Title : गणेश चालीसा
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File format : PDF
Category : Religious
Language : Hindi
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केवल पढ़ने के लिए: शताब्दियों से भारतीय समाज का ढांचा ऐसा चरमरा गया है कि वह आज की प्रगति के युग में भी उठ नहीं पा रहा है। शताब्दियों से लोगों के जीवन का लक्ष्य विवाह हो गया है। दुधमुंहे बच्चों के विवाह की चर्चा माता-पिता द्वारा होने लगती है। आज के युग में भारत के अधिकतम प्रदेशों में असी-पचासी प्रतिशत विवाह कच्ची अवस्था में होता है, उनमें से 40 प्रतिशत वर-वधू यह भी नहीं जानते कि विवाह का अर्थ व मतलब क्या होता है! एक जगह
ओशो ने लिखा है - "जब मेरी शादी हुई तब मैं यही जानता था कि शादी का मतलब है खूब बाजा-गाजा बजाना तथा लड़की साथ में खेलने को मिल जाना।"
जो वर-कन्या गृहस्थी के कर्तव्य को नहीं जानते और वर पीचस वर्ष तथा कन्या अठारह वर्ष की अवस्था के पहले विवाह के खूंटे में बांध दिये जाते हैं वे गृहस्थी को नरक रूप में न बदल देंगे तो और क्या करेंगे! वे माता-पिता तथा अभिभावक जन अपराधी हैं जो कच्ची अवस्था में बच्चों की शादी कर देते हैं।
बन सके तो लड़के तीस-पैंतीस वर्ष की अवस्था तक तथा लड़कियां 25-26 वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य पालन करते हुए विद्या-शिक्षा तथा कला-कौशल में निपुण हो अथवा खेती, व्यापार आदि करें, फिर पीछे विवाह करें, लड़के पचीस वर्ष तथा लड़कियां अठारह वर्ष की अवस्था के पहले तो शादी-विवाह के फेरे में तो एकदम पड़े ही न और न माता-पिता इससे नीची अवस्था में उनके विवाह का ख्याल करें।
धान में दूध आये तभी उसे काट लिया जाय तो धान में चावल न होकर सब पइया (सारहीन) हो जायगा। यही दशा आज भारतीय बच्चों की होती है। माता-पिता छोटे-छोटे बच्चों की शादी करके मानो अपने हाथों उनकी हत्या करते हैं। जब तक लड़के-लड़कियां अपनी कमाई के बल पर अपना निर्वाह व गुज़र न कर सकें, तब तक उनकी शादी करना उनके साथ, अपने साथ, घर, समाज तथा देश के साथ अपराध करना है। कितने गंवार माता-पिता तथा बुड्ढे-बुड्ढी अपने बेटे-पोते की शादी देखने तथा पोते-परपोते को गोद में खिलाने की अभिलाषा व मनोरथ को मुकम्मल करने (accomplished) के लिए अपने अल्पायु बच्चों की शादी करके उनका सर्वतोमुखी विनाश व बर्बादी कर डालते हैं।