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Vishnu Sahasranamam in Hindi PDF | विष्णु सहस्रनाम

विष्णु स्तोत्र पीडीएफ में
विष्णु भगवान इस लोक का पालन-पोषण करने वाले है। इसीलिए इन्हें समय-समय पर, जब भी आवश्यकता पड़ती है, इस लोक में प्रकट होना पड़ता है। ऐसा करने में इनका अपना पूर्वाग्रह नहीं है, तभी तो मत्स्य, कूर्म आदि अवतार लेने के साथ ही इन्होंने वराह अवतार ले इस लोक के राक्षसों का नाश किया, ताकि रसातल में जाती पृथ्वी की रक्षा की जा सके- मन व चित के राक्षसी विचार नष्ट हो। जो हर दिशा में विधमान है, उसे भी विष्णु कहते है। यह विष्णु शब्द का विशेष उत्पत्ति अर्थ है। यहाँ उन्हीं श्री विष्णु जी का संपूर्ण स्तोत्र हिंदी में दिया जा रहा है- DOWNLOAD PDF

इस प्रकार सर्वत्र व्याप्त तत्व-इतना ही नहीं, सर्वरूप तत्व ही श्री विष्णु के नाम से श्रुति-पुराणों में कहा गया है। जब सब श्री विष्णु ही है, तो सभी नाम-रूप उसी के हुए।

वह एक विष्णु-तत्व ही विभिन्न नामों से पुकारा जा रहा है। यह कहना भी शास्त्रों के अनुरूप ही होगा। देवी-देवताओं के अनेक नाम-रूपों के पीछे यही सत्य निहित है। कार्य भेद से एक ही अनेक रूपों में व्यवहार में प्रयुक्त होता है। यह जानना-समझना ही उपासना का परम लक्ष्य है, इसलिए अलग-अलग देवी-देवताओं के एक सौ आठ या एक हजार नामों के नित्य पाठ का माहात्म्य महापुरुषों तथा शास्त्रों ने गाया है।

भीष्म पितामह द्वारा श्री विष्णु जी के एक सहस्त्र नामों का गान किया गया है, जिस पर आद्य शंकराचार्य का भाष्य उपलब्ध है। विद्वानजन मानते हैं कि किसी ग्रंथ पर यह उनका प्रथम भाष्य है।

वैष्णवों का सर्वप्रिय स्तोत्र है यह। इसीलिए गरुड़ पुराण में भी श्री विष्णु के 1000 नामों का उल्लेख मिलता है, लेकिन ये दोनों (महाभारत और गरुड़ पुराण में गाए गए स्तोत्र) बिलकुल अलग हैं। श्रद्धालु पाठकों के लिए इस PDF पुस्तक में इन दोनों को ही दिया गया है।

श्लोकबद्ध स्तोत्र के शुद्ध पाठ के लिए अभ्यास की आवश्यकता है, इसलिए महाभारत में भीष्म पितामह द्वारा गाए गए इन नामों को नमस्कारात्मक रूप में सहस्त्रनामावली के रूप में अलग से भी दिया गया है। इनके द्वारा षोडशोपचार विधि से अभिषेक और पूजन भी किया जा सकता है। इस संपूर्ण आयोजन को श्रद्धालु भक्त स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं।

श्री विष्णु सहस्त्रनामावलिः


हिंदू धर्म ग्रंथों में एक सामान्य श्रद्धालु के लिए भी विभिन्न उपासना के साधन हैं। वही सरल-सुगम अनुष्ठान के नियम भी बताये गए है। मूल विष्णु सहस्त्रनाम को पढ़ने के लिए संस्कृत का इल्म होने के साथ-साथ ही छंदों की समझ भी जरूरी है। इसके लिए थोड़ा अभ्यास भी जरूरी है। ऐसा न हो, तो श्लोकों के उच्चारण में दोष होने का डर बना रहता है। इससे श्लोक का आशय विपरीत हो सकता है, जिससे फल बिल्कुल उल्टा मिलता है।
सहस्त्रनामावली की रचना का उद्देश्य इसी स्थिति से बचना है। श्री विष्णु की इस नामावली का पाठ करना आसान है। इससे भगवान श्री विष्णु के विग्रह का षोडशोपचार पूजन हो सकता है। यदि आप स्वयं हवन करना चाहें तो 'नमः' के स्थान पर 'स्वाहा' शब्द का इस्तेमाल करें। उच्चारण आराम से करें, बहुत तेज न करें। उच्चारण लय में होना चाहिए। स्त्रियां इसका जाप करते समय 'ॐ' के स्थान पर 'श्री' शब्द का उच्चारण करें। 'ॐ' निवृत्तिपरक है, इसलिए गृहस्थ धर्म जीने वालों को 'ॐ' की साधना नहीं करनी चाहिए, वे प्रणव से पूर्व 'हरिः' इस भगवान के नाम को जोड़ लें। इससे अनजाने में हुई भूल का दोष नहीं लगता है।

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