Title : महालक्ष्मी मंत्र
Pages : 5
Size : 90.7 KB
File format : PDF
Category : Hinduism / Mantra
Language : Hindi / Sanskrit
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अच्छी बातें : कितने स्वामी होते हैं जो नौकरों को दुर्वचन या अपशब्द कहते रहते हैं। वे इसमें अपना रोब समझते हैं। जब उनके मकान व आश्रय में बाहरी चार आदमी आ जाएंगे तब वे अधिक जोर देकर नौकरों को डांटे-फटकारेंगे तथा गाली भी देंगे। किन्तु वे यह नहीं जानते व समझते कि कोई भी गाली पसंद और चाह नहीं करता और किसी के द्वारा कहा गया दुर्वचन कोई नहीं स्वीकार करता।
आपके घर में अतिथि व मेहमान आते हैं। आप उन्हें खाने-पीन की वस्तुएं अर्पित करते हैं। अतिथिगण जिन वस्तुओं को पसन्द नहीं करते उन्हें छोड़ देते हैं और वह अंत में आपके ही पास आपके घर में रह जाती है। इसी प्रकार आप जो गालियां दूसरों को देते हैं उन्हें वे पसंद तो करतें नहीं; अतएव वे आपके स्वयं के पास ही लौटकर आती है। मूलतत्व यह है कि गाली देने वाले के मन तथा मुख दूषित होते हैं। उसका शख्सियत (personality) व कारकुन गिर जाता है। नौकरों को हर समय डांटते रहने से अपना स्वभाव, मनोभाव एवं स्वरूप बिगड़ता है तथा नौकर भी बेशर्म हो जाते है। निरतंर डांट देना ठीक है; परन्तु डांट में भी प्रेम भरा रहना चाहिए। पढ़े -
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नौकरों को उपेक्षा व घृणा-युक्त दृष्टि व नजर से देखने का मालिक व हाकिम को अधिकार नहीं है। संसार में सब अपने पेट तथा इच्छापूर्ति के नौकर हैं। जैसे आपके यहां कोई व्यक्ति मनुष्य सेवक है वैसे आप भी अपने पक्वाशय तथा परिवार के और न मालूम किन-किन इच्छाओं के नौकर हैं।
चाहे कोई कितना ही हीन नौकर या दास हो, परन्तु सब में थोड़ा-बहुत आत्मसम्मान होता है। मालिक को उसके संग ऐसा आचरण व तकसीम करना चाहिए कि उसके स्वाभिमान में यथासंभव ठेस न लगे। स्वच्छंदता सबको प्रिय व शीलवंत है; अतएव नौकरों से उचित काम लेकर यथासंभव उनके निज की स्वाधीनता में व्यवधान नहीं करना चाहिए।
नौकरों के साथ स्वामी-सेवक की गरिमा व शिष्टाचार पालन करते हुए भी अपने हृदय से उनको अपना नौकर न मानकर साथी समझो। यह अधिकांशतः भ्रम है कि नौकरों के साथ संवेदना और अनुकंपा का बरताव करने तथा उन्हें स्नेह देने से वे उद्दण्ड हो जाएंगे। यह ठीक है कि अनुशासन व आत्मसंयम की आवश्यकता है, किन्तु उसमें सहानुभूति, स्नेह तथा उपकार की भावना मिली हुई होनी चाहिए।