सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदासजी ने प्रभु श्री राम के परम प्रिय भक्त हनुमानजी की लीलाओं का विशद् वर्णन किया है। इस अध्याय में प्रस्तुत की गई अद्भुत और मनोहारी लीलाओं के कारण ही तुलसीदास ने इसे 'सुंदरकांड' का नाम दिया। इस अध्याय में हनुमानजी की सुंदर लीलाओं के साथ ही राजनीति, ज्ञान, कर्म और भक्ति के भी सुंदर दर्शन होते हैं। तुलसीदास सुंदरकांड पाठ हिंदी में PDF के द्वारा संदेश देते हैं कि भक्त को सदैव ज्ञान, भक्ति और कर्म से युक्त होना चाहिए। जीवन में ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय निश्चित सफलता की ओर अग्रसर करता है। उम्मीद है जिस प्रकार आपने Hanuman Chalisa का Hindi PDF इस ब्लॉग पर पढ़ा उसी प्रकार नीचे दिया गया गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित Shri Sunderkand PDF आपके आधुनिक जीवन में अपना दैनिक स्थान बनाएगा एवं आपके परिजनों के लिए अत्यंत उपयोगी एवं प्रेरणादायी सिद्ध होगा।
Sunderkand in Hindi PDF | सुंदरकांड पाठ
आपकी जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट या दुख है तो आप संकल्प लेकर सुंदरकांड के साथ 3 दिनों तक संकटमोचन हनुमान जी की
Shri Bajrang Baan PDF, अष्टक, बाहुक, आरती आदि का स्तुति पाठ कर सकते है। Sunderkand path के साथ स्तुति पाठ करने से आपके मन की सभी इच्छाएं एवं अभिलाषाएं पूरी होती है और सिर्फ एक नहीं बल्कि अनेक समस्याओं का निवारण भी शीघ्र होने लगता है।
मित्रों, ऊपर आपने जो
Sunderkand PDF in Hindi डाउनलोड कर पढ़ा, वो मूल रामायण का ही एक पाठ है। आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित आदिकाव्य रामायण भारतीय संस्कृति का अमूल्य रत्न है। यह राम के चरित्र का अनूठा काव्यमय वर्णन ही नहीं प्रत्युत भारतीय धर्मप्राण संस्कृति का अद्वितीय उपास्य ग्रन्थ है। रामायण का 'सुंदरकांड' आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
राम कथा के मार्मिक अंशों को समेटे हुए यह कांड अपने आप में अद्भुत है। इसमें जीवन की विविध दशाएं, उनका कोमल और कठोर अंश, आदर्श और यथार्थ की भावभूमि पर समस्याओं का समाधान इतने रम्य रूप में प्रस्तुत किया गया है कि पाठक उसमें अभिभूत होकर रह जाता है।
सुंदरकांड कब और क्यों पढ़े? | Sunderkand Path PDF
विभिन्न शुभ अवसरों व शुभ कार्यों के आरंभ में सुन्दरकाण्ड का पाठ कराने का विद्वानों द्वारा विशेष महत्व बताया गया है। Sunderkand Path कराने से मनोवांछित (अभिलषित) फल की प्राप्ति तथा आत्मा की शांति के साथ ही घर में सुख-समृद्धि भी होती है, ऐसा माना जाता है।
धर्म-विशारदों की ऐसी मान्यता है कि सुंदरकांड के पाठ से महावीर हनुमान अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी कृपा सरलता से प्राप्त होने लगती है। सुंदरकांड में हनुमानजी ने अपने अनुपम साहस, अतुलित बल और प्रखरतम् बुद्धि के द्वारा सीताजी की खोज की थी। अतः यह अध्याय हनुमानजी की सफलता को दर्शाता है और उनके भक्तों को सत्कार्य करते हुए जीवन में सफल होने की प्रेरणा प्रदान करता है।
वास्तव में सुंदरकांड एक भक्त की भव्य विजय का अध्याय है, जो अपने इष्ट प्रभु श्री राम की कृपा और अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अति विस्तृत समुद्र को लांघने का चमत्कार कर सकता है। इसी कारण रामचरितमानस के इस अध्याय को न केवल सुंदरकांड का नाम दिया गया, बल्कि इसे अत्यंत श्रेष्ठ भी माना गया है।
सुंदरकांड रामचरितमानस का वह खंड है जो कठिनतम परिस्थितियों में डूबते व्यक्ति को भी तिनके का सहारा बनकर उबार लेता है। वह दुर्गम और दुरूह परिस्थितियों से संघर्ष करने की ताकत प्रदान करता है और विश्वास दिलाता है कि जिस तरह पवनपुत्र हनुमान को याद दिलाने पर ध्यान आता है कि वे तो अतुलित बलधामा हैं, उसी प्रकार हर व्यक्ति के पास अदम्य साहस और असीम ताकत है। जरूरत है कि हम इस शक्ति को पहचानें और किसी तरह का समझौता किए बिना प्रतिकूल परिस्थितियों से लोहा लेने के लिए तैयार रहें।
जिस तरह भगवान हनुमान के मार्ग में बाधाएं भी मिलती हैं और प्रलोभन भी मिलते हैं मगर वे इन दोनों से तटस्थ अपने लक्ष्य की और उन्मुख रहते हैं। सुंदरकांड का पाठ कर व्यक्ति भी अपने भीतर उसी तरह की तटस्थता और दृढ़ता का विकास करता है जो उसे अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देता है। मगर तकलीफ इस बात की है कि आज के समय में ऊर्जा के इस अपरिमित भंडार को खोलने और पढ़ने के प्रति समकालीन पीढ़ी के भीतर उस तरह का आकर्षण नहीं रहा है।
सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का सबसे मनोहर अध्याय है। जिस तरह महाभारत का विराटपर्व सर्वोत्तम अंश है, उसी तरह श्रीरामचरितमानस में सुंदरकांड सबसे अच्छा अंश है। इसके श्रेष्ठ होने की अवस्था का कारण का वर्णन करते हुए कहा गया कि -
श्री सुंदरकांड में भगवान राम सुन्दर हैं, पूरी कथा अतिसुन्दर है, माता सीता सुन्दर हैं। इसके अलावा इसमें श्री हनुमान जी का पवित्र जीवन चरित्र है जो सेवकों के लिए कल्पवृक्ष है।
सुंदरकांड का पाठ करने के चमत्कारिक 3 फायदे
- अगर आपकी कुंडली का कोई ग्रह आपके जीवन में नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है तो सुंदरकांड का नियमित पाठ करने से उस ग्रह का प्रभाव कम हो जाता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को इसका पाठ करने से मंगल तथा शनि ग्रह के बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
- अगर आपको लगता है कि आपके अंदर किसी बुरी नकारात्मक शक्ति का वास हो गया है तो आपको शिघ्र ही सुंदरकांड का पाठ शुरु कर देना चाहिए। इसके पाठ के प्रभाव से आपके घर में भूत-प्रेत व प्रेतआत्मा से संबंधित किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता। मन लगाकर इसकी चौपाइयों को गाने से आपके घर के लोगों का मन भी अशांति से बचता है। ऐसी कोई विशेष परिस्थिति हो जब आप इसका पाठ नियमित रुप से न कर पाये तो प्रयास करे की कम से कम सप्ताह में एक बार अवश्य करें।
- इस पाठ को करने की सलाह कई बार आपको ज्योतिषाचार्यों या विद्वानजनों से मिलती होगी। वे ऐसी सलाह बार-बार इसलिए देते हैं; क्योंकि वे इस पाठ के महत्व को जानते है। इसका पाठ करने से आपकी जिन्दगी में मौजूद और भविष्य में आने वाली सभी परेशानियां छू मंतर हो जाती है। इससे आपके आत्मविश्वास में भी बहुत वृद्धी होती है तथा आप जीवन में सफलता की ओर अग्रसर होते है। आपकी बुद्धि तीव्र होती है।
रामायण के इस कांड को 'सुंदरकांड' क्यों कहा जाता है?
राम के बाल स्वरूप के वर्णन को बालकाण्ड कहते हैं, लंका में राम के स्वरूप को लंकाकाण्ड के स्वरूप में हम जानते है।
प्रश्न उठता है इस अध्याय को सुंदरकांड क्यों कहा है?
सुंदरकांड के माध्यम से जो पूरी चर्चा कही गयी है उसका प्रमुख केन्द्र हनुमान है। परन्तु प्रत्यक्ष और परोक्ष स्वरूप में जिनका वर्णन मुख्यतः किया जा रहा है वो 'राम' हैं। यहां सुंदरकांड के स्वरूप में जो नाम दिया गया है उसका संबंध हनुमान से नहीं है, सीधे राम से है।
राम का सौंदर्य और पूर्णया सुंदरकांड में ही प्रकट होती है। अब वो किस प्रकार से? ये हम सुंदरकांड में देखेंगे, समझेंगे। यहां सुन्दरकाण्ड 'राम' पर केन्द्रित होकर प्रस्तुत कर रहे है। जो ग्रंथ है ही राम के चरित्र का वर्णन करने के निमित्त लिखा हुआ, उसमें सुंदरकांड नामक स्थान पर राम का चरित्र किस प्रकार से उभर कर आ रहा है? ये बात जब समझ में आती है तो शब्द की सार्थकता स्वतः ही प्रकट होती है।
राम चरित्र में यदि प्रवेश करें तो जानेंगे कि राम किस प्रकार से मानवीय स्वरूप में अकर्ता भाव को प्रस्तुत करते है। समर्पण सदैव स्वयं के अकर्ता भाव को धारण करने से ही प्रकट होता है। जो कर्ता है अर्थात् जो स्वयं को कर्ता समझता है वो कभी भी समर्पण को प्राप्त नहीं कर सकता। राम हो अथवा कृष्ण ये दोनों ही चरित्र मानवीय जीवन में किस प्रकार से जीया जाये? इसके उत्कृष्ट उदाहरण के स्वरूप में सदैव से माने जाते रहे हैं। मनुष्य की पूर्णता ही राम और कृष्ण के स्वरूप में है। दो छोर होते हुये भी ये पूर्ण है।
मानव अपने मानवीय स्वरूप में ही जीवन को व्यतीत करते हुये किस प्रकार से पूर्णता को पाये? ये बात ज्ञानियों ने जिन दो जीवन के समक्ष देखी उन्हें ही 'भगवान' कहा। इन दोनों ही व्यक्ति श्रेष्ठों ने स्वयं को भगवान कभी नहीं कहा। यहां ध्यान देने योग्य है भगवान शब्द का प्रयोग किया गया है। इन दोनों ही श्रेष्ठ स्वरूपों ने स्वयं को सहज, सरल रखते हुये केवल अपना मानवीय जीवन जीया है, अपनी विशिष्ठता को सिद्ध करने का इनमें कोई ध्येय नहीं था। मानवीय जीवन अपने शुद्धतम स्वरूप में किस प्रकार से जीया जाये, यही बात हम रामचरित्र द्वारा समझते है। राम के जीवन के विविध खण्डों का जब उल्लेख किया जाता है तो जहां राम चरित्र के विषय में सबसे अधिक मूल्यवान बातों को ज्ञानियों ने विवेचन कर प्राप्त किया तो पाया कि किसी भी मानवीय स्वरूप की इससे उत्कृष्ठ अवस्था नहीं हो सकती, जो समय विशेष में 'राम' के मध्य से देखी गयी।
स्वयं की शक्तियों तथा अवस्था का व्यर्थ ही तथा अन्य भयभीत करने के लिये स्वयं के दंभ के कारण अथवा किसी अन्य के अहंकार को मिटाने के लिये जानकर जो इनका प्रयोग नहीं करते हैं वो 'राम' है।
प्रथम विषय जिस ओर ध्यान जाता है वो यही प्रकृति की ओर समर्पित भाव है। प्रकृति की सीमाओं में उनका उल्लंघन किये बिना, प्रकृति को पूर्ण सम्मान देते हुये जो व्यवहार है वही 'राम' की मर्यादा है।