Prerak Prasang: महापुरूषों के प्रेरक-प्रसंग
दोस्तों, ईश्वर ने हम सभी को जीवन प्रदान किया है। जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सम्पन्नता प्राप्त करना या उच्च पद प्राप्त करना नहीं है। बल्कि जीवन वह है जिसमें निरंतर परिष्कार और विकास हो तथा साथ-साथ जिसमें अच्छे गुणों का समावेश हो। महापुरूषों के जीवन के कुछ प्रसंगों के स्मरण मात्र से ही हमें प्रेरणा मिलती है। यहां हमने महापुरूषों के जीवन के कुछ
prerak prasang को उजागर करने का एक प्रयास किया है। आज के युग में हम कठिन प्रतियोगिता की दौड़ से गुजर रहे हैं। जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने और आगे बढ़ने के लिए कठिन संघर्ष करना है। महापुरूषों के प्रेरक-प्रसंग हमें सहायता कर सकते हैं।
महापुरूषों के प्रेरक-प्रसंग
- वीर सावरकर के जीवन के 3 प्रेरक प्रसंग- Vinayak Damodar Savarkar Jeevan Prasang
- व्यक्तित्व वह जो दूसरे को बदल दे - Pandit Motilal Nehru
- स्वामी विवेकानन्द के 3 प्रसंग - Prerak Prasang of Swami Vivekananda
- बलिदान महान आदर्श है - Bhagat Singh, Ram Prasad Bismil
- संत कबीर के प्रेरक-प्रसंग- Prerak Prasang of Sant Kabir Das
- विश्वास कभी न तोड़ें - Ram Prasad Bismil, Ghanshyam Das Birla
- महात्मा गांधी के दो प्रेरक-प्रसंग - Prasang of Mahatma Gandhi
- शालीनता महापुरूषों का गुण है - Rajendra Prasad, John F. Kennedy
- जैसा भाव वैसी ही सफलता - Nagarjuna
- योग्यता छिपती नहीं - Vishnu Sharma
- सदा निर्भय रहें - Kunwar Sukhlal Arya
- सबको एक ही लाठी से नहीं हाँकें - Akbar-Birbal
- भाषण का प्रभाव - Madan Mohan Malaviya
- स्वयं मत बोलो, कर्म को बालने दो - Vinoba Bhave, Ghanshyam Das Birla
- देश के लिए त्याग हमारा कर्त्तवय है - Rajendra Nath Lahiri
- गौतम बुद्ध के तीन जीवन प्रसंग - Gautam Buddha Stories
- हास्य से भरी तेनालीराम की 27 नैतिक कहानियाँ
Prasang #1 : ईमानदारी महान् गुण है
नाव गंगा के इस पार खड़ी है। यात्रियों से लगभग भर चुकी है। रामनगर के लिए खुलने ही वाली है, बस एक-दो सवारी चाहिए। उसी की बगल में एक नवयुवक खड़ा है। नाविक उसे पहचानता है। बोलता है - 'आ
जाओ, खड़े क्यों हो, क्या रामनगर नहीं जाना है?' नवयुवक ने कहा, 'जाना है, लेकिन आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता।?' क्यों भैया, रोज तो इसी नाव से आते-जाते हो, आज क्या बात हो गयी? आज मेरे
पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं। तुम जाओ। अरे! यह भी कोई बात हुई। आज नहीं, तो कल दे देना। नवयुवक ने सोचा, बड़ी मुश्किल से तो माँ मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती हैं। कल भी यदि पैसे का प्रबन्ध नहीं
हुआ, तो कहाँ से दूँगा? उसने नाविक से कहा, तुम ले जाओ नौका, मैं नहीं जाने वाला। वह अपनी किताब कापियाँ एक हाथ में ऊपर उठा लेता है और छपाक नदी में कूद जाता है। नाविक देखता ही रह गया। मुख
से निकला- अजीब मनमौजी लड़का है।
छप-छप करते नवयुवक गंगा नदी पार कर जाता है। रामनगर के तट पर अपनी किताबें रखकर कपड़े निचोड़ता है। भींगे कपड़े पहनकर वह घर पहुँचता है। माँ रामदुलारी इस हालत में अपने बेटे को देखकर चिंतित हो
उठी।
अरे! तुम्हारे कपड़े तो भीगें हैं? जल्दी उतारो।
नवयुवक ने सारी बात बतलाते हुए कहा, तुम्ही बोलो माँ,
अपनी मजबूरी मल्लाह को क्यों बतलाता? फिर वह बेचारा तो खुद गरीब आदमी है। उसकी नाव पर बिना उतराई दिए बैठना
कहाँ तक उचित था? यही सोचकर मैं नाव पर नहीं चढ़ा। गंगा पार करके आया हूँ। माँ रामदुलारी ने अपने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा, 'बेटा, तू जरूर एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।' वह नवयुवक अन्य
कोई नहीं लाल बहादुर शास्त्री थे, जो देश के प्रधानमंत्री बने और 18 महीनों में ही राष्ट्र को प्रगति की राह दिखायी।
Prasang #2 : क्षमा महान् गुण है
भौतिक विज्ञान के विकास में जिन वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है उसमें आइजक न्यूटन का अप्रितम योगदान है। वे कहा करते -
'कठिनाइयों से गुजरे बिना कोई अपने लक्ष्य
को नहीं पा सकता। जिस उद्देश्य का मार्ग कठिनाइयों के बीच नहीं जाता, उसकी उच्चता में सन्देह करना चाहिए।'
वे प्रकाश के सिद्धांतों की खोज में बीस वर्षों से लगे थे। अनेक शोधपत्र तैयार किए गए थे। वे मेज पर पड़े थे, वहीं लैम्प जल रहा था, उनका कुत्ता डायमड उछला और मेज पर चढ़ गया। लैम्प पलट गया। मेज पर
आग लग गई। देखते-देखते बीस वर्षों की कठिन तपस्या से तैयार शोधपत्र जलकर खाक हो गए। न्यूटन जब टहलकर आए, तो इस दृश्य को देखकर उन्हें अपार कष्ट हुआ। एक क्षण तो इतने उद्विग्न हुए कि
डायमंड को मार कर खत्म करने की बात भी सोचने लगे, लेकिन न्यूटन ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने डायमंड को पास बुलाया, उसकी पीठ पर हाथ रखा, सिर थपथपाते हुए कहा, 'ओ डायमंड! डायमंड! जो नुकसान तूने
पहुँचाया है, तू नहीं जानता।'
उन्होंने धैयपूर्वक सारे शोधपत्र की सामग्री को अपनी स्मृति में खोजा और फिर उसी उत्साह से नया शोधपत्र तैयार करने में जुट गए।
Prasang #3 : जीवन का रहस्य
एक जिज्ञासु शिष्य ने टॉल्स्टाय से पूछा, 'जीवन क्या है?'
टॉल्स्टाय ने कहा, एक बार एक यात्री जंगल की राह पर चला जा रहा था। सामने से एक हाथी उसकी ओर लपका। अपने प्राण बचाने के लिए तत्काल वह एक कुएँ में कूद गया। कुँए में वटवृक्ष था। उसकी एक
शाखा को पकड़कर वह झूल गया। उसने नीचे देखा साक्षात् मौत खड़ी थी। एक मगरमच्छ मुँह खोले बैठा था। भय कंपित वह मृत्यु का साक्षात् दर्शन कर रहा था। उसने ऊपर देखा-शहद के छत्ते से बूँद-बूँद मधु टपक
रहा था। वह सब कुछ भूल मधु पीने में तल्लीन हो गया,
लेकिन यह क्या? जिस पेड़ से वह लटका था, उसकी जड़ को दो चूहे कुतर रहे थे- एक उजला था, दूसरा काला। जिज्ञासु ने पूछा, 'इसका अर्थ?' 'तू नहीं समझा' टॉल्स्टाय ने कहा,
'वह हाथी काल था, मगर मृत्यु, मधु जीवन-रस था और दो चूहे दिन-रात। बस यही तो जीवन है। शिष्य सन्तुष्ट हो गया।'
Prasang #4 : सत्य और संकल्प पर अटल रहें
यह एक पोलियोग्रस्त बालिका की कहानी है। चार साल की उम्र में निमोनिया और काला ज्वर की शिकार हो गयी। फलतः पैरों में लकवा मार गया। डॉक्टरों ने कहा विल्मा रूडोल्फ अब चल न सकेगी। विल्मा का
जन्म टेनेसस के एक दरिद्र परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी माँ विचारों की धनी थी। उसने ढाँढस बँधाया, 'नहीं विल्मा तुम भी चल सकती हो, यदि चाहो तो!' विल्मा की इच्छा-शक्ति जाग्रत हुई। उसने डॉक्टरों को
चुनौती दी, क्योंकि
माँ ने कहा था यदि आदमी को ईश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ मेहनत और लगन हो, वह दुनियाँ में कुछ भी कर सकता है।
नौ साल की उम्र में वह उठ बैठी। 13 साल की उम्र में पहली बार एक दौड़ प्रतियोगिता में शामिल हुई, लेकिन हार गयी। फिर लगातार तीन प्रतियोगिताओं में हारी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 15 साल की उम्र में
टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में गई और वहाँ एड टेम्पल नामक कोच से मिलकर कहा, 'आप मेरी क्या मदद करेंगे, मैं दुनियाँ की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ।' कोच टेम्पल ने कहा, 'तुम्हारी इस इच्छा शक्ति के
सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती, मैं तुम्हारी मदद करूँगा।'
1960 की विश्व-प्रतियोगिता ओलम्पिक में वह भाग लेने आयी। उसका मुकाबला विश्व की सबसे तेज धाविका जुत्ता हैन से हुआ। कोई सोच नहीं सकता था कि एक अपंग बालिका वायु वेग से दौड़ सकती है। वह
दौड़ी और एक, दो, तीन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर 100 मीटर, 200 मीटर तथा 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।
उसने प्रमाणित कर दिया कि एक अपंग व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ कर सकता है।
हर सफलता की राह कठिनाइयों के बीच से गुजरती है।
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Prasang #5 : तन्मयता के बिना सृजन नहीं
गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर शान्ति निकेतन के अपने एकान्त कमरे में कविता लिखने में तल्लीन थे। तभी नीरवता को बेधती हुई एक आवाज आई - 'रूको' आज तुम्हें खत्म ही कर देता हूँ? रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने
दृष्टि उठाई। देखा एक डकैत चाकू लिए हुए उन पर वार करने के लिए प्रस्तुत है। वे कविता लिखने में पुनः तल्लीन हो गए और धीरे से कहा - 'मुझे मारना चाहते हो, ठीक है मारना, लेकिन एक बहुत ही सुन्दर
भाव आ गया है, कविता पूरी कर लेने दो।' भाव में इतने डूबे कि उन्हें याद ही नहीं कि उनका हत्यारा इतना निकट है।
इधर हत्यारे ने सोचा - ये कैसा आदमी है ? मैं चाकू लिए खड़ा हूँ। उस पर कोई असर नहीं। गुरूदेव की कविता जब समाप्त हुई उन्होंने दरवाजे की ओर दृष्टि डाली मानों कह रहे हों - अब मैं खुशी से मर सकता हूँ,
लेकिन यह क्या ? हत्यारे ने चाकू बाहर फेंक दिया और उनके चरणों में बैठकर रोने लगा।
Prasang #6 : पुरूषार्थ ही सफलता की शर्त है
अमेरीका के एक जंगल में एक नवयुवक दिन में लकड़ियाँ काटता था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन गरीब था। नजदीक में कोई विद्यालय नहीं था। अन्ततः उसने अपने से ही पढ़ने का निश्चय किया। पुस्तकालय भी
दस मील दूर था। उसने निश्चय किया कि वह पुस्तकालय से किताबें लाकर पढ़ेगा। वह अपने काम से छुट्टी पाकर दस मील दूर जाकर किताबें लाता, लकड़ी जलाकर पढ़ता और समय से पूर्व किताबें लौटा देता।
पढ़-लिखकर अंततः वह वकील बना। उसने स्थानीय अदालत में वकालत शुरू की, लेकिन वकिल के रूपा में भी वह अपने को सही स्वरूप मे नहीं रख पाता। उसके पास पैसे नहीं थे, कपड़ों को दुरूस्त कैसे रखें?
उसके एक मित्र स्टैन्टन ने व्यंग्य किया-
तू वकील तो लगता ही नहीं, लगता है उज्जड देहाती - वकालत कैसे चलेगी? उसने कहा- 'चले या न चले क्या करूँ। मैं केवल पोशाक में ही विश्वास नहीं करता। विश्वास है एक बात में कि मैं झूठा मुकदमा नहीं लूँगा।'
Prasang #7 : मेहनत की रोटी
गुरूनानक जी एकदिन एक साधारण बढ़ई लालो की गुरूभक्ति से प्रसन्न होकर उसके यहाँ ठहर गए। इसकी खबर उस इलाके के प्रमुख मलिक भागो के कानों तक पहुँची। तब समाज में ऊँच-नीच की भावना व्याप्त
थी। भागो यह कैसे सहन करे कि एक संत एक बढ़ई के घर में निवास करें। उन्होंने तुरन्त अपने यहाँ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया। उस समय गुरू जी भजन गा रहे थे और उनका शिष्य मर्दाना रवाब बजा
रहा था। उन्होंने मलिक भागो से कहा, 'मैं आपके यहाँ भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।' भागो अपमान से जलने लगा। पूछा, 'आखिर क्यों? क्या मैं इससे भी नीच हूँ।'
गुरू जी ने कहा, 'ठीक है, अपनी खाद्य सामग्री दे दो।'
गुरू जी ने उसे अपने हाथों में लेकर निचोड़ा। अरे यह क्या? खून निकलने लगा।
उन्होंने लालो से अपना भोजन मँगवाया। वही रूखी सूखी रोटी और साग। उसे निचोड़ने लगे- दूध की धारा? गुरू जी ने कहा अब समझे तेरी कमाई पसीने की नहीं, शोषण की कमाई है। बेचारा मलिक भागो लज्जित
हो गया।
Prasang #8 : सच्ची लगन सफलता की शर्त है
मैक्समूलर की माँ की हार्दिक इच्छा थी कि उसका बेटा देश का कोई बड़ा अधिकारी बने। एक विधवा होते हुए भी उसने मैक्समूलर की पढ़ाई में कोई कमी नहीं की, लेकिन मैक्समूलर को तो दूसरी ही धुन थी। वह
कहता, 'नहीं, माँ मुझे संस्कृत पढ़ना है, पढ़ने दो।' वे संस्कृत के अध्ययन में जुट गए। लिपजिग कॉलेज में अध्ययन के दौरान इन्हें यह आर्श्च हुआ कि अंग्रेजी के अनेक शब्द संस्कृत से निकले हैं यथा - डॉक्टर-दुहित्र
से, फादर-पितर से, मदर-मातृ से, वाइफ-वधु से तथा ब्रदर-भ्रातर से। उन्हें गुरू की खोज में पेरिस जाना पड़ा। पेरिस में बर्नूफ को पाकर उन्हें अत्यनत प्रसन्नता हुई। जब इन्होंने वेद अध्ययन की इच्छा व्यक्त की, तो
गुरू ने कहा - 'तुम में प्रतिभा है, लगन है, एकनिष्ठता है। तुम हिन्दू धर्म या वेद दोनों में से किसी एक को अपना जीवन अर्पित कर दो।'
मैक्समूलर ने वेद पढ़ने की जब इच्छा व्यक्त की तो गुरू ने दो हिदायतें दीं-
वेद का भाष्य करते समय तुम धूम्रपान नहीं करोगे। मूल और भाष्य का एक शब्द एक अक्षर भी नहीं छोड़ोगे नहीं। उन्होंने इन वचनों का दृढ़ता से पालन किया और अपने 27 वर्षों के कठोर श्रम से ऋग्वेद का उद्धार
किया, जो ईस्ट इण्डिया कंपनी के संग्रहालय में कैद थे। हिन्दू धर्म के इस पवित्र ग्रन्थ के जीर्णोद्धार का श्रेय इन्हीं विद्वानों को जाता है, जिन्होंने अपने जीवन के लगभग पचास वर्ष भारतीय वांगमय में विचरते हुए बिताया।
Prasang #9 : सच्चे ज्ञान की खोज
एक राजा ने अपने मंत्री-परिषद के समक्ष तीन प्रश्न किए-
पहला - सबसे अच्छा मित्र कौन ?
दूसरा - सबसे अच्छा समय कौन ?
तीसरा - सबसे अच्छा काम कौन ?
प्रत्येक मंत्री ने उत्तर अलग-अलग सुझाए। किसी ने कहा ज्योतिषी द्वारा निर्धारित समय, कर्म तथा मित्र सर्वश्रेष्ठ है, किसी ने राजा के मित्र के रूप में मंत्री और सेनापति के नाम सुझाए। इन बातों से राजा पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ा। वह जंगल की ओर चला, जहाँ एक ऋषि रहते थे। शाम के समय राजा अपने सिपाहियों सहित घोड़े पर सवार वन में पहुँचा। देखा ऋषि तो वहाँ नहीं, लेकिन एक कुटिया के बगल में एक बूढ़ा व्यक्ति
अपना खेत कोड़ रहा है। वह अपने सिपाहियों को बाहर खड़ा रहने का आदेश देकर उस बूढ़े के निकट गया। ऋषि के बारे में पूछा-बूढ़े ने कहा यह नाम तो उसी का है। राजा ने तीनों प्रश्न ऋषि से किए। ऋषि बीज बो
रहे थे, राजा से भी मदद करने को कहा। राजा बीज बोता रहा, लेकिन उसे अपने प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिला। जब अँधेरा घना हो गया, तो एक घायल के कराहने, चिल्लाने की आवाज सुनायी पड़ी। ऋषि ने राजा
से कहा, चलें इसकी मदद करें। घायल व्यक्ति कराह रहा था। जब उसे होश आया तो वह राजा को देखते ही उसके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा माँगने लगा।
राजा को आश्चर्य हुआ यह कौन मनुष्य है। वस्तुतः वह राजा को मारने आया था, लेकिन सिपाहियों ने उसे घायल कर दिया था। अब वह राजा से ही क्षमा याचना करने लगा।
राजा को अपने प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं मिला था। उन्होंने ऋषि से पूछा - ऋषि ने कहा आपके प्रश्नों का उत्तर तो मिल गया।
सबसे अच्छा मित्र आपके सामने वाला है। सबसे अच्छा समय वर्तमान और सबसे अच्छा कर्म उपस्थित कर्म है। यदि ऐसा न होता, तो यह व्यक्ति आपका मित्र कैसे हो जाता, जो आपकी हत्या करने आया था?