यह स्तोत्र
प्रभु श्री राम की स्तुति में संस्कृत में 38 छंदों में रचा गया हैं। इसे भगवान राम द्वारा हमें दी गई सुरक्षा के लिए प्रार्थना की तरह उपयोग किया जाता है। इस स्तोत्र की रचना बुधकौशिक ऋषि ने तब की थी जब उनके सपने में भगवान शंकर ने आकर इन 38 श्लोकों को गाकर सुनाया था। जो पूरी ईमानदारी से इस स्तोत्र द्वारा राम जी की स्तुति करता है और इसका आशय व प्रयोजन समझता है, श्री राम उसकी और उसके मन की गलत विचारों और दुष्टों से रक्षा करते हैं और उस व्यक्ति को इस जग के परम सत्य को जानने में सहायता करते है -
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इस अत्यंत फलदायी स्तोत्र का उपयोग नुकसान और किसी कार्य विशेष में आई बाधा के समाधान के लिए जप कर किया जाता है। कोई भी व्यक्ति कोई एक स्वतंत्र श्लोक पढ़कर भी उस श्लोक के पढ़ने से उस श्लोक द्वारा होने वाले सामाधान को ग्रहण कर सकता है।
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घंटों ध्यान और सत्संग का प्रभाव वहीं नष्ट हो जाता है जहाॅं साथियों में अपना अशुद्व व्यवहार होने से मानसिक तनाव और अवसाद जन्म लेता है। वर्तमान प्राप्त प्राणी-पदार्थों में अपना व्यवहार यदि निर्मल है तो थोड़ा ध्यान और सत्संग भी अधिक फल दे सकता हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह सबके साथ अपना व्यवहार मधुर ही नहीं अपितु मधुरतम बनाये। हमारे मुख से सर्वत्र कुसुम ही बिखरने चाहिए। मधुर भाषण और कोमल चरित्र व्यवहार को मधुमय बना देते हैं।
किसी भी परिवार, समाज एवं संगठन को समृद्ध, सुख एवं प्रसन्नता के लिए उसके सभी सदस्यों का आपसी प्रेम, मीठे वचन, स्नेह-व्यवहार एवं विचारों का सामंजस्य बनाये रखना महान सम्बल है। हर समय मनचाहे भौतिक पदार्थ तो नहीं मिलते, किन्तु हम अपने साथियों में सब समय प्रेम का बर्ताव करके सच्चे अर्थ में सुखी बने रह सकते हैं।
जिसका व्यवहार सुलझा हुआ रहता है, वह अपनी जिंदगी में सुख-शांति अनुभव करता है। उत्तम व्यवहार के कुछ सूत्रों पर यहां हम थोड़ा विचार करें।
तुम जिन मनुष्यों के बीच में रात-दिन रहते हो, उनके व्यवहार मधुर बना रहे, यह आवश्यक है। अपने मन के विचार सबको प्रिय होते हैं और अपने मन की इच्छा की पूर्ति सब चाहते हैं। यदि तुम दूसरों के विचारों के विरुद्ध बोलते हो और उनके मन की इच्छाओं के पूर्ती में रुकावट बनते हो, तो निश्चित है वे तुमसे रुष्ट हो जायेंगे, और तुम्हारा तथा उनका व्यवहार बिगड़ जाएगा।
ये बात भी संभव हो सकता है कि तुम्हारे साथियों के विचार गलत हो और उनकी जो भी इच्छाएँ हो वो अनुचित हो। यदि साथियों के गलत विचार तथा अनुचित इच्छाएं पूर्ण होने दें, तो व्यवहार बिगड़ेगा।
कई बार मात्र दृष्टिकोण का अंतर होता है। उन्हीं विचारों एवं इच्छाओं को देखने के एक नजरीये से सही और दूसरे नजरिए से गलत माना जा सकता है। इसलिए दूसरों के विचारों तथा इच्छाओं को एवं उनके संबंध में उनके दृष्टिकोण को निष्पक्षता पूर्वक समझे।