ऋग्वेद के समय से शुरू हुई विद्या 'ज्योतिष विद्या' की कुछ पुस्तकें नीचे डाउनलोड कर पढ़े।
- भृगु संहिता (ज्योतिष शास्त्र की श्रेष्ठ पुस्तक)
- हस्त रेखा विज्ञान
- भारतीय ज्योतिष
- भारतीय ज्योतिष विज्ञान
- रत्न - परिचय
- सुगम ज्योतिष प्रवेशिका
- अंक - विद्या ज्योतिष
- हस्तरेखा शास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन
- सचित्र ज्योतिष शिक्षा प्रारंभिक ज्ञान खंड
- हिंदी में संपूर्ण वास्तु शास्त्र
Only read: कुछ भावुक लोग होते हैं। वे दूसरों की देखा-देखी तथा कुछ अन्य भावुकों के हाँ-हाँ कर देने से संस्था का गठन कर डालते हैं, सरकार से पंजीकृत भी करा लेते हैं,
परन्तु यह सब केवल कागज में होकर रह जाता है। किसी भी लोक कल्याणकारी संस्था को चलाने के लिए संघदार विश्वसनीय तथा एक विचार के समर्पित सदस्य होने चाहिए।
इसके साथ धन होना चाहिए। यदि कार्यकारिणी के सदस्य ठीक हैं तो धन आ जायेगा और यदि वे ठीक नहीं है तो धन रहते हुए भी संस्था प्रगति नहीं कर सकती। उलटे धन का दुरुपयोग हो जायेगा। यह भली भांति समझ लेना चाहिए की धन धन नहीं है किन्तु मनुस्य धन हैं।
जिस संस्था का मुखिया धन का महत्व देता है, संस्था के मनुष्यों एवं सदस्यों को नहीं, उसकी संस्था देर सबेर टूटकर रहती है। यदि संस्था के कार्यकारिणी सदस्य ठीक है तो धन आता है और यदि सदस्य खोटे तथा विभाजित विचार के हैं तो आया हुआ धन चला जाता है। धन धन नहीं है, मनुष्य धन हैं इस बात को हमें अपने अन्तःकरणपातल पर लिख लेना चाहिए।
खेद है कि धन के लिए लोग परिवार, समाज एवं संस्था के सदस्यों के साथ विद्वेष कर लेते हैं। वे यह नहीं संघाते की हम अपनी और परिवार, समाज एवं संस्था की बहुत हानि कर रहे हैं। हमें चाहिए कि हम धन की परवाह छोड़कर परिवार, समाज एवं संस्था के सदस्यों को अपना बनाये रखने का प्रयत्न रखें। यह व्यवहार कि बात कि जा रही है, वैराग्य की नहीं। वैराग्य में किसी को अपना पराया मानने कि बात ही नहीं है।