Title : श्री गायत्री चालीसा
No. of pages : 6
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File format : PDF
Category : Religious
Language : Hindi
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पढ़ने हेतु : जिस माता या पिता में हिंसा, चोरी तथा व्यभिचार की वृत्ति है, जो मदिरा, मांस, गांजा, भांग, बीड़ी, सिगरेट, पान, तंबाकू और न जाने कैसी-कैसी ऊलजलूल वस्तुओं को खाने के व्यसनी हैं; उनके लड़के उनसे प्रायः वही सब सीखेंगे। स्वयं नाना दोषों, दुर्गुणों एवं दुर्व्यसनों की पिटारी बनकर हम अपने बच्चों को उत्तम मनुष्य या सेवक के रूप में देखने की तजवीज़ या कोशिश करें, यह एक विद्रूप या मूर्खता ही है। हां, बच्चे अपने सद्पुरूषार्थ तथा सौभाग्य से पवित्र बने रहें।
आचार्य चाणक्य की नीति है कि पांच वर्ष के पड़ाव तक बच्चों का लाड़-प्यार करना ठीक है। इसके बाद 16 वर्ष की आयु तक उन पर कड़ी पर्यवेक्षण रखनी चाहिए। वे किसी प्रकार के गलत आचरण में न फंसने पावें। कड़ी निगरानी का तात्पर्य गाली देना तथा मारना-पीटना नहीं, अपितु उनकी ठीक देख-रेख है। 5 और 16 वर्ष की अवस्था के बीच में बच्चों का अधिक दुलार करना, उनको बिगाड़ने का साधन है। ऐसे कई माता-पिता से मैं परिचित हूँ, जो इस अवस्था के बीच में अपने बच्चों का अधिक दुलार किये और बच्चों का मनोभाव व स्वभाव बिगड़ गया और वे माता-पिता के हाथों से निकल गये।
16 की अवस्था के बाद बच्चे जवान हो चलते हैं। इस समय उनके साथ विशेष कड़ा बरताव उनके मन में विप्लव या बलवा की भावना उत्पन्न करेगा। युवक-युवतियों को एकदम छूट दे देना उनका पतन-पथ प्रशस्त कर देना है और उन पर हर क्षण अत्यंत कड़ी दृष्टि रखना उनके मन के विद्रोह को भड़काना है। अतएव आवश्यकता है कि इस स्थिति में माता-पिता मध्यवर्ती बनकर व्यवहार करें।
जो लोग बच्चों पर कड़ा प्रतिबंध रखते हैं, बच्चों को 'तू बुद्धू है, मूर्ख है।' कहते रहते हैं, उनके बच्चे दब्बू, कुंठित एवं माता-पिता के विरोधी हो जाते हैं। कटु-कुठार कहकर तो किसी के भी हृदय को नहीं हासिल किया जा सकता। माता-पिता को अभिलाषा करनी चाहिये कि बच्चों को स्नेह देकर और हानि-लाभ का कोमल भाषा में ज्ञान कराकर उन्हें बुराइयों से विरत करें और अच्छे मार्ग में लगावें।
आज के काॅलेजी तथा शहरी अधिकतम युवक-युवतियां अपने अभिभावकों के नियंत्रण में बिल्कुल नहीं रहना चाहते। युवक-युवतियों का मनमानी घूमना, हंसना, अंग-स्पर्श करना, सिनेमा-होटल में जाना, वन-पर्वतों, क्लबों-उद्यानों, गली-कूचों में भ्रमण करना - यह सब उनके स्वभाव को बिगाड़ने का साधन है। अर्थात इन सब में मनमानी बर्ताव करना उनका पतन पथ है।
अभिभावकों का कार्यक्षेत्र है कि वे नौजवान लड़के-लड़कियों को समझा-बुझा कर उन्हें ठीक पथ पर लाने का उपाय करें। उन पर कड़ा प्रतिबंध लगाकर, कठोर नियंत्रण करके तथा कठु-कुठार कहकर उन्हें सुधारने का दुराग्रह छोड़ दें।