Title : श्री विष्णु पुराण
Pages : 159
File Size : 43.6 MB
Category : Religion
Language : Hindi
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Only for reading: परिवार तथा समाज में जितने सदस्य हों उनका पारस्परिक सम्बन्ध मधुर होना चाहिए। सम्बन्ध की मधुरता में ही व्यक्ति और परिवार तथा समाज की उन्नति सम्भव है।
हम जिनके साथ हों और जो हमारे साथ हों, परस्पर रोज मिलें, बातचीत करें, एक दूसरे को जानें, यह बहुत जरूरी है।
परिवार, समाज तथा साथ में रहने वाले लोग यदि नित्य एक साथ नहीं बैठते, बातचीत नहीं करते, परस्पर नहीं हंसते-बोलते? तो परस्पर सन्देह के बीज पनपने लगते हैं। इसलिए अपने साथियों में नित्य बैठना, बातचीत करना, हंसना, बोलना, व्यवहार में एक दूसरे से राय लेना-देना बहुत जरूरी है। ऐसा करके ही परस्पर प्रेम-विश्वास बना रह सकता है और व्यक्ति, परिवार, समाज तथा समूह का कल्याण हो सकता है।
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Sampoorna Shiv Mahapuran (PDF)
उज्ज्वल व्यवहार
व्यवहार जीवन-व्यापार की रीढ़ है। यदि हम अपनों या दूसरों से अच्छा व्यवहार बरतना नहीं जानते, तो जीवन में हमें पदे-पदे ठोकर लगेंगे। यदि हम अपनों तथा दूसरों से अच्छा व्यवहार कर सकते हैं तो हमारे जीवन में सर्वत्र सरसता रहेगी। गृहस्थ हो या विरक्त, स्त्री हो या पुरूष - सबको व्यवहार की शुद्धि आवश्यक है। व्यवहार-शुद्धी के लिए यहां कुछ सूत्र दिये जा रहे हैं, जिन पर गम्भीरतापूर्वक मनन करते हुए आचरण बनाना आवश्यक है।
गहरी समझदारी
शुद्ध व्यवहार के लिए गहरी समझदारी चाहिए। छिछली बुद्धी रखने वाला छिछला ही व्यवहार करता है। हर बात पर अच्छी तरह सोचकर व्यवहार करना चाहिए। हर क्रिया एवं व्यवहार के पीछे परिणाम क्या होगा, यह समझ लेना ही गहरी समझदारी का लक्षण है। जो परिणाम सोचे बिना जल्दबाजी में काम काम करता है, वह उथली बुद्धी का व्यक्ति माना जाता है और जगत में हंसी का पात्र बनता है। गहरी समझ से किये हुए काम के पीछे मनुष्य की सर्वत्र प्रशंसा होती है। परिणामदर्शीपन ही गहरी समझ का संकेत है।
निर्णय-क्षमता
जिसमें सही निर्णय लेने की क्षमता है उसका व्यवहार निष्कंटक होगा। कितने लोग पचीस-पचास बार विचारकर भी सही निर्णय नहीं ले पाते। ऐसे लोग अपने निश्चय को बार-बार बदलते हैं। ऐसे लोग कहीं प्रोग्राम देकर भी वहां नहीं जाते। अनेक बार वे अपनी बात समाज में काट देते हैं। वे अपने निकट के लोगों में ही अपनी अस्थिरता बनाये रखते हैं। अतएव ऐसे लोगों पर दूसरे लोगों का कौन कहे अपने लोगों का ही विश्वास नहीं रह जाता। अपने अस्थिर व्यवहार से ऐसे लोग स्वयं अशांत रहते हैं।
जो सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है, वह किसी विषय में विचारकर निर्णय ले लेता है और उसे पूरा करता है। उसका निर्णय सही, हितकर, पक्का तथा निश्चल होता है। जब तक निर्णीत विषय अहितकर न सिद्ध हो जाय, वह बदलता नहीं है। वह अपने वचनों एवं प्रोग्रामों में पक्का होता है। अतः वह सबका विश्वासपात्र होता है। उसका किसी से लेन-देन, मिलना-बिछुड़ना, कुछ करने तथा न करने का निश्चय पक्का होने से उसके स्वजन एवं परजन उस पर अटूट विश्वास रखते हैं, इसलिए वह सफल व्यवहार वाला होता है।
शांत मन से निर्णय
शांत मन द्वारा लिया हुआ निर्णय सही तथा स्व-पर का हितकर होता है। जो क्रोध, मोह, लोभ, काम, भय, भ्रम आदि में निर्णय लेता है उसका निर्णय न उसके लिए हितकर होता है और न दूसरों के लिए। अतएव जब किसी विषय में निर्णय लेना हो, तब अपने मन को शांत हो जाने देना चाहिए।