Title : सरस्वती आरती
Page : 5
Size : 105 Kb
Category : Hindu Dharma
Language : Hindi
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Collection : Opensource
आज का बालक ही कल गृहस्थ, साधु, गुरू, वकील, डाक्टर, अध्यापक, वैज्ञानिक, राजपुरूष और देशनायक बनेगा। आज की बालिका कल आने वाली पीढ़ी को उत्पन्न करने वाली एवं जन्म देने वाली और उन्हें संवारने-सुधारने वाली मां बनेगी। अतएव आज बालक-बालिकाओं में सच्चरित्रता, उदारता, वीरता, त्याग, शील एवं समस्त सद्गुणों का विकास होना अत्यंत आवश्यक है।
बालक-बालिकाओं में अच्छाइयां एवं बुराइयां कहां से आती हैं, माता-पिता से, वातावरण से या उनकी निजी-प्रवृत्ति से! यह आवश्यक बात अत्यंत विचार करने योग्य है। माता-पिता के रज-वीर्य से उनके देह-गठन एवं शारीरिक-मानसिक स्वभाव का कुछ अंश बच्चों में आ जाना तो स्वाभाविक है, परन्तु बच्चों में सद्गुण और दुर्गुण, घर, स्कूल तथा समाज के वातावरण से आते हैं। वह जैसे देखता, सुनता और जैसी पुस्तक पढ़ता है वैसा बनता है। इसमें सहायक उसके पूर्वजन्म के मौलिक संस्कार भी होते हैं।
घर, पाठशाला और समाज- बच्चों के बनने-बिगड़ने की ये तीन जगहें हैं। इन तीनों के परिवेश का असर बच्चों पर खूब पड़ता है। हमें यदि शौक है और जो होना चाहिए तथा होता भी है कि हमारे बच्चे अपने जीवन का सही ढंग से विकास करें और वे आध्यात्मिक एवं आधिभौतिक दोनों क्षेत्रों में सफल हों तो हमें उसके लिए होशियार और चैकस हो जाना चाहिए।
जिस घर में हर समय चिल्ल-पों, लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज, राग-द्वेष लगे रहते हैं, जहां धूम्रपान, शराब, अभक्ष्य भोजन, गंदगी, अस्तव्यस्तता अनुशासनहीनता, चरित्र-हीनता, असत्य-भाषण, हिंसा, उद्दंडता का तांडव है; जहां शील, समता, क्षमा, संतोष, विचार, श्रद्धा आदि का अभाव है, उस घर में बाल-बच्चों का भावी जीवन उज्जवल होने की क्या चाह की जाय!
बच्चों के ऊपर माता-पिता एवं घर के अन्य बड़े-छोटे लोगों के शिष्टता का असर पड़ता है। एक शीलवान एवं उच्च आदर्श के बालक-बालिका के सृजन के लिए माता-पिता को स्वयं उच्च आदर्श का होना चाहिए। लंपट, नशेबाज, शराबी, चरित्रहीन एवं गंदे स्वभाव के माता-पिता स्वयं के बाल-बच्चों से क्या आसरा रख सकते हैं! अतएव माता-पिता स्वयं सदाचारी बनकर बच्चों को सत्प्रेरणा दे सकते हैं।
घर में सत्संग, सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय,
श्री राम के नाम के उच्चारण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का होना आवश्यक है। माता-पिता के सदाचार से घर के वातावरण की पवित्रता से बालक-बालिकाओं के चरित्र का विकास अच्छी दिशा में होगा।