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Sampurna Ravan Samhita PDF | रावण संहिता

संपूर्ण संहिता हिंदी में
Title : प्राचीन रावण संहिता
Page : 829
File Size : 173 MB
Category : Religion
Language : Hindi
Download : Part 1 | Part 2 | Part 3 | Part 4 | Part 5
For support : contact@motivationalstoriesinhindi.in

केवल पढ़ने के लिए : आप प्रातः काल उठकर पहले-पहल मन में यह दृढ़ विचार कर लें, प्रौढ़ धारणा बना लें कि आज के पूरे दिन में हमसे जितने लोग मिलेंगे उनसे हम ऐसा सरल, पवित्र तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहार बरतेंगे, जिससे सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को सुख शांति मिले।

कौटुंबिक, सामाजिक, राजनीतिक, साम्प्रदायिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्त क्षेत्रों में प्यार की अपेक्षा दरार की मात्रा अधिक है। सब जगह कलह, वैमनस्य, घृणा, द्वेष, हिंसादि व्याप्त हैं; इनके मूल में है स्वार्थ और अहमभाव। इनका सर्वथा त्याग किये बिना दरार मिट नहीं सकती।

कौटुम्बिक जीवन में पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई में तनाव है। यह तनाव एवं दरार गृहस्थी-सुख का किरकिरा बन जाता है।

जहां परस्पर व्यवहार कटु है, वहां का जीवन नरक बन जाता है। यदि पास रहे हुए व्यक्तियों का परस्पर का व्यवहार मधुर है तो वे सूखी रह सकते हैं; परन्तु यदि लोगों का पारस्परिक व्यवहार कटु हफ तो हलवा, मालपूआ खाकर और लाखो-करोड़ो के भव्य-भवन में पलंग गद्वे पर सोकर भी सुखी नहीें रह सकते। आज-कल लोग जितना धन-संग्रह की चिन्ता में हैं, उतना परस्पर व्यवहार को मधुर बनाने में चिन्ताशील नही हैं। परन्तु जब तक एक जगह पर रहते हुए व्यक्तियों का व्यवहार मधुर नहीं होगा तब तक धन की अपार राशि मिल जाने पर भी जीवन में शान्ति नहीं आ सकती।

ऊपर चर्चा की गई है कि स्वार्थ और अहंकार व्यवहार को बिगाड़ने वाले हैं। मनुष्य हम भोजन, कपड़े, पैसे, जमीन, मकान आदी को लेकर परस्पर लड़ाई आरम्भ कर देता है। वस्तुएं आती और चली जाती है. व्यवहार बिगड़ जाने से हर समय परस्पर कटुता बनी रहती है। अहंभाव भी व्यवहार को बिगाड़ता है। हमारी बातें क्यों न मानी जायं हम स्वयं श्रेष्ठ हैं। हम किसी से संपत्ति क्यों ले! हम जो कहेंगे वही लोगो को करना पड़ेगा । हमारा सम्मान अधिक क्यो न हो! इत्यादी अहमपूर्ण भावनाएं व्यवहार को बिगाड़ देती है। स्वार्थ भाव और अहंकार जब तक नहीं छोड़े जाएंगे, व्यवहार नहीं सुधर सकता। व्यवहार का सुधार हुए बिना शांति नहीं मिल सकती।

  • Manusmriti in Hindi PDF

स्वार्थ की आसक्ति और अहंकार, ये मनुष्य में प्रबल हैं। माना कि हर प्राणी को स्वार्थ की आवश्यकता है। मनुष्य भी प्राणी है। उसका स्वार्थ तो अधिक व्यापक है। भोजन, वस्त्र, जमीन, मकान सबको चाहीए; क्योंकि इन्हीं से शरीर का निर्वाह चलता है। परन्तु पशु और मनुष्य के स्वार्थ में अन्तर है।

पशुओं के सामने चारा या रोटी डाल दिया जाय तो वे परस्पर लड़कर तथा उसे छीनकर खायेंगे और मनुष्य के बीच रोटी रख दी जाय तो वे उसे बांटकर प्रेमपूर्वक खायेंगें। अतएव जो मनुष्य होकर भी स्वार्थ के लिए लड़ता है और प्रेमपूर्वक निर्वाह नहीं ले पाता, वह पशु है।

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