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[PDF] Varnamala in Hindi PDF | वर्णमाला ई-बुक

पीडीएफ पुस्तक वर्णमाला


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व्यंजन पुस्तक


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केवल पढ़ने हेतु : व्यवहार की कटुता के कारण हमने इस संसार को नरक बना डाला है। लेकिन इसके बावजूद हम विचार करते है कि मृत्यु के उपरांत हमें मृत्यु के उपरांत हम स्वर्ग लोक में ही जाएंगे। हमें इतना भी सोचने का वक्त नहीं है कि व्यवहार की मधुरता के बिना धर्म और अध्यात्म की हजारों ऊंची-ऊंची बातें (हिंदी में जपजी साहिब) निस्सार और संदेह हमारे सारे व्यवहार और जीवन को घुन के समान चालकर खोखला कर देता है।

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जो मनुष्य इस संदेह रूपी घुन को दूर कर देता है। उसका व्यवहार विश्वसनीय मधुर और प्रेममय होता है तथा जीवन हलका-फुलका और आनंदमय होता है। स्वार्थ, सन्देह और अविश्वास को दूर कर पारिवारिक तथा सामाजिक व्यवहार कैसे सुखद एवं मधुमय बने तथा परिवार एवं समाज में रहते हुए स्वर्गिक सुख का आनंद कैसे मिले- इस दिशा में पूज्यवर गुरूदेव श्री अभिलाष साहेब जी की पुस्तक 'व्यवहार की कला' निश्चित ही प्रेरणादायी सिद्व होगी। इस पुस्तक के अध्ययन,मनन और तदनुसार आचरण से हमारे पारस्परिक व्यवहार का वृक्ष हरा-भरा और पुष्पित हो सकेगा।

व्यवहार में सुधार

हम अपनी इंद्रियों-द्वारा रात-दिन जो कुछ करते हैं, वह व्यवहार है। हमारा व्यवहार उज्जवल होना चाहिए। जब तक हमारा व्यवहार उज्जवल नहीं होगा, तब तक परमार्थ नहीं बन सकता। पड़ती जमीन में बीज डालने से कुछ नहीं हो सकता। बीज तभी अनेक गुणा के रूप में होकर उदित होते हैं जब जमीन को गोड़-जोत कर खाद-पानी डालकर उसे भलीभांती कोमल एवं उपजाऊ बना ली गई हो। इसी प्रकार परमार्थ तभी सफल होता है, जब व्यवहार की शुद्धि कर ली गई हो।

पिता-पुत्र में मनमुटाव है, पति-पत्नी में लाग-डांट है, भाई-भाई में ईर्ष्या-द्वेष है, गुरूभाई-गुरूभाई में राग-द्वेष की गरमागरमी है तथा परिवार, समाज, साथियों में वैमनस्य हैं तो ऐसी स्थिति में परमार्थ का बन पाना अर्थात साधना-भजन का हो पाना अत्यन्त कठिन है, यदि साधना-भजन किये जायें तो पूर्ण सफलता मिलना दुस्तर है। हां, कोई मेरे लिए राग-द्वेष करता है, परन्तु मैं उसके या किसी के लिए राग-द्वेष नहीं करता तो मेरे साधना-भजन में कोई रोड़ा नहीं, परन्तु यदि मैं भी राग-द्वेष मैं उलझा हूं तो साधना-भजन बनना असंभव है।

परिवार या समाज के चार व्यक्ति जब एकत्र होते हैं, तब वे यदी आपस में तु-तु मैं-मैं करते हैं, एक के साथ दूसरे बैठते नहीं, बोलते नहीं, व्यवहार करते नहीं तथा एक साथ बैठकर भोजन तक करने में सहनशीलता रखते नहीं तो उनके साधना, भजन, सत्संग आदि करने का क्या महत्व है।

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