Title : लक्ष्मी चालीसा
No. of pages : 8
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Category : Hinduism / Chalisa
Language : Hindi
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केवल पढ़े: पचीस वर्ष की उम्र के पहले लड़कों की शादी करना तथा 18-19 वर्ष की आयु के पहले लड़कियों की शादी करना उनके साथ बेइंसाफी व पक्षपात करना है। लड़के-लड़की अल्पायु में ही अपनी शक्ति को निर्बल व अशक्त करके शरीर-मन के रोगी तथा पतला व कृश हो जाते हैं। वे गृहस्थी के काम-धंधे तथा पढ़ाई-लिखाई सब में निकम्मे हो जाते हैं। इन जाहिल माता-पिताओं के ख्याल से जीवन का लक्ष्य मानो शादी ही है, जो बचपन से ही लड़के-लड़कियों के गले में टांग या झूला दिया जाना चाहिए। लड़के-लड़की कच्ची अवस्था में ही अपने शरीर-मन से पतित होकर माता-पिता के लिए भी भार स्वरूप हो जाते हैं, तब भी माता-पिता अपनी अयथार्थता या भरम को न स्वीकार करके कहते है 'यह कलयुग है, सब
प्रभु राम जानते है।' इस कलयुग को लाने वाले माता-पिता ही हैं।
किसी ने पूछा, 'बच्चों की शिक्षा कब से आरम्भ की जाय?' उत्तरदाता ने कहा, 'बच्चों के जन्म से बीस वर्ष पहले से ही।' प्रश्नकर्ता ने कहा, उत्तरदाता ने कहा, 'इसका तात्पर्य है कि बच्चों के जनन व प्रसूति से पहले माता-पिता स्वयं को सदाचारी तथा मानवगुण सम्पन्न बना लें।'
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सांचा जिस तरह व आकार होता है, उसमें ईंटों का आकार उसी प्रकार होता है। माता-पिता जिस प्रकार होंगे, बच्चों का बहुधा वैसा होना स्वाभाविक है। यद्यपि इसका प्रवाद या लोकवाद भी है, तथापि वालिदैन का असर बच्चों पर पड़ता ही है। वालिदैन के रज-वीर्य का, उनके तक़सीम या चाल-चलन का तथा मानस का प्रभाव औलाद पर अचल पड़ता है। अतएव जो युवक-युवती माता-पिता बनने के लिए विचार कर रहे है या तैयारी करते हो, उन्हें अपनी भविष्य पीढ़ी को सच्चरित्र, सुखी, शांतिप्रद एवं सुसम्पन्न बनाने के लिए पहले स्वयं अपने आपको सच्चरित्र, सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनाना चाहिए।
माता-पिता के अच्छे-बुरे चरित्र का प्रभाव शिशु पर गर्भावस्था से ही अलक्षित रूप में बहुधा पड़ने लगता है। शिशु के उत्पन्न होने के बाद में यह प्रभाव सीधे एवं प्रत्यक्ष रूप में पड़ता है। बच्चा जितना ही बड़ा होता जाता है, माता-पिता के विशेषता या विलक्षणता के प्रभाव से प्रभावित होता जाता है। सभ्य घराने के बच्चे कभी गाली नहीं बकते और असभ्य घराने के बच्चे छुटपन से ही बुरा-भला कहना बकना सीख जाते हैं।