व्यायाम स्वास्थ्य का सच्चा मित्र है। जो व्यायाम नहीं करता, उसका रोगी होना अनिवार्य है। पंद्रह-सोलह वर्ष की आयु से यदि योग का अभ्यास नहीं किया जाये, तो शारीरिक व्याधियों से जीवन भर छुटकारा मिलता रहेगा। नीचे योगासन और व्यायाम से जुड़ी पुस्तकों को डाउनलोड करें।
- योग - स्वस्थ जीवन जीने का तरीका (रंगीन चित्रों सहित)
- आसन और प्राणायाम
- योग के आसन और कसरतों के चित्र
- योग आसन एवं साधना
- स्वास्थ्य और योगासन
- योग शिक्षा
- अष्टाग योग प्रकाश
केवल पढ़ने हेतु: राजा दशरथ जैसे महापुरुष के मन का संदेह रूपी पाप, जिसके कारण राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास का कष्ट झेलना पड़ा।
यह अलग बात है कि राम पर विपत्ति न पड़ी होती, तो वे इतना न चमकते। कच्चा आदमी विपत्ति आने पर टूट जाता है तथा सच्चा आदमी विपत्ति आने पर अपने को तपाकर चमक जाता है।
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इसी संदेह से दशरथ ने कैकेयी से भी राय नहीं ली थी। परन्तु जब मंथरा द्वारा कैकेयी ने सुना कि राम का राजतिलक होने वाला है, वह बहुत प्रसन्न हुई और अपने आश्चर्यचकित होकर हर्षपूर्वक मंथरा को एक बहुमूल्य सुन्दर आभूषण दिया। जब मंथरा ने कैकेयी को बहुत उलटा-पलटा पढ़ाया, तब उसका मन खराब हुआ।
यदि दशरथ कैकेयी तथा भरत से राय लेकर काम किये होते तो राम का निर्वास नहीं होता। दशरथ के मन के संदेह ने सारा दुख उत्पन्न कर दिया।
अतएव आप अपने परिवार, समाज एवं संस्था के सदस्यों से बारम्बार मिलें, उन्हें अपने पास बैठावें, बारम्बार मिलजुलकर हर बात पर विचार करें, मन में जिस बात पर संदेह आ गया हो उसका अपने विवेक से निवारण करें या सभी सदस्य आपस में बैठकर निवारण करें।
संदेह रहने न दें। संदेह पाप है। यह व्यक्ति, परिवार, समाज एवं संस्था को तोड़ता है। जिसका संदेह स्थायी है, उसे समाज छोड़ देता है, या वह समाज से अलग जा पड़ता है। यदि कोई गलत होने के नाते संदेह का पात्र है, तो उस पर केवल संदेह न करके, बल्कि उसकी जांच-परख कर उसका सुधार करना चाहिए। यदि वह चाहेगा, तो सुधरेगा, नहीं चाहेगा तो अलग हो जायेगा। परिवार, समाज एवं संस्था रूपी उधान तो विश्वास-प्रेम रूपी जल से सींच कर हरा-भरा रखा जा सकता है। संदेह तो उसके लिए तुषारापात है।