निबंध का विषय : स्वच्छ भारत अभियान
वर्ग : 5वीं-12वीं तक
पृष्ट : 20
साइज : 300 KB
अप्डेटेड : 8 May, 2020
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ऊपर के ई-बुक में वर्ष 2014 में देश में शुरू हुए स्वच्छता अभियान के विषय पर विभिन्न कक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के आवश्यकता के अनुरूप अलग-अलग शब्द संख्या में निबंध दिया गया है।
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एक दुर्घटना (हिंदी निबंध): काल क्रम में बँधा मनुष्य कभी-कभी सुखों के मधुर संसार में हर्षित होता है, लेकिन कभी-कभी उसके सुखों के उपवन में दुखों का भयावह तुषारापात हो जाता है, जिससे जीवन में गहरी वेदना और निराशा घिर आती है।
जीवन-यात्रा में किसी समय ऐसी हृदय विदारक घटनाएं हो जाती हैं, जो हमारे हृदय में अंकित हो जाती हैं और उनकी स्मृति निरंतर हमारे साथ चलती रहती है। जो भयावह दुर्घटना मेरे जीवन में घटित हुई, उसकी स्मृति आज भी मुझे कंपित करती है और मेरे पूरे शरीर में एक ठंडी लहर दौड़ जाती है।
मुझे दिल्ली से मेरे मित्र की बहन की शादी में उपस्थित होने का निमंत्रण मिला। मैं प्रायः दिल्ली बस से जाना पसंद करता हूं। लेकिन इस बार मैंने सोचा, मैं दिल्ली की यात्रा रेल से ही करूँगा। ट्रेन में आरक्षण के लिए कोशिश किया लेकिन आरक्षण की कोशिश में बिल्कुल सफल नहीं हो पाया। अतः अब साधारण डिब्बे में ही यात्रा करने का इरादा कर लिया। सभी तैयारी कर स्टेशन पर पहुंचा और टिकट लेने में हुई परेशानी को झेलता हुआ मैं दिल्ली की ओर जाने वाली अपनी ट्रेन की ओर बढ़ा।
कई डिब्बे झाँके, लेकिन कोई खाली सीट नज़र न आई। अंत में एक भाई साहब के साथ मैं अंतिम डिब्बे में सवार हो ही गया। गाड़ी ठीक समय पर चल दी। धीरे-धीरे तेज़ रफ्तार पकड़ती हुई गाड़ी भागने लगी। अनेक छोटे-छोटे स्टेशनों को छोड़ती हुई गाड़ी पूरी गति से भाग रही थी। गाड़ी में बैठे कुछ लोग सोने की कोशिश रहे थे, कुछ बातों में लगे थे और कुछ ताश खेल कर दुर्भाग्य की चाल से अपरिचित होकर मनोरंजन कर रहे थे। अचानक राजपुर स्टेशन के पास भयानक टकराहट का शब्द हुआ।
लाइनमैन ने गलती से गाड़ी को एक ऐसी लाइन पर ले लिया, जिस पर पहले से ही एक माल ढोने वाली गाड़ी खड़ी थी। ड्राइवर ने आश्चर्य से थोड़ी दूरी पर खड़ी मालगाड़ी को देखा। उसी लाइन पर हमारी गाड़ी भी थी। किसी भी तरह अचानक ब्रेक लगाना संभव न था। ड्राइवर ने गाड़ी की चाल कम कर दी। दोनों गाड़ियों के इंजन एक-दूसरे से धड़ाम से टकराए। परिणाम यह हुआ कि बहुत भयंकर शब्द होने के पश्चात आधे से अधिक डिब्बे लाइन से नीचे उतर कर कुछ दूरी पर जा गिरे।
दोनों गाड़ियां इतनी भीषणता से टकराई कि गाड़ी के आगे वाले पांच डिब्बे तो चकनाचूर हो गए। उनमें बैठे यात्रियों में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो चोट-ग्रस्त न हुआ हो। उन डिब्बों के आधे से अधिक यात्री तो मृत्यु के शिकार हो गए थे। चारों ओर कुछ दूरी पर लाशों के ढेर ऐसे पड़े थे, मानों तांडव नृत्य हो रहा हो। किसी का मृत शरीर पहचानना बहुत मुश्किल था। हमारा डिब्बा और आगे के दस डिब्बे लगभग सुरक्षित थे। यद्यपि ट्रेन के कुछ डिब्बे ट्रैक से उतरे थे, पर लोगों को अधिक चोट नहीं आई थी। आगे के जो ट्रेन के डिब्बे ट्रैक से नीचे आ गए थे उनपर बैठे यात्रियों को बहुत चोटें आई थी। हमारे डिब्बे में सभी यात्री सुरक्षित थे।
इस भयानक हादसे से सभी बिल्कुल खामोश, डरे हुए थे। इतनी बड़ी गाड़ी में हजारों व्यक्ति यात्रा कर रहे थे। उनमें से कितने मरे तथा कितने मृत्यु शय्या पर थे, कितने घातक चोट खाकर मूर्छित पड़े थे; उनकी गणना असंभव-सी हो गई थी। दिल को चीरती हुई करुणा भरी पुकारें, अपंग हुए अभागे लोग, रोते-बिलखते, सिसकते, चीखते, करुण-क्रंदन करते बालक, युवा, वृद्ध, नारी, युवती, अभागी नवविवाहित जिसके हाथों की मेहंदी भी नहीं सूखी थी, अपने कार्यालयों के लिए जाते हुए कर्मचारी वर्ग, किलकारी मारते हुए शिशु शवों के ढेर में बदल चुके थे। रक्त की बहती हुई नदियां भयानक दृश्य उपस्थित कर रही थी।
अपने डिब्बे में भौंचक्का होकर मैं कुछ समय तक तो जड़ बना रहा, लेकिन धीरे-धीरे भागते लोगों को देखकर मैं भी भागा। मैंने यथाशक्ति इधर-उधर ट्रेन के मलबे में दबे घायलों को की कोशिश की। चार छोटे-छोटे बच्चे जो अलग-अलग डिब्बे में थे बेहोश और घायल पड़े थे, मैं उनको बचाने में सफल हुआ। मेरे वस्त्र खून से लथपथ हो गए थे। इसके बाद अनेक शवों को उठाने में, घायलों को यथाशक्ति सहायता देने में और उनकी देखभाल के लिए मैं दौड़ता-भागता रहा। इधर-उधर बिखरा सामान एक जगह पर एकत्रित करता रहा, ताकि उसे पहचान कर फिर लोग अपना-अपना सामान प्राप्त कर सके। गाड़ी के उन पांच डिब्बों की यह दशा थी, कि वे चूर-चूर हो गए थे। उनका कोई भाग भी शेष नहीं बचा था। लोहे के सामान तक विकृत हो गए थे। इंजन की दशा और खराब थी।