Title : इतिहास लेखन
Pages : 361
File Size : 3.8 MB
Category : History
Language : Hindi
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Title : भारतीय इतिहास लेखन की भूमिका
Pages : 202
File Size : 13 MB
Author : ए. के. वार्डर
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Only for reading: मनुष्य जवानी में घर का मालिक होता है। वह धन कमाता है। इसलिए उसका पूरे परिवार पर रोब रहता है।
शरीर से स्वस्थ होता ही है। उसके बच्चे कम उम्र के होने से निर्दोष होते हैं; अतः वे उसको प्यारे होते हैं; आज्ञाकारी होते हैं। बुढ़ापा में यह सब बदल जाता है। शरीर बूढ़ा हो जाता है, अतः रोग भी सताते हैं। वह प्रायः धन नहीं कमा पता। बच्चे घर के मालिक हो जाते हैं, अतः उसे लगता है कि अब मेरा अधिकार घर पर नहीं रहा।
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बाहर के लोग जब मिलने आते हैं, तब वे प्रायः बच्चों से ही मिलते हैं, क्योंकि वे ही घर के मालिक होते हैं। यदि उसने जवानी में बच्चों, बहुओं एवं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सुन्दर व्यवहार नहीं किया हैं, तो बुढ़ापा में वे सब इससे अंदर-अंदर घृणा करते हैं।
बूढ़े के पास वर्तमान में कोई रचनात्मक कार्य नहीं रहता। उसके पास केवल रहता है अपने बचपन से लेकर जवानी तथा परिपक्व अवस्था तक की स्मृतियों का बंडल। इनमें से वह अनुकूल स्मृतियों को चुन-चुनकर उसका तिल का ताड़ बनाकर मिलने वालों के सामने उसे परोसता रहता है। उसकी यह अतिरंजना भरी मुर्दा बातों को कोई कार्य से सुनना भी नहीं चाहता।
यह सब सुनने के लिए जवानो को न रूचि रहती है और न समय। अतएव बूढ़े समझते हैं कि हमारी चारों ओर से उपेक्षा हो रही है। जवानी में इन्द्रियां सबल होने से किन्ही-किन्ही इच्छाओं के अनुसार भोगों को भोग लेने से उसके मन में क्षणिक संतोष हो जाता है। परन्तु बुढ़ापा में दुर्बल इन्द्रियों से यह भी संभव नहीं रहता। अतएव बूढ़ा व्यक्ति इच्छाओं वासनाओं तथा तृष्णाओं की धारा में केवल बहता रहता है। बूढ़ा देखता है कि घर एवं परिवार के सृजन तथा सम्पनता का मैं ही मूल हूँ और फिर भी इन्ही में आज उपेक्षित हूँ।
इस प्रकार बूढ़े कि अहंता और तृष्णा उसे शांति नहीं लेने देती। इतने पर भी वह परिवार को अधिक समृद्धशाली होते देखना चाहता है और इसको लेकर वह परिवार वालों कि नालायकी का मिलने-जुलने वालों से दिन भर बखान करता है। बूढ़े के इस रवैये से घरवाले उससे और क्षुब्ध हो जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बूढ़ा अधिक तनावग्रस्त होता जाता है।