तेनालीराम हमारे देश के महान राजा कृष्णदेवराय के राज्य के आठ श्रेष्ठ कवियों में से एक थे | जिस प्रकार अकबर के राज्य में बीरबल हर समस्या का समाधान हंसते-हंसाते कर देते थे वैसे ही तेनालीराम कृष्णदेव राय के राज्य के जटिल से जटिल विषय को अपने परिहास द्वारा हल कर देते थे। तेनालीराम का असली नाम रामलिंग था। देश में तेनालीराम की सैकड़ों कहानियां प्रसिद्ध हैं। यहां हम उनकी हास-परिहास से भरी प्रसिद्ध कहानियों का संकलन दे रहे हैं। आशा है आपको ये कहानियां रूचिकर लगेगी।
तेनालीराम की प्रसिद्ध कहानियां
दोस्तों, आप तेनालीराम की संपूर्ण कहानियां यहाँ पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते है -
DOWNLOAD PDF. तेनालीराम की इन कहानियों को 'गंगा प्रसाद शर्मा' द्वारा लिखा गया हैं। इस पुस्तक में कुल 60 कहानियाँ हैं। हर कहानी हास्य के साथ-साथ शिक्षा भी समेटे हुए हैं। इसे अभी तक 1148 से ज्यादा लोगों ने डाउनलोड कर पढ़ा है।
Note: यहां हम आपकी सुविधा के लिए संपूर्ण कहानियों को एक पीडीएफ में दे रहे है ताकी आप इन्हें एक ही जगह अपने मोबाईल फोन या कंप्यूटर पर आसानी से पढ़ सके। डाउनलोड करने में अगर कोई समस्या हो तो नीचे कमेंट जरूर करें।
सेठजी
सर्दी का मौसम था। तेनालीराम शाम के समय राजमहल से वापस लौट रहा था। तभी उसे सामने एक भिखारी नजर आया। तेनालीराम ने जेब से एक चाँदी का सिक्का निकाल कर भिखारी के हाथ पर रखा। परन्तु भिखारी उसे लेने से इनकार करते हुए बोला, 'श्रीमान्! मुझे भीख नहीं चाहिए। मैं जानता हूँ, आप राजदरबार के अष्टदिग्गजों में से एक हैं। मेरी एक समस्या हैं। मैं आपसे सिर्फ उसका समाधान चाहता हूँ।'
"ओह! बताओ भाई तुम्हारी क्या समस्या है?" तेनालीराम ने भिखारी से पूछा।
कुछ हिचकते हुए भिखारी बोला, "मैं जानता हूँ कि मैं एक गरीब भिखारी हूँ, पर मेरी दिली इच्छा है कि लोग मुझे 'सेठजी' कह कर पुकारें। दुर्भाग्यवश, मुझे कोई तरीका नहीं सूझ रहा कि लोग मुझे 'सेठजी' कहकर बुलाएँ।"
तेनालीराम कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, "मेरे पास तुम्हारी समस्या का समाधान है। देखना जल्द ही लोग तुम्हें 'सेठजी' कहकर बुलायेंगे। बस मैं जैसा कहूँ, वैसा ही करते जाना। तुम इस जगह से कुछ दूर खड़े हो जाओ और जब भी तुम्हें कोई 'सेठजी' कह कर पुकारे, उसके पीछे ऐसे दौड़ना जैसे उसे मारने आ रहे हो।" तेनालीराम ने उस भिखारी को समझाया और वहाँ से चला गया।
भिखारी उस जगह से कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया। इस बीच तेनालीराम ने कुछ शैतान बच्चों को पास बुलाया और भिखारी की ओर इशारा करते हुए बोला, बच्चों, वो आदमी देख रहे हो, जो वहाँ खड़ा है। उसे सेठजी कहकर पुकारने से वह बहुत चिढ़ता है।
बच्चों को ऐसी बात पता चलते ही शैतानी सूझी। जल्द ही सभी बच्चे उस भिखारी के आस-पास खड़े होकर जोर-जोर से सेठजी.... सेठजी चिल्लाने लगे। तेनालीराम के बताये अनुसार वह भिखारी उन बच्चों के पीछे यूँ भागा मानों उन्हें मारने आ रहा हो। बच्चों की देखादेखी अन्य लोग भी भिखारी को 'सेठजी' कहकर बुलाने लगे। जितना ही भिखारी सबके पीछे भागता, उतना ही वे लोग उसे चिढ़ाने के लिए सेठजी कहते हुए उसके पीछे भागते। कई दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। इन सबका नतीजा यह हुआ कि वह भिखारी पूरे हम्पी में सेठजी के नाम से मशहूर हो गया।
शिक्षा (Moral of Story): थोड़ा दिमाग लड़ाने से बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी समस्या का समाधान निकल आता है।
सबसे बड़ा भिखारी
एक दिन राजा कृष्णदेव राय कुछ दरबारियों के साथ घूमने निकले। राजधानी के बजारों और मंदिरों के सामने भिखारियों की भीड़ थी। उन्होंने आकर दरबारियों से पूछा, तो वे बोले- "महाराज, विजयनगर में भिखारियों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है।"
सुनकर राजा चैंके। फिर बोले - तो क्या हमारी शासन व्यवस्था ठीक नहीं है। भला इतने लोगों को भीख क्यों मांगनी पड़ रही है?
सुनकर सब चुप। किसी की समझ में नहीं आया कि इस सवाल का क्या जवाब दिया जाए?
कुछ देर बाद राजा ने तेनालीराम को बुलाकर कहा तेनालीराम, जरा पता लगाओ कि हमारे राज्य में भिखारियों की संख्या इतनी क्यों बढ़ती जा रही है।
तेनालीराम बोला - महाराज, मुझे इसके लिए सात दिन की छुट्टी चाहिए।
क्यों? राजा ने पूछा।
इसलिए महाराज कि मैं भी भीख मांगकर थोड़ी कमाई कर लूं। फिर आपके सवाल का जवाब भी ढूंढ़ लूंगा- तेनालीराम बोला।
सुनकर राजा हंस पड़े। बोले- ठीक है तेनालीराम, पर सात दिन के अंदर मेरे सवाल का जवाब मिलना चाहिए।
एक-एक करके छह दिन बीत गए। राजा को उत्सुकता थी कि भला तेनालीराम कर क्या रहा है। उन्होंने दरबारियों से पूछा तो सभी मुंह फेरकर हंसने लगे। आखिर पुरोहित ने कहा - महाराज, वाकई तेनालीराम भीख मांग रहा था, हमने खुद अपनी आंखों से देखा था।
हाँ, महाराज तेनालीराम बहुत जिद्दी हो गया है। अब तो उसे राजदरबार की प्रतिष्ठा की भी परवाह नहीं है- मंत्री ने कहा।
राजा को क्रोध आ गया। बोले - अच्छा तो अब तेनालीराम ने भीख मांगना भी शुरू कर दिया। राजा अपनी बात पूरी कर पाते इससे पहले भिखारियों का एक दल वहां आ गया। उनमें से आगे वाला भिखारी बोला - महाराज, अभी भीख मांगना कहां सीख पाए हैं? भीख मांगकर पहले तो गुजारा ही कहां होता है? फिर उसमें न जाने किस-किस का हिस्सा।
किसका हिस्सा - राजा ने पूछा।
इसका उत्तर तो हम नहीं राज्य का सबसे बड़ा भिखारी दे सकता है, जो हम सबसे भीख मांगवाता है।
कौन है सबसे बड़ा भिखारी? राजा ने चिल्लाकर कहा। यह मंत्री जी बताएंगे। महाराज, यह भिखारी पता नहीं क्या उल्टा-सीधा बोल रहा है। आप इसकी बात मत सुनिए -मंत्री ने आग बबूला होकर कहा।
ठीक है महाराज, आप उस भिखारी की बात मत सुनिए, पर मेरी बात तो आपको माननी पड़ेगी। कहते-कहते आगे खड़े तेनालीराम ने अपना फटा चोगा उतारा, तो सामने तेनालीराम खड़ा था। देखकर राजा चकराए। तेनालीराम बोला - महाराज, इतने समय से भिखारियों के बीच रहकर मैंने सबसे बड़ा भिखारी खोज लिया है। मंत्री जी बताइए कि उन्होंने उसे कहां छुपा दिया है, वरना तो....
सुनकर मंत्री के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं। उसने मान लिया कि उसका दूर का रिश्तेदार रघुराज को गिरफ्तार कर लिया। देखते ही देखते राज्य से भिखारी गायब हो गए। मंत्री को कड़ी फटकार पड़ी। उसने आगे से गलत लोगों का साथ न देने की कसम खाई। हर कोई तेनालीराम की प्रशंसा कर रहा था।
पकड़ा गया शेर
तेनालीराम कई दिन बाद अपने गांव गया तो पता चला कि गांव वाले एक शेर के कारण बहुत दुखी हैं। शेर जंगल से भागकर गांव में आ गया था और पास ही झाड़ियों में छिपकर रह रहा था। गांव के कई लोगों को उसने अपना शिकार बनाया था।
जब तेनालीराम घर पहुंचा, तो एक बूढ़े आदमी ने कहा - अरे, तेनालीराम तुम्हारी चतुराई के चारों ओर खूब चर्चे हैं तो तुम शेर के आतंक से गांव वालों को क्यों नहीं बचाते?
तेनालीराम चकराया। बोला - लेकिन शेर को तो शिकारी पकड़ेंगे। मैं भला इसमें क्या कर सकता हूं? हां, वापस राजदरबार जाऊंगा तो किसी कुशल शिकारी को यहां भेज दूंगा। जो आप लोगों को शेर के आतंक से मुक्त कराए।
तब तक तो यह दुष्ट शेर और कईयों को अपना शिकार बना लेगा। जो तुमसे हो सकता है करो। तुम्हारे लिए यह इतना मुश्किल तो नहीं है - उस बूढ़े आदमी ने थोड़ी नाराजगी से कहा। गांव में एक युवक तेनालीराम से बहुत जलता था। उसने तीखे कटाक्ष के साथ कहा - अरे रहने दीजिए इनकी चतुराई तो राजमहल में ही चलती है, गांव में आते ही सारी चतुराई हवा हो जाती है। यह भला क्या करेंगे और क्यों करेंगे?
तेनालीराम कुछ बोला नहीं, चुप रहा। अगले दिन उसने पजा लगाया कि शेर अक्सर गांव की बाहरी सीमा पर पूर्व से पश्चिम की ओर जाता है। वहीं उसके पैरों के निशान थे। ज्यादातर गांव वालों को यह बात पता थी, इसलिए अब वे उधर नहीं जाते थे। पर अनजान लोगों को यह सब पता नहीं था और वे शेर के चंगुल में फंसकर मर जाते थे। रोज कोई न कोई हादसा हो जाता था।
तेनालीराम ने कुछ देर सोचा। फिर कहा- कुछ नौजवान हाथ में लाठी, रस्सी और फावड़ा लेकर मेरे साथ चलें। मैं देखना चाहता हूं, वह जगह कौन-सी है? शेर नहीं तो जरा शेर के पावों के ही दर्शन कर लूं। सुनकर सब मुस्कुराए।
आखिर तेनालीराम सबके साथ उस जगह पहुंचा, जहां शेर ने ज्यादातर लोगों का शिकार किया था। उसने चारों तरफ नजरें दौड़ाई, फिर बीच में एक जगह गड्ढ़ा खोदने के लिए कहा। फिर उस गड्ढ़े को घास-फूस और झाड़ियों से अच्छी तरह से ढक दिया। गडढ़े के दूसरी और एक बकरी बांध दिया गया। फिर सब एक ऊंचे मचान पर बैठ गए।
थोड़ी देर में ही शेर के आने की आहट सुनकर बकरी मिमयाने लगी। बकरी जितनी तेजी से मे-मे चिल्ला रही थी, शेर भी उतनी ही तेजी से पूंछ उठाए उसकी ओर चला जा रहा था पर थोड़ा आगे आते ही अचानक गड्ढ़े में उसका पैर पड़ा और वह धप्प से उसमें गिर गया। उसी समय झटपट गांव के जवान लाठियां लिए हुए आए और शेर को बांधकर एक जंगल में छोड़ आए। फिर जंगल और गांव के बीच बड़े-बड़े कंटीले तार लगवा दिए गए।
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कुछ दिन बाद छुट्टियां खत्म होते ही तेनालीराम अपने गांव से राजदरबार पहुंचा। तब तक शेर को पकड़ने का किस्सा भी विजयनगर में पहुंच चुका था। राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा - सुना है तेनालीराम तुमने गांव में कोई शेर पकड़ा है, तुम्हें डर नहीं लगा?
तेनालीराम हंसकर बोला - महाराज यहां राजदरबार में ऐसे-ऐसे महान शूरवीरों के व्यंग बाण झेलता हूं और उन्हें भी बर्दाश्त करता हूं। तो फिर भला जंगल का एक अदना-सा शेर मेरा क्या बिगाड़ लेता? सुनकर महाराज हंस पड़े, परन्तु मंत्री और राजदरबारी कुछ झेंप गए थे।