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[PDF] Hanuman Ashtak PDF | हनुमानाष्टक

संकट मोचन हनुमानाष्टक का पीडीएफ
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कभी-कभी आदमी अपने मन में सोचता है कि मैं जब उस जगह जाऊंगा, तब अमुक-अमुक लोग मेरा विरोध करेंगे; लेकिन सच्चाई ऐसी नहीं रहती। जब आदमी उस जगह जाता है, वे लोग उसे प्रेम से मिलते हैं। कितने आदमी तो अपने संदेही स्वभाव से अपने स्वजनों को अपना विरोधी मानकर उन सबसे अपने आपको कटा लेते हैं।

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एक कौआ को जब बच्चा हुआ, तब उसने अपने बच्चे से कहा कि जब आदमी को जमीन पर झुकते देखना, तब समझ लेना कि वह तुम्हें मारने के लिए पत्थर उठा रहा है और तुम तुरंत बिना देर किये उस जगह से उड़ जाना।

बच्चे ने कहा कि यदि वह आदमी अपने घर से ही जेब में पत्थर रख लाया हो तो! कौआ ने कहा "बेटा! तू मुझसे भी चतुर है।"

इस तरह कौए बड़े चालाक होते हैं; परन्तु उसकी चतुराई ही उसकी मूर्खता है। वह सब समय सब पर संदेह करता है। अन्य पक्षी शांत रहते हैं। किन्तु कौआ जहां कहीं बैठता है वहां चारों ओर चकर-चकर ताकता रहता है, मालूम होता है कि वह बहुत बड़ा खजाना बांधे घूम रहा है और लोग उसे लूटने की ताक में हैं।

संदेही स्वभाव का व्यक्ति सब समय अपने विषय में लोग क्या सोचते और विचारते है, यह जानना चाहते है। लोग मुझे किस तरह समझ रहे हैं, इसकी चिन्ता उसे सताती रहती है। परन्तु इसकी दवा तो अपने पास ही है। यदि मैं ठीक हूं तो मेरी अच्छाई छिप नहीं सकती और यदि मैं गलत हूं तो केवल दूसरे की नजरों में मेरा अच्छा बनने को ढोंग बेकार है।
---*---

प्रेम, श्रद्धा और विश्वास के गारे से ही विचार की ईटें जोड़ने से व्यवहार का पक्का भवन खड़ा हो सकता है। परस्पर विचारों का सामंजस्य तब तक नहीं हो सकता है, जब तक आपसी संदेह सर्वथा छोड़ नहीं दिया जाता। आपस में संदेह एवं शक होने से बड़े-बड़े परिवार, समाज, संस्थान, कंपनियां एवं राष्ट्र नष्ट हो जाते हैं।

अपरिचितों पर भी अपने आप में सतर्क हुए व्यर्थ संदेह करने की आवश्यकता नहीं होती। ज्यादा बातें तो वहां के लिए कही जाती हैं, जहां निरंतर का पारस्परिक सम्बन्ध तथा व्यवहार है। ऐसी जगह में शक-सुबहे को रखकर न व्यवहार शुद्ध रह सकता है न उन्नति हो सकती है। (Sri Ram Raksha Stotra PDF)

प्रायः हर मनुष्य के हृदयाकाश में संदेह के कुछ न कुछ बादल होते हैं। हमारा मुख्य कार्य होना चाहिए कि अपने सरल हृदय एवं श्रद्धा विश्वास के प्रभंजन से उसे उड़ा दें। हमें अपने और दूसरे जंजाली स्वभाव से सतत सावधान भी रहना है। मनुष्य को चाहिए कि वह कहीं बेवकूफ न बने और इसके साथ शक-सुबहे के रोग से दूर होकर परस्पर विश्वास, श्रद्धा का वातावरण बनाये। इसी में व्यक्ति परिवार, समाज, संस्था, संघ, देश - सबका कल्याण है।

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