Title : मारवाड़ी भजन सागर
Pages : 792
File Size : 20.9 MB
Category : Hindu Religion
Language : Hindi
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Only for reading: ध्यान रहे, तुम अपने साथियों तथा अनुयायियों से लम्बी आशा न रखो। वे सब आपस में प्रेमपूर्वक निपटते रहें इतना काफी है।
लोग कमाते-खाते रहें और सन्मार्ग में लगे रहें, इसके अलावा क्या चाहिए! लोग तुम्हारी हर आज्ञा बजाते रहे, वे तुम्हे अपने तन-मन अर्पित किये रहे, इस मिथ्या आशा में कभी मत पड़े रहो। तुम साथियों तथा अनुयायियों का हित करते रहो, उनसे बदले में कुछ मत चाहो। भैया जियें कुशल से काम! तुम सबकी कुशल कामना करो, किन्तु अपने लिए कोई कामना न करो।
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संसार में ऐसा कोई व्यक्ति न हुआ है, न है न होगा जिसको दुसरो के पुरे स्वाभाव पसंद हो। हम भी दूसरों के, यहाँ तक महान से महान पुरुषो के भी सारे विचार एवं स्वाभाव पसंद नहीं करते। तब हम दूसरों से यह आशा कैसे रखते हैं कि वे हमारे सारे विचार एवं स्वाभाव पसंद करेंगे!
संसार विचारों एवं स्वभावों के विरोध का एक बृहत् बाजार है। इसमें रहकर जो व्यक्ति दूसरों के विचारों एवं स्वभावों को जितना सहन कर लेता है, वह उतना ही महान एवं सुखी होता है।
हर आदमी के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, उठने-बैठने, चलने-फिरने और काम-धंधा करने के तौर-तरीके प्रायः अलग-अलग होते हैं। मान्यताओं, धारणाओं एवं सिद्धांतों की भिन्नता प्रत्यक्ष ही है। सबके शरीर की गठन, स्वभाव, रुचियाँ सहनशक्ति में भी पृथकता है।