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10 Best Yoga Books in Hindi PDF | योग पुस्तकें

योग-विज्ञान भारत की दुनिया को एक बड़ी देन है। इसे करने के नियमों व अनुशासन को सीखकर हम संपूर्ण जीवन स्वस्थ रह सकते है। यहां योग की कुछ अच्छी पुस्तकों का संग्रह है, डाउनलोड कर पढ़े।

  1. पतंजलि योग दर्शन
  2. पतंजलि योगसूत्र
  3. योग और शिक्षा
  4. योग विज्ञान के मूल तत्त्व
  5. योग - प्रवाह
  6. योग की कुछ विभूतियां
  7. हमारा योग और उसके उद्देश्य
  8. योग के चमत्कार
  9. धारव योग विज्ञान
  10. भगवद गीता का योग

केवल पढ़ने के लिए: मालिक, जो वास्तव में सेवक है, उसका कर्तव्य है कि वह अपने परिवार, समाज एवं संस्था को अनैतिकता, दुराचार, अपराध आदि से बचाकर सन्मार्गगामी बनाये।
यही उसको स्थायित्व देने का आधार है। जो परिवार, समाज एवं संस्था मानव के उत्तम गुणों का आश्रय रखेंगे, उनका क्रम स्थायी रहेगा उन्हें कोई शक्ति तोड़ नहीं पायेगी।

ये पुस्तकें भी पढ़े -
  • योगासन और योग शिक्षा की पुस्तकें (PDF)
  • 20 Useful Ayurved Hindi E-Books

और जो मानवीय गुणों का उल्लंघन करेगा चाहे उसके सहायक कोई परमात्मा नामधारी ही क्यों न हो उसे बचा नहीं पायेगा। जो अपने नियमों को छोड़ता है, प्रकृति उसे अपने स्टेज से खारिज कर देती है जो अपने नियमों में आबद्ध रहता है, प्रकृति उसके अस्तित्व में सहयोग करती है। यह विश्व का शाश्वत नियम है।

पतंजलि योग दर्शन
विवेकवान पुरुष किसी भौतिक वस्तु, संस्था, संगठन, समाज, परिवार आदि के भावी विनाश की सम्भावनाओं की कल्पना करके रोते-झंखते नहीं हैं। वे यह भलीभांति समझते हैं कि संसार में अन्धेरखाता नहीं है; सब कुछ कारण-कार्य की व्यवस्था में बंधा है। वही घटता है जो हमारे किये हुए कर्म हैं। सन्मार्ग का फल कभी बुरा नहीं हो सकता और सन्मार्ग छोड़ देने पर पतन को कोई रोक नहीं सकता।

दशरथ के मन में संदेह ने उनके न चाहते हुए भी श्रीराम को निर्वासित कर दिया। दशरथ के मन में यह संदेह था कि जब मैं राम को राजगद्दी पर बैठाऊंगा, तब कैकेयी विघ्न करेगी और भरत को राज्य दिलाना चाहेगी। इसी संदेह का परिणाम हुआ कि जब भरत शत्रुधन सहित अपने मामा के यहां कैकेय देश में थे, तभी दशरथ ने राम को राजगद्दी देना चाहा और राम से कहा -

"मेरा विचार है कि जब तक भरत इस नगर से बाहर अपने मामा के यहां हैं, तब तक तुम्हारा तिलक हो जाना चाहिए। यह ठीक है कि तुम्हारे भाई भरत सत्पुरूषों के अचार-व्यवहार में स्थित हैं, वे तुम्हारे अनुगामी, धर्मात्मा, दयालु और जितेन्द्रिय हैं परन्तु मेरा विचार है कि मनुष्य का मन सदैव एकरस नहीं रहता। हे राघव! धर्मपरायण व्यक्ति का चित्त भी कारण पाकर विचलित हो जाता हैं।"

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