Title :
सुन्दरकाण्ड लिरिक्स
Pages : 60
Size : 210 KB
File : PDF
Category : Hindu Dharma / Lyrics
Language : Hindi / Sanskrit
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अथ सुन्दरकाण्डम् (लंका राक्षसी का पराभव): जैसे ही कपिश्रेष्ठ, महाबली हनुमान ने लंका नगरी में प्रवेश किया उसी समय लंका की अधिष्ठात्री रक्षिका जिसका नाम लंका था- ने हनुमान को देखा।
कपिश्रेष्ठ हनुमान को देखकर कामरूपधारिणी वह लंका रूपी राक्षसी भयंकर नाद करते हुए पवनपुत्र हनुमान जी से बोली-
हे वनवासी वानर! तू कौन है? और यहाँ क्यों आया है? प्राणदण्ड से पूर्व ये सारी बातें तू ठीक-ठीक बता दे?
अपने सामने खड़ी हुई उस लंका नामक राक्षमी से वीर हनुमान बोले - तू मुझसे जो कुछ पूछ रही है मैं वह सब ठीक-ठीक बताऊँगा।
(पहले तुम यह तो बताओ कि) भयंकर नेत्रों वाली तुम कौन हो जो इस नगर में द्वार पर खड़ी हो? हे कर्कशभाषिणी! तुम मेरा मार्ग रोककर क्यों खड़ी हो और मुझे किसलिए डाँट रही हो?
हनुमान जी के इन वचनों को सुनकर स्वच्छन्द रूप धारण करने वाली वह लंका क्रुद्ध होकर यह कठोर वचन बोली- मैं राक्षसराज महात्मा रावण की आज्ञानुवर्तिनी, अजेय लंका नगरी की रक्षा करने वाली रक्षिका हूँ।
मेरी अवहेलना करके तू इस नगरी में प्रविष्ट नहीं हो सकता। यदि तूने मेरी अवहेलना की तो मेरे द्वारा मारा जाकर तू आज यहाँ भूमि पर शयन करेगा।
वानरश्रेष्ठ, बुद्धिमान एवं बलवान पवनपुत्र हनुमान जी लंका की ये बातें सुनकर उससे बोले-
हे लंके! मैं अट्टालिकाओं, प्राकार पर्वत के ऊपर बने हुए भवनों, तोरण-महराबी द्वार अथवा सिंहद्वारों से युक्त लंका नगरी को देखने के लिए आया हूँ। मुझे लंकापुरी को देखने का बड़ा कुतूहल है।
स्वच्छन्द रूपधारिणी लंकादेवी हनुमान के इन वचनों को सुनकर कठोर शब्दों में पुनः हनुमान जी से बोली-
हे दुर्बुद्धे! हे वानराधम! राक्षसराज रावण द्वारा पालित एवं रक्षित इस नगरी को, मुझे पराजित किये बिना तू नहीं देख सकता।
लंका के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने उस निशाचरी से कहा- हे भद्रे! मैं इस नगरी को देखकर जहाँ से आया हूँ वहीं लौट जाऊँगा।
हनुमान जी के बार-बार आग्रह करने पर राक्षसी लंका ने भयंकर नादकर कपिश्रेष्ठ हनुमान जी को कसकर एक थप्पड़ मारा।
लंका राक्षसी के हाथ से जोर का थप्पड़ खा
महाशक्तिशाली पवनपुत्र हनुमान ने महानाद किया और क्रुद्ध होकर लंका राक्षसी को एक घूँसा मारा, परन्तु यह स्त्री है ऐसा सोचकर हनुमान ने बहुत क्रोध नहीं किया। (अर्थात हल्का-सा घूँसा जमाया।)
परन्तु विकराल मुखवाली वह राक्षसी उस हल्के-से घूँसे के प्रहार से ही विकल और लोटपोट होकर भूमि पर गिर पड़ी।
तदनन्तर वह लंका राक्षसी अभिमान-रहित वाणी में महाबली हनुमान जी से बोली-
हे कपिश्रेष्ठ! हे महाबली! मेरे ऊपर कृपा करो और मुझे बचाओ। बुद्धिमान और बलशाली पुरुष स्त्री का वध नहीं करते।
हे बलशाली! तुमने अपने पराक्रम से मुझे जीत लिया है, अतः हे कपिश्रेष्ठ! अब तुम रावण द्वारा पालित इस नगरी में प्रवेश करो और जो कुछ करना चाहते हो स्वच्छंदता-पूर्वक करो।