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[PDF] Saraswati Vandana PDF | श्री सरस्वती वंदना

दोस्तों, चाहे वो Saraswati Chalisa हो या सरस्वती वंदना दोनों पाठों को पढ़कर माँ शारदा के भक्त अनुगृहीत होते हैं। सरस्वती माता के आगे बड़े से बड़े देवता एवं मनुष्य बिल्कुल अप्रभावी, तेज से रहित और दुर्बल हैं। वंदना करते समय हमें देवी को अपने हृदय की अनंत गहराइयों के साथ समर्पण भाव से बुलाना और प्रणाम करना चाहिए। यहां नीचे Shri Saraswati Vandana PDF दिया गया है। इसमें कुल 4 हिंदी और 1 संस्कृत सरस्वती वंदना का संकलन हैं। संपूर्ण वंदना नीचे दिए गए लिंक से download करें.. ⤋⤋


Saraswati Vandana in Hindi PDF | श्री सरस्वती वंदना

Shri Saraswati Vandana in Hindi PDF
PDF Name सरस्वती वंदना | Saraswati Vandana Hindi PDF
No. of Pages 09
PDF Size 1.2 MB
Language Hindi and Sanskrit
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मुख्यतः पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाले सरस्वती पूजा के पर्व पर वाद्य यंत्र साफ किए जाते हैं, पुस्तकें एकत्रित की जाती हैं और वेदिका पर रखकर पूजी जाती हैं, क्योंकि शिक्षा की ये वस्तुएं सरस्वती देवी की निवास मानी जाती हैं। पूजा के समय ही Saraswati Vandana का गायन किया जाता है।

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नीचे 'वचन सुधार' के नाम से एक प्रेरक लेख दिया गया है। इस का संबंध ऊपर दिये गये Saraswati Vandana से नहीं है। इसको बस आप सामान्य रूप से पढ़े और स्वयं के जीवन में उतारे।

वचन सुधार


यह मनुष्य का बड़ा सौभाग्य है कि वह वचन बोलता है और दूसरे के वचनों को सुनकर उसका अर्थ ठीक से समझता है। यदि विचार करें तो पता चलेगा कि हम दिन भर में ऐसी बहुत सी बातें बोल जाते हैं जो अनावश्यक होती हैं। अनावश्यक बोलने वाला अपने आपको झूठ, अश्लील, निंदा-चुगली तथा लाई-लगाई से बचा नहीं सकता। अनावश्यक बोलने वाला बढ़-चढ़ कर बातें करता है। ऐसा आदमी लोगों को अपना अप्रिय तथा शत्रु तक बना लेता है और उसका अपना मन तो सदैव अशांत ही होता है।

अश्लील गन्दी बातों को कहते हैं। संसार में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो ऐसी बातें करते हैं जिससे सुनने वालों के मन में कामादिक विकार उत्पन्न हों। ऐसे लोग स्वयं तो विकारी होते हैं दूसरों को भी अपने वचनों से विकारी बनाते रहते हैं।

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कितने लोग माता, पिता, भाई, चाची और गुरुजनों के सामने तथा उनके साथ भी अश्लील बातें करते हैं। कहीं-कहीं हंसी-मजाक का ऐसा अभद्र और नग्न चित्र सामने उपस्थित हो जाता है जिसको देखना-सुनना एक शीलवान व्यक्ति पसन्द नहीं कर सकता। साले, साली, जीजा, भाभी आदि को गाली देना उनसे अश्लील बातें करना तो लोग आवश्यक समझ लिया है।

बरातों में तो लोग इतने शैतान बन जाते हैं कि वहां उनको गाली और मजाक ही सूझते हैं। परन्तु यह सब असभ्यता, विकार तथा अशांतिवर्धक हैं। इससे अपना व्यक्तित्व हलका हो जाता है। अधिक हो जाने पर इससे परस्पर वैमनस्य भी हो जाता है।

कितने लोगों का स्वभाव है सबके लिए हर समय अनसुहाती बातें करते रहना, दूसरे की बातों को काटते रहना, चाहे कोई सुने या सुने अपनी उलटी-सीधी सबको सुनाते रहना, सबकी बुराइयों को यत्र-तत्र उभाड़ते रहना, जोर से तथा डपटकर बोलना, सबको रे-तू कहना, बात करते समय दूसरे के प्रति तुच्छ भावना प्रकट करना, दूसरे के लिए बड़ा खरखर-भरभर बनना- ये सब कटु भाषण के लक्षण सबके लिए दुखदायी हैं और बोलने वाले के लिए तो मुख्य दुखदायी हैं।

कटु बोलने वाले माता, पिता, गुरु, वृद्ध, मित्र आदि श्रद्धेय, सुहृद और स्वजन भी कांटे के समान लोगों को खटकने लगते हैं। कटु बोलकर लोग अपने को सबका शत्रु बना लेते हैं। हर मनुष्य को यह समझना चाहिए कि जैसे हमें दूसरे की कटु बातें अच्छी नहीं लगती, वैसे दूसरों को भी हमारी की बातें अच्छी नहीं लगेगी।

कितने लोगों को झूठ बोलने की आदत होती है। एक व्यक्ति के कुल दो-दाई सौ मन धान होता होगा; परन्तु वह आस-पास वालों से कहता है हमारे पांच सौ मन धान होता है और जब वह 4-6 मील की दूरी पर चला जाता है तब दो-तीन हजार मन बतलाता है तथा दूसरे जिलों में जाने पर लोगों में डींग हाँकता है कि हमारे यहां दस हजार मन धान होता है।

एक सज्जन मिलने आये तो उन्होंने कहा कि "प्रधान की सीट से मैंने चुनाव लड़ा था और हार गया तो कॉम्पिटिशन में सत्ताईस सौ रुपये खर्च हो गये।" उनके चले जाने पर उनके बड़े भाई आये, उन्होने कहा "छोटा भाई प्रधानी की कॉम्पिटिशन में पांच सौ रुपये खर्च कर दिये।" उसके चले जाने पर उनके पिता आये तो उन्होंने कहा- "छोटा लड़का प्रधानी की कॉम्पिटिशन लड़ा है उसमें उसने पचास-साठ रुपये खर्च कर दिये, जो व्यर्थ का खर्चा है।" पिता ने ही सच्ची बात कही थी। लड़कों ने झूठी बातें कही थीं।

ऐसे लम्पट आदमी अपने लेखे अपनी बड़ाई करते हैं; परन्तु वे समाज की दृष्टि में हलके हो जाते हैं। सांसारिक वस्तुएं अधिक मात्रा में बता देने से अपनी कोई बड़ाई नहीं है। मनुष्य श्रेष्ठ तो सत्यता के पालन में होता है।

लोग असावधानी, प्रलोभन और भयवश झूठ बोलते रहते हैं। यदि मनुष्य सावधान, निष्काम और निर्भय हो जाय तो झूठ बोलने से वह सर्वथा बच सकता है। गृहस्थ लोग तो पहले से ही निश्चय कर रखते हैं कि "हम झूठ का त्याग नहीं कर सकते अर्थात गृहस्थी में झूठ का त्याग नहीं हो सकता।" परन्तु यह निश्चयता बहुत ही खतरनाक है। पहले तो यह निश्चय करना चाहिए कि गृहस्थ भी झूठ छोड़ सकता है और दिन भर में बीस झूठ बोलते हैं तो पहले दो झूठ कम करके अठारह में काम चलाइये। फिर नित्य एक-एक कम करते जाइये।

कुछ दिनों में आपका झूठ एकदम छूट सकता है, कम से कम घट तो सकता ही है।

प्रातः काल उठकर बिस्तर पर ही पांच मिनट तक दृढ़श्चिय करो कि आज हम मुख से झूठ नहीं निकलने देंगे और अपने कार्यों में प्रवृत्त होओगे तो झूठ बोलने का अवसर आते ही आप सावधान हो जाओगे। रात में सोने के पहले दिन भर के कार्यां पर सिंहावलोकन करके देखो, कहीं झूठ तो नहीं निकला है! यदि निकला है तो उस पर ग्लानि करो और आगे उससे बचने की चेष्टा करो। इस प्रकार लगातार चिंतन करते रहने और सावधानी बरतने से आप झूठ से मुक्त होते जायेंगे और जितना झूठ से मुक्त होते जायेंगे उतना प्रसन्न और सन्तुष्ट होते जायेंगे।

मित्रों, ऊपर डाउनलोड कर पढ़ने के लिए दिया गया Saraswati Vandana PDF in Hindi विद्यार्थियों को प्रतिदिन माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष बैठकर पढ़ना चाहिए। अगर PDF डाउनलोड करने में कोई समस्या आए तो हमें यहां सूचित करें।

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