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[PDF] Saraswati Chalisa PDF | सरस्वती चालीसा

दोस्तों, सरस्वती आरती की ही तरह श्री सरस्वती चालीसा का पाठ भी विद्या एवं ज्ञान की प्राप्ति में अति लाभकारी है। अगर किसी व्यक्ति पर माँ सरस्वती की कृपा हो जाए तो वह उत्कृष्ट विद्वान एवं बहुत बड़ा पंडित बन जाता है। सरस्वती माता का जो भक्त प्रतिदिन ध्यान लगाकर सरस्वती चालीसा का पाठ करता है, उसे विद्या की देवी सरस्वती बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा, ज्ञान और अपना कृपा प्रसाद देती हैं। नीचे दिये गए download लिंक पर क्लिक कर Saraswati Chalisa PDF को डाउनलोड करें ⤋⤋


Saraswati Chalisa PDF in Hindi | श्री सरस्वती चालीसा

Saraswati Chalisa Path PDF
PDF Name श्री सरस्वती चालीसा | Saraswati Chalisa Hindi PDF
No. of Pages 04
PDF Size 519.7 KB
Language Hindi
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देवी सरस्वती हर प्रकार की कला का संचालन तथा संरक्षण रकती हैं। उनकी चार भुजाएं शिक्षा में मनुष्य के व्यक्तित्व के चार पहलुओं - दिमाग, बुद्धि, सतर्कता और अहं को दर्शाती हैं।

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सरस्वती माता के एक हाथ में धार्मिक ग्रंथ और दूसरे हाथ में कमल होता है। अपने दूसरे दोनों हाथों से वे वीणा पर प्रेम और जीवन का संगीत बजाती हैं। उन्होंने सफेद कपड़े (शुद्धता) पहने होते हैं और वे हंस की सवारी करती हैं।

नीचे दिया गया 'नर्क और स्वर्ग' पर लेख केवल आपके पढ़ने एवं ज्ञान में वृद्धि के लिए है। इसका संबंध ऊपर दिये गए Saraswati Chalisa से बिल्कुल नहीं है।

नर्क और स्वर्ग


लोग पूछते हैं कि मर जाने के बाद क्या गति होगी, मैं पूछता हूं मरने के पहले क्या गति है? मरने के बाद की चिंता न करके मरने के पहले (जिते-जी) की गति की चिंता करना अत्यन्त आवश्यक है।

व्यवहार की शुद्धि के बिना परमार्थ की उन्नति नहीं हो सकती। हम जिनके बीच रात-दिन रहते हैं उनसे यदि हमारा व्यवहार गंदा है तो हम कभी आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकते। जिसके मन में मोह-वैर, राग-द्वेष, ईर्ष्या-घृणा, क्रोध-जलन, परसंताप की आग लगी हुई है, वह स्वयं कैसे शांत हो सकता और दूसरो को कैसे शांति दे सकता है!

संसार में घट-घट और घर-घर में राग-द्वेष की आग लगी हुई है। पिता-पुत्र में बोल-चाल नहीं है, पति-पत्नी में अनबन है, भाई-भाई पास-पास नहीं बैठ सकते, पड़ोसी-पड़ोसी एक दूसरे को देखना नहीं चाहते, गुरु-शिष्य का नहीं पटता, गुरूभाई-गुरुभाई में ईर्ष्या-द्वेष चलते हैं। संसार क्या अजीब नरक है! लोग मरने के बाद नरक की कल्पना करते हैं। अरे, जसको आज नरक है उसको मरने के बाद भी नरक है और जिसको आज स्वर्ग है उसको मरने के बाद भी स्वर्ग है। ईर्ष्या-मोह, घृणा-द्वेष, जलन, परसंताप, काम, क्रोध आदि में जलते रहना ही नरकवास है और दया, क्षमा, समता, प्रेम, मैत्री, सद्भावना, परहित चिंतन, संतोष में निवास करना ही स्वर्गवास है। ये सारे गुण हमें संकटमोचन हनुमान जी की बजरंग बाण पीडीएफ पढ़कर हम ग्रहण कर सकते हैं।

संसार में ईर्ष्या-द्वेष की ऐसी आग लगी हुई है कि एक भाई दूसरे भाई के साथ बैठकर भोजन नहीं कर सकता। पिता और पुत्र एक दूसरे को नहीं देख सकते। पति को देखकर पत्नी गरम हो जाती है तथा पत्नी को देखकर पति बड़बड़ाने लगता है। यही आग हर जगह लगी है; विरले नर-नारी अपने विचार पवित्र रखकर दूसरे से समता और प्रेम का व्यवहार बरतते हैं।

संसार में ईर्ष्या-द्वेष की ऐसी आग लगी हुई है कि एक भाई दूसरे भाई के साथ बैठकर भोजन नहीं कर सकता। पिता और पुत्र एक दूसरे को नहीं देख सकते। पति को देखकर पत्नी गरम हो जाती है तथा पत्नी को देखकर पति बड़बड़ाने लगता है। यही आग हर जगह लगी है; विरले नर-नारी अपने विचार पवित्र रखकर दूसरे से समता और प्रेम का व्यवहार बरतते हैं।

लोगों के दिलों में इतने अहंकार और स्वार्थ घर कर गये हैं कि प्रेम और समता की वस्तु उड़ गई हैं। जितना स्वार्थ अधिक होता है उतना प्रेम घटता है, जितनी स्वार्थ-परत घटेगी उतना प्रेम बढ़ेगा।

जो प्रातः उठते ही अपने आस-पास वालों से उलझ जायेगा, उसे दिन भर कैसे शांति मिलेगी! जिनसे हमें रात-दिन व्यवहार बरतना है, जब प्रातः उठकर उन्हीं से हम खौल जाते हैं तब हमारा चित कैसे शांति पा सकता है।

अतएव हम यदि जीवन में तनाव रहित अन्तःकरण की सरल अनुभूति, प्रसन्नता एवं शांति चाहते हैं तो अपने स्वार्थपरता एवं अहंकार को घटाकर जीवन को प्रेम से परिपूर्ण करें। हृदय में प्रेम का ऐसा अजस्त्र स्त्रोत फूट पड़ना चाहिए जो पूरे जीवन को प्रेम की अनवरत धारा से आप्लावित कर दे।

प्रातःकाल सोकर उठो, जो व्यक्ति तुम्हारे सामने आये उस पर प्रेम और करुणा की बौछार करना शुरू कर दो। दुष्ट पर भी प्रेम प्रकट करो, यदि प्रेम न प्रकट कर सको, तो कम-से-कम उस पर घृणा एवं द्वेष तो न प्रकट करो। अपने हृदय में घृणा एवं द्वेष तो रह ही नहीं जाना चाहिए, जो उनका किसी पर प्रकट होने का अवसर आये। प्रेम, समता और प्रसन्नता से आपकी जिंदगी सदैव महकती रहनी चाहिए।

हृदय में प्रेम, वाणी में मिठास तथा बरताव में कोमलता- इन तीनों के पूर्ण प्रयोग करने से आपका वातावरण मधुमय, अमृतमय एवं सुगंधी से भरा हुआ हो जाएगा। हम जिधर चलें, बैठें और बसें- प्रेम की गागर उड़ेलते चलें, मुख से मधुर वाणी रूपी कुसुम की कलियां खिलाते चलें, और अपने कोमल व्यवहार से घर-परिवार तथा समाज को स्वर्ग बना दें।

मनुष्य के पास विद्याबल, धनबल, जनबल, शरीरबल, स्वामित्वबल आदि हों चाहे न हो। परन्तु (गूंगों के अतिरिक्त) वाकबल तो है ही। मनुष्य दूसरे को कुछ नहीं दे सकता है तो कोई बात नहीं, मीठी वाणी तो दे सकता है। जो मीठी वाणी भी नहीं दे सकता, वह कितना दरिद्र है!

हमें मनुष्यों से व्यवहार करना है चाहे मीठी वाणी बोलकर करें और चाहे तीखी वाणी बोलकर। हम मीठी वाणी बोलकर दूसरे लोगों को भी अपना मित्र बना लेते हैं और तीखी वाणी बोलकर अपने लोगों को भी अपना शत्रु बना लेते हैं। श्री राम जी (Ram Raksha Stotra) ने अपने मीठे व्यवहार से वनवासियों को अपना मित्र बनाकर एक लंबी सेना बना ली थी, जो रावण जैसे बलशाली को पराजित करने में समर्थ हुई और रावण जैसा महान वीर और विद्वान अपने व्यवहार की कटुता से विभीषण भाई को ही अपना शत्रु बना लिया और उसका परिणाम उसका अपना विनाश हुआ।

अहंकार, हठ, निंदा, घृणा, ईर्ष्या आदि को अपने जीवन में स्थान देकर तुम अपने परिवारवालों, समाजवालों एवं अनुगामियों को ही अपना विरोधी बना लेते हो। कोई अपनी सज्जनता से विरोधी न बने तो कम-से-कम तुमसे अलग तो हो ही जायेगा। कोई कितना ही महान हो, तानाशाह बनकर अपने साथियों पर अधिकार नहीं जमा सकता। 'आर्थर ब्रियाॅ' ने ठीक ही कहा है- "हर तानाशाह अपने चारों ओर रेगिस्तान बना लेता है। इससे वस्तुपरक बुद्धि कम होता जाता है और अन्त में तानाशाह अकेला रह जाता है। रेगिस्तान पूरा हो जाता है।"

जो आदमी राग-द्वेष में अपने को उलझा लेता है और अपने आस-पास के मनुष्यों से अपना व्यवहार कटू कर लेता है; उसका मन पापी और मलिन हो जाता है। उसका अन्तःकरण शुद्ध होना कठिन हो जाता है। वह व्यवहार में ही सुखी नहीं रहता, फिर उसकी पारमार्थिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होना तो असंभव ही हो जाता है। ऐसे आदमी की जब तक अपनी भूल न सुधरे केवल दुख भोगना पड़ता है।

अतएव कटुवचन, परनिन्दा परछिद्रान्वेषण, राग-द्वेष, ईर्ष्या-घृणा, क्रोध-जलन, कटुता इत्यादि को त्यागकर मीठा-वचन, परहितैषिता, प्रेम, समता, सरलता आदि को अपने जीवन में धारण एवं साथियों में व्यवहार करके इसी जीवन में स्वर्ग उतारो। आप जहां रहो प्रेम की अमृत धारा बहती रहनी चाहिए।

ऊपर डाउनलोड के लिए दिया गया Saraswati Chalisa PDF का पाठ आपके लिए कृपा प्रसाद प्रदान करने वाला है। माँ सरस्वती के अनेक नाम हैं, जैसे शारदा, वाग्देवी, अंबा, जगन्माता आदि। Saraswati Chalisa in Hindi PDF अवश्य डाउनलोड कर पढ़े और बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करें।

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