संस्कृत, हिन्दी, ब्रजभाषा तथा दूसरी भाषाओं जैसे अवधी, गुरुमुखी तथा अन्य के अपूर्व सामंजस्य से बना अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश अपने आप में उत्तम शब्दकोश है। इसमें हमने प्रचलित शब्दों के साथ ही अनेक ऐसे शब्दों और दुर्लभ उक्तियों का प्रयोग किया है जो शायद अब तक उपलब्ध किसी भी शब्दकोश में मुश्किल ही ढूंढने से मिलेंगे। हिन्दी भाषी समुदाय की अपेक्षाओं को देखते हुए हमने इसमें कई मुख्य हिन्दी तुल्य बदलाव किये हैं जिससे हिन्दी भाषियों को अंग्रेजी के दुर्लभ और कठिन शब्दों को समझने में बहुत काल तक उपाय न करना पड़े। बाजार में उपलब्ध अन्य dictionaries से बेहतर इसे हमने बनाने का पूर्ण प्रयत्न किया है। अब हम अपने इस ध्येय को कहां तक पूरा कर सके हैं इसके लिए अपने पाठकों को न्यायाधीश की पृष्ठाधार सौंपते हुए हम उनके आदेश के आकांक्षी हैं -
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1947 ई. में राष्ट्र स्वतंत्र हुआ, और इसे समृद्ध बनाने के सर्वतोन्मुखी प्रयास आरम्भ हुए। राष्ट्रभाषा एवं समस्त राज्य के विभागों की संपर्क भाषा हिन्दी घोषित की गयी। पिछले पचास-छाठ वर्षों में इस देश में अंग्रेजी भाषा का प्रचुर प्रचलन हुआ था। अब यह तात्विक समझा गया कि भारतीय भाषाएँ अपने को सम्पन्न बनाएं, जिनसे उनका उपयोग समस्त राष्ट्रीय कार्यों में होने लगे।
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पिछली दो शदियों में अंग्रेजी की व्यापकता न केवल अपने देश में बढ़ी, यह भू-भाग के अनेक भूभागों की संपर्क भाषा बन गयी। यूरोप में यह इंग्लैंड की जन-भाषा थी। कनाडा में अंग्रेजी और फ्रेंच को मान्यता मिली। दक्षिण-अफ्रीका में अंग्रेजी और African भाषाओं को अंगीकृत व समर्थन किया गया। दक्षिण अमेरिका में स्पेनिश और अंग्रेजी को प्रधानता मिली। ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अनेक यूरोपीय देशों के व्यक्ति थे, जिन्होंने धीरे-धीरे English को व्यवहार की भाषा बना लिया।
हमारे देश का महत्वपूर्ण शिक्षित वर्ग थोड़ा-बहुत अंग्रेजी से परिचित हो गया था और स्वतंत्रता मिलने से भूतकाल में अंग्रेजी भाषा इस देश में विश्वविद्यालयों, हाईकोटों, बैंकों और विदेशी-विनिमय की भाषा बन गई थी। इस स्थिति में स्वतंत्रता के अनन्तर परिवर्तन होना आवश्यक था।
इस परिवर्तन के लिए आवश्यक था कि प्रादेशिक भाषाओं एवं राष्ट्रभाषा के विद्वान लेखक हिन्दी और अन्य प्रादेशिक भाषाओं में आवश्यक साहित्य का रचना करे। अट्ठारहवी सदी से ही यूरोप में शिल्प और आधुनिक विज्ञान का प्रचलन बढ़ा और यह सब साहित्य यूरोपीय भाषाओं में था। नये प्रजातंत्र-समाज की नींव पड़ी। शिल्प, वाणिज्य और व्यवसाय ने यूरोप के समाज का बनावट बदल दिया। समाजशास्त्र संबंधी नयी विचारधारा का साहित्य भी यूरोपीय भाषाओं में था। छपाई की सुविधा ने साहित्य के प्रदर्शन को प्रोत्साहन दिया। छपाई की कला का प्रारंभिक उद्भव चीन में हुआ, किन्तु इसका पोषण यूरोप और बाद में अमेरिका में हुआ। प्रकाशन की सुविधा ने जन-साहित्य के रचना को बढ़ावा व प्रेरणा दिया। इस प्रकार यूरोपीय देश नये प्रकार के साहित्य-निर्माण में अग्रणी हो गए।
इधर यातायात की सुगमता व सुभीता और युग-युग में उपलब्ध होने वाले सुगम साधनों ने जन-संपर्क में भी अनपेक्षित अभिवृद्धि की। इस प्रकार यूरोपीय देशों का समाज अति संपन्न हो गया। देश की स्वतंत्रता के साथ यह अनुभूति तथा परीक्षा होने लगा कि यह युग-साहित्य भारत की भाषाओं को भी उपलब्ध हो। साहित्य इस युग में अब किसी देश की परिसीमाओं में नहीं जकड़ा जा सकता, यह अंतर्राष्ट्रीय और जनमात्र की संपत्ति है।
भारतीय भाषाओं को इस युग-साहित्य की उपलब्धि इस समय चार-पांच भाषाओं के तदबीर से हो सकती है, (जिनमें भारतीयों की दृष्टि से अंग्रेजी प्रमुख है) - अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रूसी और जापानी। आज ये पांच भाषाएं ही बेहद समृद्ध है, और आधुनिक वैज्ञानिक, दार्शनिक, समाजशास्त्रीय और तकनीकी अनुसंधान और अनुशीलन इन्हीं पांच के माध्यम से अधिक होते है। यूरोप के छोटे-छोटे देशों की भी अपनी भाषाएं है, जो उच्च विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा का माध्यम है।
भारतीयों की घनिष्टता अंग्रेजी शासन के कारण अंग्रेजी भाषा से अधिक रही। फ्रेंच-शासित नगरों (जैसे चंद्रनगर, पांडिचेरी आदि में) और आज के मॉरीशस में यहाँ के लोगों को फ्रेंच भाषा पर वैसा ही अधिकार है, जैसा अन्यत्र English पर। अतः यह अनिवार्य व बाध्यात्मक था कि अंग्रेजी साहित्य की सहायता से भारतीय वाङ्मय का भंडार भरा जाय। इस कार्य के निमित्त जनता, पाठक, लेखक, अध्यापक एवं विद्यार्थी वर्ग, सबके लिए अच्छे अंग्रेजी-हिन्दी कोश की सदा से आवश्यकता नुमायान होती रही है।
पिछले 40 वर्षों में इस तरफ में कुछ अच्छे प्रयास भी हुए हैं जिनका mention हमने इस भूमिका में किसी दूसरे स्थान में किया है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग में भी केन्द्रीय शासन के अनुदान से ऐसा ही अंग्रेजी-हिन्दी कोश की आयोजना हाथ में ली, जो अब सामान्य जन के समक्ष मौजूद है। इस कोश में हमने अभी तक प्रकाशित लगभग सभी अंग्रेजी कोशों, अंग्रेजी-संस्कृत कोशों, अंग्रेजी-हिन्दी कोशों और भारतीय शासन के शब्दयोग द्वारा प्रकाशित समस्त पारिभाषिक साहित्य से सहायता ली है।
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यह अनुस्मरण बनाए रखना चाहिए कि यह कोश पारिभाषिक शब्दावली का नितान्त सहायक कोश नहीं है। सामान्य साहित्य में प्रचलित पारिभाषिक शब्दों का ही इसमें अंतर्वेशन किया गया है। आधुनिक शिल्प और वैज्ञानिक विषयों पर शास्त्रीय ग्रंथ लिखने वालों को तो इस दिशा में सहायता
शब्दावली आयोग द्वारा प्रकाशित साहित्य से ही मिल सकेगी। संकेताक्षरों से इंगित कर दिया गया है कि फलां शब्द किस प्रतिमा-विद्या-विशेष का है, और उसके लिए अधिकृत शब्द आयोग के किस प्रकाशन से लिया गया है।