51 Best Akbar Birbal Stories in Hindi | अकबर बीरबल की कहानी
आज व्यक्ति की जिन्दगी इतनी व्यस्त हो चुकी है कि हंसने-मुस्कराने की बात तो वह भूल ही चुका है। टी. वी. आदि के ऊबा देने वाले कार्यक्रमों के प्रति भी वह उदासीन हो चुका है और चाहता है कि कुछ नया मनोरंजन मिले जो लीक से हटकर हो। अपने ऐसे ही उदासीन पाठकों के लिए हम यहां अकबर बीरबल की कहानी का संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। हमारा विश्वास है कि Akbar Birbal Stories in Hindi का एक-एक किस्सा आपको कई दिनों तक गुदगुदाता रहेगा। अगर आपकी इच्छा हो तो आप
बच्चों की बाल कहानियां भी पढ़े सकते हैं।
Akbar Birbal Short Stories in Hindi
मुगलिया सल्तनत के महान सम्राट अकबर और उनके नौ रत्नों में से एक बीरबल की नोकझोंक....बादशाह अकबर द्वारा बीरबल को यदा-कदा मूर्ख बनाने का प्रयास करने और बीरबल द्वारा अपनी तेज बुद्धी द्वारा बादशाह को लाजवाब कर देने के कई रोचक व हास्यपूर्ण किस्से यहां प्रस्तुत किए गए हैं।
- आयु बढ़ाने वाला पेड़
- तीन रूपये: तीन सवाल
- आदमी एक: काम चार
- तोता तो मर गया
- समझ का हेर-फेर
- जोरू का भाई
- मूर्ख के सामने चुप रहना ही श्रेयस्कर है
- सबसे बड़ी 'गर्ज़'
आयु बढ़ाने वाला पेड़
एक बार तुर्किस्तान के बादशाह को अकबर की बुद्धी की परीक्षा के लेने का विचार हुआ। उसने एक एलची को पत्र देकर सिपाहियों के साथ दिल्ली भेजा। पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार था-
'अकबरशाह! मुझे सुनने में आया है कि आपके भारततवर्ष में कोई ऐसा पेड़ पैदा होता है जिसके पत्ते खाने से मनुष्य की आयु बढ़ जाती है। यदि यह बात सच्ची है तो मेरे लिए उस पेड़ के थोड़े पत्ते अवश्य भिजवाएं.'
बादशाह उस पत्र को पढ़कर विचारमग्न हो गए। फिर कुछ देर तक बीरबल से राय मिलाकर उन्होंने सिपाहियों सहित उस एलची को कैद कर एक सुदृढ़ किले में बेद करवा दिया। इस प्रकार कैद हुए उनको कई दिन बीत गए तो बादशाह अकबर बीरबल को लेकर उन कैदियों को देखने गए।
बादशाह को देखकर उनको अपने मुक्त होने की आशा हुई, परन्तु यह बात निर्मूल थी। बादशाह उनके पास पहुंचकर बोले - 'तुम्हारा बादशाह जिस वस्तु को चाहता है, वह मैं तब तक उसे नहीं दे सकूंगा जब तक कि इस सुदृढ़ किले की एक-दो ईट न ढह जाए, उसी वक्त तुम लोग आजाद किए जाओगे। खाने-पीने की तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। मैंने उसका यथाचित प्रबन्ध करा दिया है।' इतना कहकर बादशाह चले गए, परन्तु कैदियों की चिंता और बढ़ गई। वे अपने मुक्त होने के उपाय सोचने लगे। उनको अपने स्व्देश के सुखों का स्मरण कर बड़ा दुख होता था।
वे कुछ देर तक इसी चिंता में डूबे रहे। अंत में वे इश्वर की वन्दना करने लगे- 'हे भबवान! क्या हम इस बन्धन से मुक्त नहीं किए जाएंगे? क्या हमारा जन्म इस किले में बन्द रहकर कष्ट भोगने के लिए हुआ है? आप तो दीनानाथ हैं, अपना नाम याद कर हम असहायों की भी सुध लीजिए।‘ इस प्रकार वे नित्य प्राथर्ना करने लगे।
ईश्वर की दयातलुता प्रसिद्ध है। एक दिन बड़े जोरों का भूकम्प आया और किले का कुछ भाग भूकम्प के कारण धराशायी हो गया। सामने का पर्वत भी टूटकर चकनाचूर हो गया। इस घटना के पश्चात एलची ने बादशाह के पास किला टूटने की सूचना भेजी।
बादशाह को अपनी कही हुई बात याद आ गई। इसलिए उस एलची को उसके साथियों सहित दरबार में बुलाकर बोले - 'आपको अपने बादशाह का आशय बिदित होगा और अब उसका उत्तर भी तुमने समझ लिया है। यदि न समझा हो तो सुनो, मैं उसे और भी स्पष्ट किए देता हूं।'
देखो, तुम लोग गणना में केवल सौ हो और तुम्हारी आह से ऐसा सुदृढ़ किला ढह गया, फिर जहां हजारों मनुष्यों पर अत्याचार हो रहा हो, वहां के बादशाह की आयु कैसे बढ़ेगी? उसकी तो आयु घटती ही चली जाएगी और लोगों की आह से उसका शीघ्र ही पतन हो जाएगा। हमारे राज्य में अत्याचार नहीं होता, गरीब प्रजा पर अत्याचार न करना और भलीभांति पोष्ण करना ही आयुवर्धक वृक्ष है। बाकी सारी बातें मिथ्या हैं।‘
इस प्रकार समझा-बुझाकर बादशाह ने उस एलची को उसके साथियों सहित स्वदेश लौट जाने की आज्ञा दी और उनका राह-खर्च भी दिया। उन्होंने तुर्किस्तान में पहुंचकर यहां की सारी बातें अपने बादशाह को समझाईं। अकबर की शिक्षा लेकर बादशाह दरबारियों सहित उनकी भूरि-भुरि प्रशंसा करने लगा।
तीन रूपये: तीन सवाल
एक दिन अकबर बादशाह के दरबारियों ने बादशाह से शिकायत की - 'हुजूर! आप सब प्रकार के कार्य बीरबल को ही सौंप देते हैं, क्या हम कुछ भी नहीं कर सकते?'
बादशाह ने कहा - 'ठीक है....मैं अभी इसका फैसला कर देता हूं।'
उन्होंने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा - 'मैं तुम्हें तीन रूपये देता हूं। इनकी तीन चीजें लाओं। हर एक की कीमत एक रूपया होनी चाहिए। पहली चीज यहां की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहां की होनी चाहिए। तीसरी चीज न यहां की हो, न वहां की हो।'
दरबारी तुरन्त बाजार गया। दुकानदार के पास जाकर उसने उससे ये तीनों चीजें मांगी। दुकानदार उसकी बात सुनकर हंसने लगा और बोला - 'ये चीजें कहीं भी नहीं मिल सकतीं।'
उन तीन चीजों को दरबारी ने अनेक दुकानों पर खोजा। लेकिन जब उसे तीनों चीजें कहीं भी नहीं मिलीं तो निराश होकर दरबार में लौट आया। उसने बादशाह अकबर को आकर बताया- ‘ये तीनों चीजें किसी भी कीमत पर, कहीं भी नहीं मिल सकतीं। अगर बीरबल ला सकें तो जानेंगे।'
अकबर बादशाह ने बीरबल को बुलाया और कहा कि जाओ ये तीनों चीजें लेकर आओ।
बीरबल ने कहा - 'हुजूर! कल तक ये चीजें अवश्य आपकी सेवा में हाजिर कर दूंगा।'
अगले दिन जैसे ही बीरबल दरबार में आए तो बादशाह अकबर ने पहले दिन वाली बात को याद दिलाते हुए पुछा - 'क्यों, क्या हमारी चीजें ले आए?'
बीरबल ने फौरन कहा - 'जी हां....मैंने पहला रूपया एक फकीर को दे दिया जो वहां से भगवान के पास जा पहुंचा। दूसरा रूपया मैंने मिठाई में खर्च किया जो यहां काम आ गया और तीसरे रूपये का मैंने जुआ खेल लिया जो कि न यहं काम आएगा, न वहां अर्थात परलोक में।'
उनकी बात सुनकर सभी चकित रह गए और अकबर ने बीरबल को बहुत सा ईनाम दिया।
आदमी एक: काम चार
बीरबल की सूझबूझ, बुद्धी और हाजिरजवाबी से जहां बादशाह अकबर प्रसन्न थे, वहां दरबार के अन्य लोगों में कई ऐसे भी थे जो बीरबल को
उच्च पद से हटाना तथा बादशाह की दृष्टि में गिराना चाहते थे। वे लोग ऐसे ही अवसर की ताक में रहते थे, जब वे बादशाह के कान भर सकें
या किसी भी तरह बीरबल को नीचा दिखा सकें। ऐसे अवसर अक्सर आते भी रहते थे। एक बार बीरबल की अनुपस्थिति में बादशाह के कान
भरने वालों ने एक स्वर में कहा- 'हमारी समझ में आज तक नहीं आया है कि जहांपनाह कि हम लोगों में क्या कमी है?' बीरबल को इतना
महत्व क्यों दिया जाता है? क्या वह हमसे ज्यादा विद्वान है?'
'बहुत फर्क है उसमें और आप लोगों में।' बादशाह ने मुंह खोला दिया।
'जानने की इच्छा है, हुजूर!'
'अच्छा, फर्क जानना चाहते हो?'
'हां, हुजूर!'
'फर्क दिखाया जाएगा। इसी समय बीरबल के पास सूचना भेज दो, वह सात दिनों के लिए छुट्टी पर रहें तथा दरबार में न आएं। तुम लोगों में
जो सबसे चतुर हो वह उनके स्थान पर काम करे, उनकी कुर्सी पर विराजमान हो। इस एक हफ्ते में हम फर्क का अहसास करा देंगे।'
ऐसा ही किया गया। उन लोगों में जो सबसे चतुर था, उसे बीरबल के स्थान पर नियुक्त कर दिया गया। बीरबल की हफ्तेभर के लिए छुट्टी कर
दी गई। बादशाह उन सबकी परीक्षा लेने का उचित अवसर और परीक्षा का विषय खोजते रहे। एक सप्ताह खत्म होने को आ गया। छठा दिन
था। बादशाह ने दरबारियों को एकत्र कर उनके द्वारा चुने गए उस चतुर व्यक्ति से कहा -‘हमारे महल के पिछले हिस्से में कुतिया के बच्चों
की-सी अवाजें आती रहती हैं- देखकर आओ माजरा क्या है?'
'बहुत अच्छा हुजूर!' कहकर चतुर व्यक्ति चला गया। थोड़ी देर बाद लोटा।
बादशाह ने मुस्कराकर पूछा - 'क्या माजरा है?'
'कुतिया ने बच्चे दिए हैं हुजूर! वे ही 'कूं-कूं' करते रहते हैं।'
'वे कितने बच्चे हैं?' बादशाह ने पूछा।
'हुजूर! मैंने तो गिने नहीं।'
'जाओ, गिनकर आओ।'
व्यक्ति आज्ञा पाकर दोबारा गया और थोड़ी देर बाद लौटा आया। आते ही बोला - 'जहांपनाह! पांच बच्चे दिए हैं कुतिया ने। मैं स्वयं गिनकर
आया हूं।'
'गिन आए?'
'जी हां।'
'अच्छा तो तुमने यह भी जरूर देखा होगा कि उनमें कितने नर हैं और कितने मादा?' बादशाह ने मुस्कराकर कहा।
व्यक्ति चकरा गया। वह बोला - 'हुजूर! यह तो देखा नहीं।'
'देखकर आओ।'
व्यक्ति तीसरी बार गया और यह देखकर आया कि बच्चों में कितने नर और कितने मादा थे।
'हुजूर! दो नर और तीन मादाएं।'
'अच्छा, जो नर है उनके रंग कैसे-कैसे हैं?'
'जी?' वह व्यक्ति पुनः घूमने लगा।
'मैंने दोनों नर बच्चों के रंग पूछे हैं।' बादशाह ने कहा।
'जी, यहीं तक याद है, उनमें से एक तो काला है और एक शायद सफेद। जरा मैं एक बार फिर देख आता हूं।' और व्यक्ति चौथी बार गया।
आकर बताया कि नर काला-सफेद और दूसरी बादामी, मादाओं में से दो काली और एक बादामी है।
'बैठ जाइए।' बादशाह ने कहा।
व्यक्ति बैठ गया।
'अब बीरबल को यहां बुलाया जाए।' बादशाह ने आदेश दिया।
बीरबल ने आते ही कहा- 'हुजूर! अभी तो एक दिन और बाकी है, मैं परसों अपने आप ही आ जाता।'
'जरूरी काम है।'
'सेवा बताइए।'
'हमारे महल के पीछे के भाग में अजीब-सी आवाजें आती हैं- जैसे कभी कुतिया के भौंकने की, कभी कुतिया के बच्चों की 'कूं-कूं', कभी गुर्राने
की। देखकर आओ, माजरा क्या है? जरा जल्दी लौटना।'
'अच्छा जहांपनाह?' बीरबल चले गए। बीरबल जब लौटे तो बादशाह ने प्रश्न किया - 'क्या माजरा है?'
'कुतिया ब्याही है, पांच बच्चे दिए हैं, वे सब 'कूं-कूं' करते हैं, कुतिया गुर्राती या भौंकती रही होगी रात में, कोई बात नहीं है वहां।'
'पांच बच्चे हैं, उनमें नर-मादा कितने-कितने हैं?'
'दो नर, तीन मादाएं हैं।' बीरबल ने बताया।
'रंग किस प्रकार के हैं?'
'एक नर काला-सफेद दूसरा बादामी, मादाएं दो काली और एक बादामी है।'
बीरबल का उत्तर सुनकर बादशाह प्रसन्न हो गए। उन्होंने अपने दिल पर गर्व किया कि उन्हें एक बुद्धीमान व्यक्ति मिला है जो उनके साथ
रहता है। अपनी प्रसन्नता दबाए हुए बोले - 'अब तुम लोग समझ गए होंगे कि तुम में और बीरबल में क्या फर्क है? क्यों
श्रीमानजी?'
'जी।' व्यक्ति का सिर झुक गया। जिस काम को वह चार बार में कर सका था और ढाई घण्टा लगाया था, उसे बीरबल ने एक ही बार में केवल
आधे घण्टे में कर दिया था। वह समझ गया कि उनमें और बीरबल में क्या फर्क है। बीरबल ने जो मान पाया है, अपनी योग्यता के बल पर
पाया है।
तोता तो मर गया
एक आदमी तोते को पकड़कर पढ़ाने-लिखाने के बाद किसी बड़े आदमी को भेंट करके ईनाम पाने का धन्धा करता था। एक बार उसके हाथ एक बड़ा सुन्दर तोता लग गया। उसने तोते को पढ़या। उसे इन्सानी बोली सिखाई। तोता भविष्य की बात बता देता था। उस आदमी ने वह तोता अकबर बादशाह को भेंट करके बड़ा अच्छा ईनाम पाया। बादशाह ने तोते की देखरेख के लिए एक सेवक रख दिया और उसे हिदायत दी कि यदि तोता मर गया तो तुम्हें भी मार दिया जाएगा। जो व्यक्ति जीवित तोता मरने की खबर देगा उसे भी नहीं छोडूंगा।
सेवक तोते को अपने साथ ले गया और उसकी खूब सेवा करने लगा। एक प्रकार से उसकी रक्षा का पूरा भार उसी पर था।
लेकिन एक दिन वह तोता अचानक मर गया। रखवाला सेवक घबरा गया। वह भागा हुआ बीरबल के पास पहुंचा और सारी बात बताते हुए बोला- ‘अब मेरी जान नहीं बच सकेगी सरकार! मुझे आप ही बचा सकते हैं। तोते की मौत की खबर मैं बादशाह को दूंगा तब भी प्राण दण्ड मिलेगा और बादशाह स्वयं पता लगाते हैं तब भी प्राण दण्ड मिलेगा। अब मैं क्या करूं?'
'तुम निश्चित रहो। कुछ नहीं होगा। मैं संभाल लूंगा।' बीरबल ने उसे आश्वस्त किया।
टगले दिन बीरबल बादशाह के पास आकर बोले - 'हुजूर! आपका तोता था....।' बीरबल ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
'क्या हुआ? क्या तोता मर गया?'
'मैं नही कह सकता। इतना ही कह सकता हूं कि आपका तोता आज न खाता है, न पीता है, न मुंह खोलता है, न बात करता है, न चलता है, न हिलताह है, न उठता है और न ही फुदकता है।' बीरबल ने बताया।
'लेकिन हुआ क्या उसे? आओ चलकर देखते हैं।'
बादशाह ने आकर मरे हुए तोते को देखा और बीरबल से बोले - 'वहीं पर नहीं बता सकते थे कि तोता मर गया?'
'ऐसे कैसे कहता हुजूर! प्राण दण्ड जो मिलता। क्योंकि आपने कह रखा था मरने की खबर देने वाले को भी प्राणदण्ड मिलेगा।'
'ओह! तभी वह रखवाला गायब है।' बादशाह हंसे।
'जबकि वह बेकसूर है, हुजूर! तोता तो अपनी मौत मरा है।'
बदशाह ने रखवाले को माफ कर दिया। बीरबल की चतुराई से रखवाला बच गया। उसने बीरबल का आभार व्यक्त किया।
समझ का हेर-फेर
अकबर-बीरबल की नोकझोंक चलती ही रहती थी। बादशाह को हंसी-मजाक से बड़ा प्रेम था। इसी कारण बात-बात में उनमें और बीरबल में हंसी के प्रसंग छिड़ जाया करते थे।
हंसी-मजाक में अकबर बादशाह क्रोधित भी हो जाते थे, किंतु बीरबल कभी क्रोधित नहीं होते थे। इस बात को मन में विचारकर बादशाह ने बीरबल को क्रोधित करने की नई युक्ति निकाली और बोले- 'बीरबल गाय रांधत।'
उत्तर में बीरबल ने कहा- 'बादशाह शुकर खाए।'
बादशाह की बात से बीरबल तो क्रोधित न हुए, पर बीरबल की बात से बादशाह क्रोधित अवश्य हो गए। वह भड़कर बोले - 'तुम मुझे मजाक के बहाने शुकर खिलाते हो?'
'हुजूर आप भी तो मुझे गाय खिलाते हो।'
बादशाह अपने वाक्य का अर्थ बदलकर बोले- 'हमने तुम्हें रांधते वक्त गाने को कहा था।'
तत्काल बीरबल ने भी प्रत्युत्तर मे कहा - 'आलमपनाह! मैंने भला शूकर खाने को कब कहा?'
'तो फिर.....।'
'मैं तो कह रहा था, बादशाह शुक रखाए अर्थात आपने तोता रखा हुआ है। सिर्फ समझ का ही हेर-फेर है। आप बिना अर्थ समझे अकारण क्रोधित होते हैं।' बादशाह निरूत्तर हो गए।
जोरू का भाई
एक बार बादशाह सलामत हरम में अपनी बेगम के साथ बैठे हुए प्यार-मुहब्बत की बातें कर रहे थे। इतने में एक कनीज ने आकर बादशाह ने
आकर बादशाह को झुककर सलाम किया और निहायत अदब के साथ फरमाया - 'अलीजहाँ! टापके साले साहब तशरीफ लाए हुए
हैं।'
बादशाह ने कनीज से पूछा - 'यहीं पर भेज दो।‘ फिर बेगम की तरफ मुखातिब होकर बोले - ‘बेगम! तुम ने सुना है, सारी खुदाई एक तरफ,
जोरू का भाई एक तरफ।'
बेगम भला कब चुप रहने वाली थी, बोली - 'जहांपनाह! आप भूल रहे हैं, आपने दूसरा फिकरा गलत इस्तेमाल किया है।'
बादशाह ने कहा- 'अच्छा तो अब सही सुना दो।'
तब बेगम ने जवाब दिया - 'सारी खुदाई एक तरफ और दूल्हे का भाई एक तरफ।'
बादशाह बेगम की बात सुनकर हंसे। इतने ही में उनका साला अन्दर आ गया और सलाम करके एक तरफ खड़ा हो गया, तब बादशाह ने कहा-
'साले साहब! तशरीफ रखीए।'
साले साहब सामने की कोच पर बैठ गए। तब बादशाह ने पूछा - 'कहिए कैसे तकलीफ की, क्या बेगम को लिवाने आए हैं?'
साले साहब ने जवाब दिया- 'अलीजहाँ! मैं लिवाने नहीं आया, एक अर्ज करने आया हूँ।'
बादशाह ने कहा- 'फरमाइए, तहेदिल से आपकी अर्ज पर गौर किया जाएगा।'
यह सुनकर साले साहब ने अन्दर ही अन्दर खुश होकर कहा - 'एक मर्तबा हुजूर ने फरमाया था कि अगर बीरबल की काबलियत का कोई
मुसलमान हो तो हम बीरबल की जगह उसे दे सकते हैं।'
बदशाह ने कहा - 'बेशक।'
साले साहब ने जवाब दिया - 'जहांपनाह! मेरी परीक्षा ले ली जाए और अगर मैं परीक्षा में ठीक साबित हो गया तो मेरा चुनाव उस जगह पर
किया जाए।'
बादशाह अपने साले की बात सुनकर एक बार तो थोड़ा हंसे, फिर बेगम की तरफ देखते हुए बोले - 'साले साहब! अगर आप परीक्षा में खरे उतरे
तो यकीन मानिए हम आपको वजीर बना देंगे।'
उसी समय बादशाह ने अपनी कनीज को कोयले की डाली ले आने का हुक्म फरमाया।
वह कनीज कोयले की डली को एक निहायत ही खूबसूरत रकाबी में रखकर बादशाह के सामने हाजिर हो गई। तब बादशाह उस कोयले की डली
को अपने साले साहब को देते हुए बोले - 'साले साहब! अगर आप तीन दिन के अंदर-अंदर इस कोयले को दस हजार रूपये में बेच आओगे तो
हम आपको बीरबल से होशियार समझेंगे, यही आपकी परीक्षा होगी।'
बादशाह की बात सुनकर साले साहब के पांवों से जमीन खिसकने लगी। वह बेहद अफसोस के मारे घर आ पड़े और म नही मन कहने लगे -
'या अल्लाह! इस कोयले का तो कोई एक पैसा भी न देगा। भला, यह दस हतार रूपये में कैसे बिक सकता है? मैं इस परीक्षा को कैसे पूरा
करूं? बादशाह ने बीरबल को अपने से जुदा न करने के लिए मुझ पर भारी जुल्म किया है। या खुदा! वजीरेआजम बन ही नहीं सकता। बीरबल
भी तो इस कोयले के दस हजार रूपये नहीं ला सकता। क्यों न मैं बादशाह से इस बात को कहूं?'
इस प्रकार सोच-विचार करते हुए तीसरे दिन बादशाह के सामने रोनी-सी सूरत में बोले - 'हुजूर! गुस्ताखी माफ! इस कोयले के दस हजार रूपये
कोई नहीं दे सकता, यह तो एक पैसे का भी नहीं।'
तब बादशाह ने हंसते हुए कहा- 'घबराने की कोई बात नहीं, आप दरबार में तशरीफ लाइए।'
अतः साले साहब दरबार में पहुंचे। तभी दरबारी उनको निहायत सुस्त देख उनकी सुस्ती का सबब पूछने लगे। साले साहब ने अपना सिर
चकराने का बहाना किया।
इसी समय बादशाह दरबार में तशरीफ जाए।
दरबार के जरूरी मामलातों से खाली होकर बादशाह ने अपने साले साहब की तरफ देखा। तब इशारा समझकर साले साहब ने दरबार में एक
विशेष दरबारी को वह कोयले की डाली को देकर बादशाह के सामने पेश करने को कहा । वह विशेष दरबारी उस कोयले की डाली को लेकर
बादशाह के सामने ले गया और पेश कर दी।
बादशाह वह कोयले की डाली बीरबल को दिखाते हुए बोले- 'बीरबल! तुम इस कोयले को कितने दाम में बेच सकते हो?'
बीरबल बोले - 'जितने में आप कहें हुजूर, उतने ही में बेच दूं।'?
बीरबल ने उससे कहा - 'मैं इसे दस हजार रूपये में बेचना चाहता हूं।'
बीरबल ने 'जो हुक्म' कहकर वह डाली ले ली।
तब बादशाह बोले - 'बीरबल! आपको हमें यह सबूत देना होगा कि फनां जगह इसको बेचा है।'
बीरबल ने यह भी मंजूर किया और अपने स्थान पर बैठ गए।
दरबार से आकर बीरबल ने एक दर्जी को काली मखमल का ढीला कुर्ता पाजामा और टोपी सीने का आदेश दिया। फिर कोयले की डाली को
काफी बारीक पिसवाया। जब पिसते-पिसते पह डाली सुर्मे जैसी हो गई तो उन्होंने उसे एक आलीशान जवाहरात की डिब्बी में रखा, फिर उस
डिब्बी को लेकर एक सोने के डिब्बी के अन्दर रखा, इसके बाद उस डिब्बी को एक बड़ी चांदी के डिब्बी के अंदर रखा। इस प्रकार इस डिब्बी को
उन्होंने सात धातुओं की डिब्बियों के अंदर रख लिया।
तब डिब्बे को भी एक चमड़े की पेटी में रख लिया। इसके बाद एक काली आबनूस की हीरे-पन्ने के नगों से जड़ी हुई छड़ी निकाली, जिसकी मूठ
सोने की थी। इतने में ही दर्जी कपड़े ले आया।
उन कपड़ों में भी बीरबल ने जगह-जगह पर कीमती जवाहरात और नग जड़ लिए। गले में भी बेशकीमती नगों की मालाएं पहन लीं। तब कपड़े
पहने, हाथ में वह छड़ी लिए बीरबल मुम्बई पहुंचे। जहां एक आलीशान सराय में जाकर आलीशान कमरे में जा ठहरे और शहर में मुनादी करा
दी कि शहर बगदाद से एक सुर्मे वाला आया है जिसके पास ऐसा सुर्मा है, जिसे लगाने से उसके मरे हुए घरवाले दिखाई देने लगते हैं। उस
आला दर्जे के सुर्मे की एक सलाई की कीमत दस हजार रूपये हैं।
यह मुनादी सुनकर शहर भर में तहलका मच गया। हर आदमी अपने मरे हुए को देखने का ख्वाहिशमन्द था, लेकिन सुर्मे की कीमत सुनकर
सबकी अक्ल खराब थी। उड़ते-उड़ते यह खबर एक मारवाड़ी सेठ तक पहुंची। उस सेठ ने नौकर को सुर्मे वाले को लिवाने सराय में भेजा। नौकर
ने सराय में पहुंचकर बीरबल को सेठजी की फरमाइश बताई। बीरबल खुश होते हुए उस सेठ के पास पहुंचे। रास्ते से ही एक भीड़ उनके साथ हो
ली।
वहां पहुंचकर नौकर ने बीरबल से हवेली के अंदर चलने को कहा। बीरबल बाले- 'हम किसी के घर नहीं जाते। अतः अपने सेठ को बाहर
बुलाइए।'
नौकर ने सेठ से सारा हाल कह दिया। तब सेठजी अपने बाग में आ गए, वहीं एक कुर्सी पर बीरबल बैठ गए। लोगों की भारी भीड़ भी वहीं बैठ
गई। तब बीरबल ने अपने चमड़े की पेटी खोली, फिर डिब्बी में से डिब्बी निकालने लगे। वहां पहुंचकर नौकर ने बीरबल से हवाली के अंदर चलने
को कहा। बीरबल बोले- ‘हम किसी के घर नहीं जाते। अतः अपने सेठ को बाहर बुलाइए।‘
नौकर ने सेठ से सारा हाल कह दिया। तब सेठ जी अपने बाग में आ अए, वहीं एक कुर्सी पर बीरबल बैठ गए। लोगों की भारी भीड़ भी वहीं बैठ
गई। तब बीरबल ने अपने चमड़े की पेटी खोली, फिर डिब्बी में से डिब्बी निकालने लगे। फिर वह सातवीं जवाहरात की डिब्बी निकाली।
सेठजी तथा सब लोग बीरबल के कीमती लिबास, मालाएं तथा नग देखकर प्रभावित हो गए थे। तब बीरबल ने सेठजी से कहा - 'दस हजार
रूपये लाइए और देखिए अपने मरे हुओं को।'
सेठजी ने दस हजार रूपये की मुहरें मंगवाकर बीरबल को दे दीं, जिन्हें बीरबल ने संभालकर रख लिया। फिर एक सीपी की बनी सलाई निकाली
और सुर्मे से लपेटकर सेठ की आंखों के पास लाकर बोले- 'सेठजी! इस सुर्मे की एक और तारीफ यह है कि इससे उसी आदमी को अपने बुजुर्ग
दिखाई देते हैं जो अपने मां-बाप से पैदा हो, दोगले से नहीं।'
यह कहकर बीरबल ने सेठ की आंखों में सलाई लगा दी और बोले- 'कहो सेठजी! आपको बुजुर्ग दिखाई दे रहे हैं या नहीं?'
सेठजी ने सोचा कि अगर नहीं कहता हूं तो इतनी बड़ी भीड़ और नौकर-चाकरों के सामने दोगला साबित होता हूं। त बवह बड़े संकोच के साथ
बोले- 'हां, मुझे सब दिखाई दे रहे हैं।'
तब बीरबल ने कहा - 'अच्छा तो अपना पूरा पता लिखकर मुझे अपने हाथ की सनद दीजिए, जिसमें लिखा हो कि मैंने दस हजार रूपये देकर
इस सुरमे को लगाया और मुझे अपने बुजुर्ग दिखाई देने लगे।'
सेठ ने मजबूरीवश सनद लिख दी। बीरबल लौटकर बादशाह के पास आए। बादशाह पहले तो उन्हें पहचान ही नहीं सके। फिर पहचानकर हंस
पड़े। बीरबल ने बादशाह को शुरू से आखिर तक का वृतान्त सुनकर सनद दिखा दी, जिसे सुनकर व देखकर सारा खिलखिला उठा।
तब बादशाह ने अपने साले साहब से कहा - 'कहिए साले साहब! बीरबल ने गैर मुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया है कि नहीं?'
मूर्ख के सामने चुप रहना ही श्रेयस्कर है
एक बार अकबर बादशाह के उस्ताद पीर साहब मक्का से चलकर दिल्ली आए। रास्ता न जानने की वजह से उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अकबर बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की। कुछ दिन आनन्द लेकर पीर साहब मक्का लौट गए।
जब पीर साहब चले गए तो अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा - 'बीरबल! क्या तुम्हारे भी कोई गुरू हैं, जैसे कि मेरे पीर साहब हैं? यदि हैं तो वे कहां रहते हैं, कभी आते-जाते भी हैं या नहीं?'
बीरबल ने जवाब दिया - 'जहांपनाह! मेरे भी गुरू हैं, लेकिन वह बाहर रहते हैं कहीं आते-जाते नहीं। हाल ही मैंने सुना है कि मेरे गुरूदेव किसी को कुछ बताते भी नहीं और कभी किसी से एक पैसा भी नहीं लेते। रूपये-पैसे का उन्हें लोभ नहीं है।'
यह सुनकर बीरबल के गुरू के प्रति अकबर बादशाह के मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई और उन्होंने बीरबल से अपने गुरू से मिलवाने का आग्रह किया।
अकबर बादशाह से बातें करके जब बीरबल रासते में आए तो उन्होंने देखा कि लकड़ी बेचने वाले एक बूढ़े ने परिश्रम करके लकड़ियों का एक गठ्टर बांधा हुआ है। वह सुबह से शाम तक इधर-उधर भटका, पर किसी ने भी उसे उचित मूल्य देकर वह गठ्टर नहीं खरीदा। लाचार होकर बूढ़ा लकड़हारा गठ्टर अपने धर वापस लिए जा रहा था।
पहले तो बीरबल ने उस लकड़ी बेचने वाले से लकड़ियों के उस गठ्टर का मूल्य पूछा, फिर उसे अपने घर ले गए और उससे बोले - 'मालूम होता है कि तुम समय के कुच्रक में फसकर इस दीन अवस्था में पहुंचे हो।'
बीरबल ने उसे अच्छे साफ-सुथरे वस्त्रों और काली जटा इत्यादि से युक्त ब्राहाम्ण साधु बना दिया। उसके हाथ में रूद्राक्ष की माला दे दी। फिर एक बड़े मंदिर के पीछे मृगचर्म के आसन पर बैठाकर उससे बोला - 'तुमसे मिलने बड़े-बड़े अमीर-उमराव आएंगे, पर उनसे तुम बिल्कुल मत बोलना। तुम्हें कितनी ही बहुमूल्य वस्तुएं वे क्यों न दिखाएं, पर तुम उनकी तरफ आंख भी मत उठाना। तुमसे जो कुछ भी पूछें, उसका जवाब मत देना। बस अपने ध्यान में रहना और सिर्फ माला फेरते रहना। ध्यान रहे, यदि इसके अलावा तुमने कोई भी हरकत की तो तुम्हारी खैर नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी हरकतों को देखता रहूंगा।'
बूढ़े लकड़हारे ने बीरबल की बातों को स्वीकार कर लिया। जब बीरबल को यकीन हो गया कि वह भलीभांति स्वांग कर सकता है, तब वह अकबर बादशाह के पास दरबार में गए। दरबार में उस समय सभी दरबारी उपस्थित थे। बीरबल ने अकबर बादशाह को अपने गुरू के आने की शुभ सूचना दी और कहा - 'पहले तो गुरूदेव ने दर्शन देने से इन्कार किया, पर मेरे खुशामद करने पर वह पधारे हैं, और मन्दिर के पिछले हिस्से में आसन जमाए हुए हैं। उन्होंने आप लोगों को दर्शन देना भी स्वीकार कर लिया है। लेकिन मुझे साथ आने को मना कर दिया है। यदि मैं हठ करके जाऊंगा तो हो सकता है, वह मुझे शाप दे दें। अतः आप और लोगों के साथ उनके दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।'
बीरबल को छोड़कर अकबर बादशाह के साथ सभी दरबारी गुरूदेव के दर्शन करने के लिए गए। अकबर बादशाह ने गुरूदेव के सामने जाकर सादर मस्तक झुकाया। फिर बैठकर उनसे पूछा - 'गुरूजी! अपना निवास स्थान तथा शुभ नाम इस दास को भी बताने की कृपा करें।'
गुरूदेव भी किसी ऐसे-वैसे के चेले नहीं थे। अकबर बादशाह की बातें सुनी-अनसुनी करके वह अपने ध्यान में ही रहे।
अकबर बादशाह फिर बोले - 'भगवन! मैं सारे हिंदुस्तान का बादशाह हूं और आपकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करने में समर्थ हूं। आप कृपा करके एक बार मेरी ओर नजर उठाकर देख लें तो मैं आपको धन्य समझूंगा।'
इस पर भी जब गुरूदेव ने ध्यान नहीं दिया तो अकबर बादशाह ने दस हजार रूपये मूल्य का कड़ा, जिसे वह स्वयं पहने हुए थे, हाथ से उतारकर गुरूदेव के चरणों में यह सोचकर रख दिया कि लालच में शायद कुछ आशीर्वाद देकर इस बहुमूल्य कड़े को स्वीकार कर लें। परंतु जब कुछ नतीजा न निकला तो निराश होकर अकबर बादशाह वहां से उठ खड़े हुए और बोले - 'जो आदमी अतिथि के साथ ऐसा व्यवहार करे, उस कठोर हद्य से बातें करना भी मूर्खता है।'
अकबर बादशाह को क्या पता था कि ऐसे मूर्ख से सामना होगा। उन्होंने वह कड़ा बीरबल के यहां भिजवा दिया, क्योंकि दान की वस्तु बादशाह के महल में कैसे आ सकती थी।
अगले दिन गुरूदेव का सारा हाल सुनाकर अकबर बादशाह ने बीरबल सक पूछा - 'मूर्ख मिले तो क्या करना चाहिए।'
बीरबल बोले - 'उस समय चुप रहना ही अच्छा है।'
बीरबल के इस जवाब से अकबर बादशाह की रही सही मर्यादा पर भी पानी पड़ गया। उनका विचार था कि ऐसी बात कहकर वह बीरबल के गुरू को मूर्ख साबित करेंगे, पर उल्टे खुद मूर्ख बने।
अकबर बादशाह को चुप देखकर बीरबल बोले - 'जब मैंने पहले ही उनका स्वभाव आपको बता दिया था कि उन्हें रूपये-पैसे का लालच नहीं है, कभी किसी के दरवाजे पर वह नहीं जाते, और मेरे कहने पर बड़ी मुश्किल से तो वह मिलने को राजी हुए थे, फिर आपने उन्हें लालच क्यों दिया? आपने अपशब्द कहकर गुरू का अपमान किया है। आपको धन-दौलत का घमंड है, इसलिए वह आपसे नहीं बोले।'
बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुए।
सबसे बड़ी 'गर्ज़'
अकबर बादशाह विनोदी स्वभाव के थे। उन्हें पहेलियां बुझाने का बड़ा शौक था। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान और बुद्धिमान भी थे। लेकिन अकबर की अधितर पहेलियों का उत्तर बीरबल ही देते थे। यूं कहिए कि बीरबल ही अकबर की पहेलियों का उत्तर दे पाते थे, इसलिए अकबर बादशाह उनसे प्रसन्न रहते थे।
एक दिन की बात है कि बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं थे। बीरबल की अनुपस्थिति में दूसरे सभासद बीरबल के वीषय में अकबर के कान भर रहे थे। उनकी तरह-तरह से बुराई कर रहे थे। अकबर बादशाह को यह सब अच्छा नहीं लगा। कारण था कि वे बीरबल को बहुत चाहते थे, उन्हें दिल से प्यार करते थे। अतः बादशाह ने अपने सभासदों से कहा- ‘तुम लोग ख्वामखाह बीरबल की बुराइयां कर रहे हो। वास्तव में बीरबल तुम लोगों से कहीं अधिक चतुर व बुद्धिमान हैं।‘
टकबर के ऐसा हने पर वे लोग कहने लगे - ‘‘बादशाह सलामत! टाप वास्तव में बीरबल को बहुत चाहते हैं, हम लोगों से ज्यादा प्यार करते हैं। इस तरह से आपने एक हिंदु को सिर चढ़ा रखा है।‘‘
डसी दिन जब सभा समाप्त होने का समय आया तो अकबर बादशाह ने अपने उन चार सभासदों से कहा - ‘देखो, आज बीरबल तो यहां नहीं, मुझे अपने एक सवाल का जवाब चाहिए। तुम चारों मेरे प्रश्न का उत्तर दो और यदि तुम लोगों ने मेरे प्रश्न का सही-सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम चारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा।‘
बादशाह की बात सुनकर वे चारों घबरा उठे। उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा - ‘प्रश्न पूछिए बादशाह सलामत!‘
बादशाह ने पूछा - ‘संसार में सबसे बड़ी चीज़ क्या है?‘
अकबर का प्रश्न सुनकर चारों चुप। उनको समझ में सवाल का उत्तर नहीं आया। कुछ देर बाद उनमें से एक ने कहा - ‘खुदा की खुदाई सबसे बड़ी है।‘
दूसरे ने कहा - ‘बादशाह सलामत की सल्तनत बड़ी है।‘
उनके बेतुके उत्तर सुनकर बादशाह ने कहा - ‘अच्छी तरह सोच-समझकर उत्तर दो, वरना मैं कह चुका हूं कि तुम लोगों को फांसी लगवा दूंगा।‘
तीसरे ने डरते-डरते कहा - ‘बादशाह सलामत! ळमें कुछ दिनों की मोहलत दी जाए।‘
बादशाह ने कहा- ‘इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है, मैं तुम लोगों को एक सप्ताह का समय देता हूं।‘
वे चारों सभा से मुंह लटकाए बाहर निकले। उनके चेहरों पर मुर्दनगी छा गई। चारों ही फांसी के नाम से पीले पड़ गए। छः दिन बीत गए लेकिन उन्हें कोई उत्तर न सूझ सका।
तब उन चारों ने आपस में सलाह की कि इस प्रश्न का उत्तर केवल बीरबल ही बता सकता है। इस परेशानी से हमें वही उबार सकता है। यह निश्चय करके वे चारों बीरबल के पास पहुंचे गए। उन्होंने बीरबल को पूरी घटना कह सुनाई और हाथ जोड़कर उनसे विनती की कि वह उनके प्रश्न का उत्तर बता दें।
बीरबल ने उनका प्रश्न सुनकर मुस्करा कर कहा - ‘मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।‘
‘आप एक शर्त की बात करते हैं, हमें आपकी हजार शर्तें मंजूर हैं। बताइए क्या शर्त है?‘
तब बीरबल ने उनको अपनी शर्त बताते हुए कहा - ‘तुम चारों अपने कंधों पर मेरी चारपाई रखकर सभा महल तक ले चलोगे। इसके साथ ही तुम में से एक मेरा हुक्का पकड़ेगा, जिसे मैं पीता हुआ चलूंगा। एक मेरी जूतियां लेकर चलेगा।‘
अगर अन्य किसी समय पर बीरबल उनको यह सब करने के लिए कहते तो शायद वे ऐसा कभी न करते। लेकिन अब जब उन्हें फांसी लगने का डर था तो वे तुरन्त ही उनकी बात मानने को तैयार हो गए। उन्होंने वैसा ही किया। वे चारों अपने कंधों पर बीरबल की चारपाई उठाए, उनका हुक्का और जूतियां उठाए चल दिए।
बीरबल हुक्का पीते हुए चले जा रहे थे। रास्ते में लोग आश्चर्य से इस अजीब मंजर को देख रहे थे। उन्होंने जाकर बीरबल की चारपाई को सभा के मध्य रख दिया। बीरबल ने चारपाई से उतर कर कहा - ‘बादशाह सलामत! टापको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। संसार में सबसे बड़ी चीज ‘गर्ज‘ है।‘
अकबर बादशाह मुस्करा उठे। दरअसल वे उन चारों को सबक सिखाना चाहते थे।
आशा है Akbar Birbal Stories in Hindi का यह संकलन आपको पसंद आया होगा। इस पेज पर दी गई कहानियां छोटे बच्चों के मन को गुदगुदाने में सक्षम है।