Msin.in
Powered by Blogger

[PDF] Charak Samhita Hindi PDF | चरक संहिता

Hindi PDF of Charak Samhita
आयुर्वेद के जानने वाले विद्वानों और आयुर्वेद का अभ्यास करने वाले छात्रों को यह भली प्रकार विदित है कि आयुर्वेद के पढ़ने-पढ़ाने में Sushruta Samhita और चरक संहिता जैसा उत्तम ग्रंथ दूसरा नहीं है। अनेक वैद्यक ग्रंथों के होते हुए भी चरक ग्रंथ ही अति प्राचीन है। प्राचीन होने पर भी इस गंभीर शास्त्र की अनेक विलक्षण बातें पढ़ने और गंभीर अनुशीलन करने वालो के लिये नवीन ही हैं। एक अमेरिकन चिकित्सा विज्ञानी का कथन है कि यदि केवल चरकोक्त चिकित्सा ही समुचित रीति से की जाय तो फिर अन्य चिकित्सा की आवश्यकता नहीं रह जाती। प्राचीन आयुर्वेद के विद्वानों का यह कथन सर्वथा है 'चरकस्तु चिकित्सिते'। चिकित्सा में चरक तंत्र की ही विशेषता है। आचार्य चरक द्वारा रचित Charak Samhita PDF in Hindi यहां से डाउनलोड करें- DOWNLOAD

चरक संहिता में आयुर्वेद के उत्पत्ति प्रकरण में स्पष्ट लिखा है कि संसार में रोगों के फैल जाने से प्राणियों पर घोर संकट उपस्थित हुआ, मानव संसार में त्राहि-त्राहि मची थी। उस समय करूणापूर्ण हृदय वाले ऋषि जनों ने एकत्र होकर इन्द्र से समस्त आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने के लिये भारद्वाज ऋषि को प्रेरित किया। वे आयुर्वेद के प्रथम प्रवर्तक हुए।


उनसे आत्रेय पुनर्वसु ने इस आयुर्वेद का ग्रहण किया। आत्रेय पुनर्वसु से श्री अग्निवेश ने इस शास्त्र को ग्रहण किया। अग्निवेश के सहाध्यायी जातुकर्ण, पराशर, हारीत, क्षारपाणि आदि भी अनेक थे। उन्होंने भी अपने-अपने तंत्र अर्थात भिन्न-भिन्न संहिताओं का निर्माण कर अपनी-अपनी शिष्य-परम्परा से प्रचारित किया, तो भी अग्निवेश द्वारा प्रचारित चरक की महती प्रतिष्ठा हुई। परंपरा से प्राप्त गुरूपदेशों पर ऋषि आत्रेय पुनर्वसु के विशेष प्रवचन को सर्वत्र स्वीकार किया गया है। इस शास्त्र का प्रतिसंस्कार श्री महर्षि पतंजलि ने किया वे ही चरक नाम से प्रख्यात थे।

चरक संहिता की विशेषता | Characteristics of Charak Samhita in Hindi


चरक संहिता एक ऐसा बहुमूल्य पुस्तक है जिसमें अनेक गुण हैं। सारा ग्रंथ इस प्रकार संकलित हुआ है जैसे किसी अत्यन्त निर्भ्रान्त मस्तिष्क से छन कर आया है। भाषा शैली इतनी आकर्षक है कि वैद्यक का शास्त्र होकर भी स्थान-स्थान पर उच्च कोटि के साहित्यिक रचना की छटा दीखती है। चरक संहिता के विमान स्थान में शास्त्र के जितने गुण लिखे हैं वे सब पूर्णांश में चरक संहिता में घटते हैं। इसी से यह शास्त्र सर्वमान्य जगत भर में अनोखा एवं अनुपम है।

Charak Samhita से संबंधित PDFs -

Ashtanga Hridayam by Vagbhata in Hindi PDF

चरक संहिता पर भाष्य और टीकाएं


चरकाचार्य को हुए अब से सहस्त्र वर्षों से अधिक समय हुआ है। आचार्य हढ़बल जिन्होेंने चरक की पृत्ति की है वे आज से 1700 वर्ष पूर्व हुए हैं और चरक चतुरानन चक्रपाणि ईसा की 11 वीं शताब्दी के मध्य में हुए है। आप बंगदेश के सुविख्यात राजवैद्य थे। पालवंशी राजा नयनपाल के आप राजकीय प्राणाचार्य थे। इनकी प्रसिद्ध टीका 'चरक तात्पर्य-टीका' है जिसका दूसरा नाम आयुर्वेददीपिका है।

  1. श्री शिवदास की विरचित चरक की तात्पर्य टीका है।
  2. श्री कृष्ण भिषक् कृत श्री कृष्णभाष्य है।
  3. वैद्यवर कविराज गंगाधर सेन कृत टीका 'जल्पकल्पतरु' है।
  4. वैद्यरत्न कविराज श्री योगेन्द्रनाथ विरचित टीका 'चरकोपस्कार' है।

इन में से श्री शिवदास कृत टीका बहुत प्रसिद्ध नहीं हैं। श्री कृष्ण वैद्य गोदावरी पट्खेटक ग्राम के निवासी विद्वान हैं। उनके श्री कृष्ण भाष्य का उल्लेख लोलिम्बराज ने वैद्यजीवन नामक पुस्तक पर की हुई अपनी टीका में एक स्थान पर अपने वंश का परिचय देते हुए किया है। परन्तु देखने में नहीं आया। गंगाधर की टीका बंगला अक्षरों में छपी थी। इन सब में प्राचीन टीका 'चक्रपाणि' की ही है। इस और अन्यान्य टीकाओं के अतिरिक्त वैद्य शंकरदाजी यंदे ने चरक का मराठी अनुवाद किया है। यह भी एक विशद भाषांतर है। हिन्दी में भी एक भाषांतर बम्बई से प्रसिद्ध हुआ है।

आयुर्वेद के अन्य ग्रंथ | Other Books of Ayurveda


आयुर्वेद के प्रेमी वैद्यों और वैद्यक के विद्यार्थियों ने चरक के इस अनुवाद को अपनाया तो मण्डल आयुर्वेद ग्रन्थमाला में सुश्रुत, अष्टांगसंग्रह, माधव निदान, भैषज्यरतावली आदि अनेक आयुर्वेद के ग्रंथों को इसी प्रकार सुन्दर रूप और सुलभ दामों में प्रकाशित करेगा।

इस के अतिरिक्त चरक ग्रंथ को अभी और अधिक उपयोगी बनाने के लिये एक ऐसे प्रवचन की आवश्यकता है जिसमें अभी तक प्रचलित चिकित्सा के सम्प्रदायों की भिन्न-भिन्न शैलियों की तुलना करते आयुर्वेद का महत्व स्पष्ट किया जाए और यूरोपीय विद्वानों के अनेक अनुसंधानों का वास्तविक मूल भी आर्ष-ग्रंथों में दर्शाया जावे।

प्राचीन आयुर्वेद का रोग-विज्ञान और चिकित्सा का आधार वात, पित्त, कफ इस त्रिदोष पर आश्रित है। इन दोषों का वास्तविक रूप क्या है? विकृत रूप क्या है? इन तीन वर्गों में देह के घटक अनेक रासायनिक तत्व किस प्रकार विभाजित होते है? उनकी शरीर में न्यून अधिकता किस प्रकार होती है? यह सब बाते अनुसंधान पूर्वक तुलना करके लिखनी आवश्यक है। पाश्चात्य विज्ञान में कीटाणु-कल्पना और इंजेक्शन ये दो बड़े तंत्र है। इनका भी स्थान-स्थान पर प्राचीन आर्ष ग्रंथों में उल्लेख है और इस संबंध में उपलब्धि प्राप्त हो चुकी थी, इस का विस्तृत विचार-विमर्श आवश्यक है।

शल्य-चिकित्सा का कार्य भी आर्षकाल में बड़ा उन्नत था। इसका ज्ञान सुश्रुत ग्रंथ से विदित होता है। इस पर बहुत आश्चर्यजनक खोजें है। इन सब संकलन करने योग्य अंशों को लेकर विशेष परिचायक ग्रंथों को कालान्तर में पाठकों को भेट करेगे।

Home » PDF

Popular

  • श्रीमद्भगवद्गीता संपूर्ण अध्याय व्याख्या सहित
  • पंचतंत्र की 27 प्रसिद्ध कहानियाँ
  • तेनालीराम की चतुराई की 27 मजेदार कहानियां
  • संपूर्ण गीता सार - आसान शब्दों में जरूर पढ़े
  • स्वामी विवेकानंद की 5 प्रेरक कहानियाँ
  • श्रेष्ठ 27 बाल कहानियाँ
  • Steve Jobs की सफलता की कहानी
  • महापुरूषों के प्रेरक प्रसंग
  • बिल गेट्स की वो 5 आदतें जिनसे वे विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनें
  • शिव खेड़ा की 5 प्रेरणादायी कहानियाँ
  • विद्यार्थियों के लिए 3 बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ
  • दुनिया के सबसे प्रेरक 'असफलताओं' वाले लोग!

eBooks (PDF)

  • संपूर्ण सुन्दरकाण्ड (गीताप्रेस) (PDF)
  • संपूर्ण चाणक्य नीति (PDF)
  • श्रीमद्भगवद्गीता (गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित) (PDF)
  • शिव ताण्डव स्तोत्र अर्थ सहित (PDF)
  • दुर्लभ शाबर मंत्र संग्रह (PDF)
  • श्री हनुमान बाहुक (PDF)
  • श्री दुर्गा सप्तशती (PDF)
  • श्री हनुमान चालीसा (अर्थ सहित) (PDF)
  • संपूर्ण शिव चालीसा (PDF)
  • एक योगी की आत्मकथा (PDF)
  • स्वामी विवेकानंद की प्रेरक पुस्तकें (PDF)
  • संपूर्ण ऋग्वेद (PDF)
  • संपूर्ण गरुड़ पुराण (PDF)

Important Links

  • हमारे बारे में
  • संपर्क करें

©   Privacy   Disclaimer   Sitemap