कलिपावनावतार अभिनववाल्मीकि कालजयी गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने अपने
महाकाव्य श्रीरामचरितमानस जैसे समर्थ ग्रंथ से मानव की सर्वांगीण ग्रंथियों के उद्ग्रन्थन का जैसा सफल एवं सोपज्ञ प्रस्ताव किया है, इससे वे समस्त मानव जाति के, सांस्कृतिक पुरोधा, सामाजिक नेता, साहित्यिक उद्गाता एवं आध्यात्मिक प्रणेता बन गये हैं। इस तथ्य से सभी प्राच्च प्रतीच्य विपश्चिदपश्चिम ऐक्यमत्येन सहमत हैं। श्रीरामचरितमानस जी की सबसे लोकोत्तर विशेषता यही है कि यहां सभी को सब कुछ मिल जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम की Sri Ram Chalisa यहां से डाउनलोड करें -
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इनके अनुशीलन से जहां सांख्यवादी सत्कार्यवाद की सत्क्रिया देखता है, योगी योगयुक्तियों की अमूल्य मोतियां लूटता है, वैशेषिक अशेष विशेषों से अपनी निश्शेषता का प्रतिभान करता है, नैयायिक स्वयं की तर्ककर्कशविचारचातुरी का आतुरीपूर्वक तुरीय के चरणों में समर्पण करता है, मीमांसक कर्मवाद के जगड्वाल से हटकर नैष्कम्र्य की दीक्षा प्राप्त करता है तथा वेदान्ती अपनी अनादिकाल से उलझी चिदचिद ग्रंथियों को सुलझाकर उस वेदान्तवेद्य परतत्व को अर्थपंचक विधि से अञजसा समवगत कर ब्रह्मजिज्ञासा के सैद्धान्तिक समाधान का सोपान प्राप्त कर शाश्वत विश्राम सेवधि की निरवधिकता का ऐकान्तिक आनन्द प्राप्त कर निर्भय हो जाता है।
वहीं इस मानस भवन में हुलसी हर्षवर्धन की भारती के सहयोग से भक्त अपने भगवान /
रक्षा स्तोत्र की आरती उतारकर प्रभु श्रीसीतारामजी के श्रीचरणकमलों में सर्वस्व को वारकर संभृति में परमानन्द निभृत हो जाता है।
मानस जी के अति गंभीर रहस्यों के चिन्तन में मेरा चित्त प्रायशः अपने समय के तीन चौथाई भाग को सानुराग भूरिभाग के साथ विनियुक्त करता रहा है। यहां की reality तो यह है कि मेरे मुख को निमित्त बनाकर स्वयं भगवती जनकनन्दिनी सीताजी ने ही आप सबको आनंदित करने के लिए ऐसी गंभीर कथा कही। इस प्रकार की कथा मैं कभी नहीं कह सकता, यह बात मैं सत्य शपथ लेकर कह सकता हूं।
व्याख्यानमाला में श्रीसीतारामोपासना के बहुत से ऐसे अनमोल रत्न पिरोये गये हैं भगवती सीता जी के गम्भीर चिन्तन से आप सबके साथ मैं भी बहुत उपकृत हूंगा। आशा है कि इस ग्रन्थ का गम्भीरता से अनुशीलन कर असंख्य बहन भाई सद्गृहस्थ श्रीवैष्णव, सन्त, विरक्त, अनुरक्त महानुभाव श्री सीताराम की भक्ति सुधा से सम्पोषित होंगे।