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[PDF] Saraswati Aarti PDF | सरस्वती माँ की आरती

सरस्वती माता अति सुन्दर, सकल मनोरथ को पूर्ण करने वाली तथा जिनके मुखमण्डल पर सदैव हँसने की आभा व्याप्त है, इनके परिपुष्ट विग्रह के समक्ष करोड़ों चंद्रमा की प्रभा भी कुछ नहीं है, ये विशुद्ध चिन्मयवस्त्रों से सुशोभित रहती हैं। माँ सरस्वती की चालीसा - Shri Saraswati Chalisa PDF। इनकी देहयष्टि पर सर्वोत्तम रत्नों के बने हुए आभूषण सदैव इनकी शोभा को बढ़ाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिवप्रभुत्ति मुख्य देवताओं और सुरगणों से ये सदैव पूजी जाती हैं। श्रेष्ठ मुनि, मनु और मानव इनके चरणों में अपना मस्तक सदैव झुकाये रहते हैं। पूरी Shri Saraswati Aarti PDF नीचे डाउनलोड करें-


Saraswati Aarti in Hindi PDF | सरस्वती आरती

Saraswati Aarti PDF in Hindi
PDF Name सरस्वती आरती | Saraswati Aarti Hindi PDF
PDF Size 251 KB
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जिस मनुष्य के पास सरस्वती न हो, वह उसी प्रकार से हो जाता है, जिस प्रकार से हंसों के बीच में बगुला। यही कारण है कि सभी वर्णों के लोग माता सरस्वती के उपासक हैं और इनकी प्राप्ति के लिए विभिन्न उपाय व श्रम भी करते हैं। जब सरस्वती का निवास मनुष्य के अंदर हो जाता है तो लक्ष्मी स्वयं उसके पास चली आती हैं। किन्तु जिस मनुष्य के पास सरस्वती न हो, वह मनुष्य के रूप में हिरण के समान होकर इस पृथ्वी पर विचरण करता रहता है।

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Saraswati Aarti Lyrics in Hindi


जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥

चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
जय सरस्वती माता॥

बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
जय सरस्वती माता॥

देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
जय सरस्वती माता॥

विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
जय सरस्वती माता॥

धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
जय सरस्वती माता॥

माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥
जय सरस्वती माता॥

जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
|| समाप्त ||

'सरस्वती' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार से हमारे विद्वानों ने की है- 'सृ' धातु के आगे 'असुन्' प्रत्यय लगाने से 'सरस्' पद सिद्ध होता है। 'सरस्' जिनका है, जो 'सरस्' की अधिष्ठान देवी हैं, वही सरस्वती हैं। विद्वानों के मतानुसार 'सृ' धातु का अर्थ है 'गति'। गद्य-पद्यादिरूप में संसार में जिसका प्रसारण 'सृ' धातु से होता है, वही सरस्वती हैं, जहाँ छंद है, वही गति सरस्वती का रूप है, जहाँ छंद नहीं है वह अज्ञान रूप है।

शास्त्रों के मतानुसार 'सृ' धातु का अर्थ है प्रसारण, गति। इस संसार में जो कुछ है, सब शब्द से ही हुआ है। इसलिये वाक्य की जो अधिष्ठात्री देवता हैं वह सभी के लिए उपास्य हैं। यही कारण है कि ब्रह्मा, शिव प्रभृत्ति समस्त देवताओं ने माता सरस्वती की उपासना एवं अर्चना करके विद्या की प्राप्ति की। विद्वान ग्रंथकारों ने ब्रह्मवस्तु का आनन्दरूप प्रवाह 'सरः' बहता है, इससे उन माता को 'सरस्वती' नाम से अलंकृत किया है।

अच्छी बातें


आज का बालक ही कल गृहस्थ, साधु, गुरु, वकील, डॉक्टर, अध्यापक, वैज्ञानिक, राजपुरूष और देशनायक बनेगा। आज की बालिका कल आने वाली पीढ़ी को उत्पन्न करने वाली एवं जन्म देने वाली और उन्हें संवारने-सुधारने वाली मां बनेगी। अतएव आज बालक-बालिकाओं में सच्चरित्रता, उदारता, वीरता, त्याग, शील एवं समस्त सद्गुणों का विकास होना अत्यंत आवश्यक है।

बालक-बालिकाओं में अच्छाइयां एवं बुराइयां कहां से आती हैं, माता-पिता से, वातावरण से या उनकी निजी-प्रवृत्ति से! यह आवश्यक बात अत्यंत विचार करने योग्य है। माता-पिता के रज-वीर्य से उनके देह-गठन एवं शारीरिक-मानसिक स्वभाव का कुछ अंश बच्चों में आ जाना तो स्वाभाविक है, परन्तु बच्चों में सद्गुण और दुर्गुण, घर, स्कूल तथा समाज के वातावरण से आते हैं। वह जैसे देखता, सुनता और जैसी पुस्तक पढ़ता है वैसा बनता है। इसमें सहायक उसके पूर्वजन्म के मौलिक संस्कार भी होते हैं।

घर, पाठशाला और समाज- बच्चों के बनने-बिगड़ने की ये तीन जगहें हैं। इन तीनों के परिवेश का असर बच्चों पर खूब पड़ता है। हमें यदि शौक है और जो होना चाहिए तथा होता भी है कि हमारे बच्चे अपने जीवन का सही ढंग से विकास करें और वे आध्यात्मिक एवं आधिभौतिक दोनों क्षेत्रों में सफल हों तो हमें उसके लिए होशियार और चैकस हो जाना चाहिए।

जिस घर में हर समय चिल्ल-पों, लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज, राग-द्वेष लगे रहते हैं, जहां धूम्रपान, शराब, अभक्ष्य भोजन, गंदगी, अस्तव्यस्तता अनुशासनहीनता, चरित्र-हीनता, असत्य-भाषण, हिंसा, उद्दंडता का तांडव है; जहां शील, समता, क्षमा, संतोष, विचार, श्रद्धा आदि का अभाव है, उस घर में बाल-बच्चों का भावी जीवन उज्जवल होने की क्या चाह की जाय!

बच्चों के ऊपर माता-पिता एवं घर के अन्य बड़े-छोटे लोगों के शिष्टता का असर पड़ता है। एक शीलवान एवं उच्च आदर्श के बालक-बालिका के सृजन के लिए माता-पिता को स्वयं उच्च आदर्श का होना चाहिए। लंपट, नशेबाज, शराबी, चरित्रहीन एवं गंदे स्वभाव के माता-पिता स्वयं के बाल-बच्चों से क्या आसरा रख सकते हैं! अतएव माता-पिता स्वयं सदाचारी बनकर बच्चों को सत्प्रेरणा दे सकते हैं।

घर में सत्संग, सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय, श्री राम के नाम के उच्चारण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का होना आवश्यक है। माता-पिता के सदाचार से घर के वातावरण की पवित्रता से बालक-बालिकाओं के चरित्र का विकास अच्छी दिशा में होगा।

****

जैसा सुना, देखा और सोचा हो वैसा सरल तथा निश्छल भाव से कहना सत्य भाषण है। सत्य बोलने से यदि तुरन्त पुरस्कार मिलता हो तो कोई झूठ न बोलकर सब सत्य ही बोलते। परन्तु घाटा उठाकर भी सत्य का पालन करना चाहिए। सत्य भाषण और सत्य रहनी के समान कोई तपस्या नहीं है। सत्य बोलने तथा सत्यरहनी में चलने वाला व्यक्ति महतम है। वह सबकी दृष्टि में उच्चतम हो जाता है। भले ही दुष्ट लोग उसकी निंदा करते रहें; परन्तु वे निंदा करते हुए भी उसकी उच्चता को भीतर से समझते हैं।

बातें प्रियकर होते हुए हितकर होनी चाहिए। पृष्ठ-पोषण एवं चापलूसी करना प्रिय भाषा नहीं है, अपितु हितकर होना प्रिय भाषण है। हितकर बातें प्रायः ऊपर से कम प्रिय होती हैं परन्तु जितना सम्भव हो उसे प्रियकर बनाने की चेष्टा करें। समाज में अनेक योग्यता वाले व्यक्ति हैं, अतएव समाज में ऐसी बात करनी चाहिए जिससे सबका हित हो।

मित का अर्थ है कम। हितकर बातें अधिक नहीं बोली जाती। हितकर बातें सदैव थोड़ी होती हैं। अधिक बोलने वाला झूठ, कटु और निरर्थक अवय बोलेगा। अधिक बोलने से बड़े लोग भी हलके हो जाते हैं। सभ्यता और उच्चता का एक महान लक्षण है कम बोलना। कम बोलने वाले से नपी-तुली और उचित बातें ही निकलती हैं।

दो की बातों में बिना पूछे न बोले। जिसके विषय में पूरी जानकारी न हो उसके विषय में न बोले। किसी के सामने होने पर उसका नाम लेकर उसे न बुलावे, अपितु उसके अधिकारानुसार आदरसूचक शब्द-बाबूजी, भैया, पूज्य, गुरूदेवजी, साहेबजी, महाराजजी, पिताजी, चाचा जी, श्रीमान जी आदि कहे। बात कहते समय 'समझे' 'आप हमारी बात नहीं समझे' आदि न कहे। समय पड़ने पर यह कहा जा सकता है कि "मैं आपको अपनी बातें न समझा सका।" इसी प्रकार अन्य सावधानियां रखनी चाहिए।

कब, किससे, क्या, कितना और कैसे बोलना चाहिए-इन पांचों सूत्रों को जिसने अपने जीवन में हल कर लिया, उसने अपनी वाणी पर विजय पा ली।

'कब' बात करने के समय का सूचक है, 'किससे' जिससे बात की जाय उस व्यक्ति का सूचक है, 'क्या' वार्ता के विषय का सूचक है, 'कितना' वार्ता की मात्रा का सूचक है तथा 'कैसे' वार्ता की शैली का सूचक है।

मित्रों, ऊपर दिये गए Shri Saraswati Aarti PDF अगर कोई त्रुटि हो गई हो तो, अवश्यमेव सूचित करने की कृपा करें। जिससे कि मैं आगे उन त्रुटियों का परिमार्जन करने की चेष्टा कर सकूं।

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