देश के प्रसिद्ध अध्यात्मिक विचारक रजनीश, जिन्हें आशो के नाम से भी जाना जाता था की कुछ अच्छी किताबें हिंदी में डाउनलोड करें।
- संभोग से समाधी की ओर (ओशो की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक)
- अंतर की खोज
- न जन्म न मृत्यु
- अंधकार से आलोक की ओर
- अध्यात्म उपनिषद
- असंभव क्रांति
- आंखों देखी सांच
- उपासना के क्षण
- कस्तूरी कुंडल बसै
- मैं मृत्यु सिखाता हूं
बस पढ़ने के लिए: अवज्ञा और अनुशासनहीनता परिवार, समाज और राष्ट्र को तोड़कर रख देने वाले ध्वंसक तत्व हैं।
एक दूसरे की बात माने बिना कोई समूह चल नहीं सकता और न उसकी उन्नति हो सकती हैं। हर समाज एवं परिवार के सदस्यों का कर्तव्य हैं की वे एक दूसरे के मन को संघे, राय मांगने पर राय दें तथा चाहे गृहस्थ हो या वैराग्य-दशा आदमी जहाँ कहीं रहता है, वह अनेकों के साथ रहकर अपना जीवन-निर्वाह तथा आत्मविकास करता है।
हर आदमी को दूसरों के साथ रहना ही पड़ता है और दूसरे के साथ वही परसन्नतापूर्वक निभ सकता है जो समझदार, सहनशील, दूसरों को समझने वाला तथा दूसरों को महत्व देने वाला होता है ।दूसरों के सहयोग के बिना कोई सामाजिक या बड़ी योजना का काम तो होता ही नहीं, व्यक्तिगत उन्नति भी नहीं होती। अतएव इस संसार में जीने के लिए तथा आत्मकल्याण एवं लोककल्याण का काम करने के लिए जनसहयोग लेना पड़ता है, लोगों के बीच रहना पड़ता है, उनको कुछ देना तथा उनसे कुछ लेना पड़ता है, और इन सबके लिए अच्छी समझदारी, सहनशीलता तथा उत्तम व्यव्हार बरतने की महती आवश्यकता है।
कौरवों तथा पांडवों के राज्यों का पतन आपस की फूट का परिणाम था। यादवों का महान गणराज्य इसलिए नष्ट हुआ की क वे आपस में विभाजित जो गए थे उनमें परस्पर इतनी कटुता हो गयी थी कि एक दूसरे को देख नहीं सकते थे । इसलिए उनका केवल राज्य ही नहीं नष्ट हुआ, किन्तु कुलगोत्र भी नष्ट हो गया । सन 1977 ई में भारत की गठित जनता दल का शासन इसलिए थोड़े दिनों में नष्ट हो गया कि वे आपस में एक दूसरे से कटे-कटे थे। जनता दल में योग्य नेताओं की कमी नहीं थी, कमी थी एक दूसरे के प्रति सहयोग कि भावना की। सभी बड़े नेता प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, इसलिए शासन ही नहीं टुटा, पार्टी भी टूट गयी। कमजोर लोग भी संगठित होने से बड़े-बड़े काम कर सकते हैं, और बलवान लोग भी आपस में बिभाजित होने से कुछ नहीं कर सकते। अतएव परिवार,समाज, संस्था एवं राष्ट्र किसी को भी चलाने के लिए परस्पर सहयोग कि भावना कि बड़ी आवश्यकता है।