Msin.in
Powered by Blogger

Manusmriti PDF in Hindi | मनुस्मृति

मनुस्मृति पुस्तक पीडीएफ
मनुस्मृति एक महत्वपूर्ण शास्त्र ग्रंथ है, जिसमें पिछले दो हजार वर्षों से हिन्दू समाज की संरचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मनुस्मृति के अनुसार सारे समाज को चार वर्णों और सभी प्राणियों के जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है, जो वैज्ञानिक होने के साथ-साथ उपयुक्त एवं तर्कसंगत भी है। यहां ऋषि मनु द्वारा रचित मनुस्मृति डाउनलोड कर पढ़ने के लिए दिया जा रहा है- Download PDF

मनुष्य ने जब से जीवन के विकास के लिए प्राण, सम्पत्ति और सम्मान की सुरक्षा के रूप में किसी

अधिनिष्ठान की आवश्यकता को अनिवार्य माना, तभी से समाज और राष्ट्र के अस्तित्व और महत्व को मान्यता मिली तथा व्यक्ति द्वारा एक-दूसरे के प्रति आचरणीय विधान को निश्चित करना भी आवश्यक हो गया। व्यक्ति को सभ्य, सुसंस्कृत और सामाजिक बनाने के लिए, उसके सर्वतोमुखी विकास के लिए, परिवार में उसके स्थान के निर्धारण के लिए, स्त्री-पुरूष के सम्बन्ध की समुचित व्यवस्था के लिए, व्यक्ति द्वारा संचित सम्पत्ति के उत्तराधिकार के साथ-साथ उसके कर्तव्यों और अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दण्ड-व्यवस्था करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई। इन्हीं आवश्यकता के पूरक ग्रन्थों को 'स्मृति' नाम दिया गया, जिन्हें कालान्तर में शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठा मिली।

डाउनलोड करें - Complete Rigveda Hindi Book (PDF)

साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब है और समाज परिवर्तनशील है। राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा अन्याय कारणों से समाज के चिन्तन एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आता रहता है। इस परिवर्तन के अनुरूप ही आचरणीय नियमों में भी परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि पुरानी मान्यताएं बदले युग में असामयिक होने से अनुपयोगी हो जाती हैं। यही कारण है कि विभिन्न युगों में विभिन्न स्मृतियों की रचना के प्रामण मिलते हैं। विष्णुस्मृति, नारदस्मृति, असितस्मृति, देवलस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति तथा मनुस्मृति आदि कुछ परिचित नाम हैं।

'मनुस्मृति' पुस्तक के अंश (Manusmriti PDF Book Excerpt)


ऋषि बोले- निष्पाप महर्षे भृगो। आपने हमें चारों वर्णों के धर्मों की पूरी-पूरी जानकारी देने के कृपा की है। अब आप हमें कर्मों के शुभ-अशुभ फलों की और उनसे निवृत्ति के उपाय की जानकारी देने की कृपा करें। हम आपके मुख से यह सब सुनना चाहते हैं।

महर्षियों के अनुरोध को आदर देते हुए मनुपुत्र धर्मात्मा भृगुजी बोले- ठीक है, आप सम्पूर्ण कर्मयोग के निर्णय (किस कर्म का क्या फल है) को ध्यान देकर सुनें, मैं आपको सुनाता हूं।

मन, वाणी और शरीर के द्वारा मनुष्य जो भी अच्छे-बुरे कर्म करते हैं, उन्हीं के शुभ-अशुभ फलों के अनुसार उनकी उत्तम, मध्यम और अघ्यम अध्यम योनियों में उत्पत्ति होती है।

इस प्रकार मनुष्य तीन साधनों- मन, वाणी और शरीर - से कर्म करता है और उसकी तीन - उत्तम, मध्यम और अध्म - गतियां होती हैं। उस दस लक्षणों (ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय) वाले मनुष्य का सूत्रधार - शुभ-अशुभ कर्म में प्रवृत्त करने - उसका मन ही है।

पराये धन पर अधिकार की इच्छा, पराया अनिष्ट चिन्तन तथा परलोक में अविश्वास - ये तीनों मानस (मन से किये जाने वाले) पाप कर्म हैं।

कठोर वचन, असत्य भाषण, चुगुली तथा असम्बद्ध बकवाद - ये चारों वाणी द्वारा किये जाने वाले पाप कर्म हैं।

अन्याय से परधनहरण, शास्त्र के विधान के अतिरिक्त हिंसा तथा परस्त्री-गमन-ये तीन प्रकार के शारीरिक पाप कर्म हैं।

मानसिक, वाचिक और शारीरिक पाप कर्मों का फल मनुष्य को क्रमशः मन, वाणी और शरीर से ही भोगना पड़ता है।

मनुष्य शरीर से किये कर्मदोषों के फलस्वरूप जड़ (वृक्ष, लता आदि) योनि में, वाचिक दोषों के फलस्वरूप पशु-पक्षी योनियों में और मानसिक पाप कर्मों से अछूत-चाण्डाल योनि में जन्म लेता है।

डाउनलोड करें - Download Ravan Samhita Free (PDF)

अपनी बुद्धी से सोच-विचार करके वाणी, मन और शरीर का दृढ़ता से दमन करने वाला महापुरुष त्रिदण्डी कहलाता है।

सभी प्राणियों पर तीनों - शरीर, वाणी और मन -प्रकार के दण्डों का परिहार करने को, अर्थात किसी भी जीव को मन, वचन और शरीर से दुःख न देने से और काम तथा क्रोध पर संयम रखने से मनुष्य सिद्धी को प्राप्त कर लेता है।

बुद्धिमान महात्मा आत्मा को कर्म करने में प्रवृत्त करने वाले को क्षेत्रज्ञ औ कर्म में प्रवृत्त होने को भूतात्मा कहते हैं।

सम्पूर्ण प्राणियों के साथ अन्तःकरण (अन्तरात्मा) के रूप में रहने वाला तथा सभी जन्मों में प्राप्त होने वाले सुख-दुःखों को भोगने वाला जीव कहलाता है।

पृथ्वी आदि पन्चभूतों से मिले हुए ये दोनों - महान और क्षेत्रज्ञ - भी बड़े-छोटे सभी भूतों में स्थित उस परमात्मा के ही आश्रय में रहते हैं।

इन दोनों - क्षेत्रज और भूतात्मा - से भिन्न उत्तम पुरूष कहलाने वाला कोई और ही है, उसकी ही ‘परमात्मा‘ संज्ञा है। वही तीनों लोकों में प्रविष्ट है, वही सर्वसमर्थ, अविनाशी तथा इस सृष्टि को धारण करने वाला है।

उस परमात्मा के शरीर भूत पन्चभूतों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - के समुदाय से निरन्तर असंख्य शरीर निकलते रहते हैं और उत्कृष्ट-निकृष्ट योनियों में उत्पन्न उन प्राणियों को निरन्तर ही कार्यशील बनाये रखते हैं।

Home » PDF

Popular

  • श्रीमद्भगवद्गीता संपूर्ण अध्याय व्याख्या सहित
  • शिव खेड़ा की 5 प्रेरणादायी कहानियाँ
  • बिल गेट्स की वो 5 आदतें जिनसे वे विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनें
  • विद्यार्थियों के लिए 3 बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ
  • बच्चों के लिए 27 सबसे प्यारी कहानियाँ
  • Steve Jobs की सफलता की कहानी
  • महापुरूषों के प्रेरक प्रसंग
  • 10 सोने से पहले की कहानियां | Bedtime Stories
  • स्वामी विवेकानंद की 5 प्रेरक कहानियाँ
  • अकबर-बीरबल की 27 अनमोल कहानियां
  • दुनिया के सबसे प्रेरक 'असफलताओं' वाले लोग!
  • संपूर्ण गीता सार - आसान शब्दों में जरूर पढ़े
  • युवा उद्यमियों की 5 सफलता की कहानियां
  • देशभक्ति की 3 अनमोल कहानियाँ
  • 3 सफल व्यवसायीयों की कहानी
  • जीवन में समय और उसके प्रबंधन का महत्व
  • 3 सफल व्यवसायीयों की कहानी

Important Links

  • हमारे बारे में
  • संपर्क करें

©    About Us    Privacy   Disclaimer   Sitemap