूती और शक्ति मिलती है। यही प्रकृति का नियम है। तितली की मदद करके छात्र ने उसे संघर्ष करने का मौका नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि वह मर गई।
दोस्तों, हमें अपनी ज़िंदगी पर यही नियम लागू करना चाहिए। हम जिंदगी में कोई भी कीमती चीज़ संघर्ष के बिना नहीं हासिल कर सकते। आज-कल के माँ-बाप अपने बच्चों को शक्ति हासिल करने के लिए संघर्ष करने का मौका नहीं देते। इस तरह वे जिन्हें सबसे अधिक चाहते हैं उन्हीं को नुक़सान पहुँचा बैठते हैं।