शिक्षा-प्रणाली के नियम मनोविज्ञान के विचार पर स्थापित हैं। जो नियम मनोविज्ञान के दृष्टि से उचित नहीं होता वह उपयोगी नहीं माना जा सकता। नीचे की सूची से मनोविज्ञान की किताबों को डाउनलोड कर पढ़े।
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केवल पढ़ने के लिए: अब, ऐसे मनुष्यों के बीच में रहकर जो व्यक्ति दूसरों से समझौता नहीं बनाये रख सकता, वह व्यवहार में कैसे सफल हो सकता है!
चार बर्तन जहाँ हैं, आवाज होगी। उन्हें संभालकर रखना समझदार आदमी का काम है। दूसरे के स्वभाव एवं क्रियायों को सहन किये बिना किसी का मन शांत नहीं हो सकता।
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इस पथ में हमारा अहंकार रोड़ा बनता है। अतः जो व्यक्ति अहंकार को जितना जीत लेता है, वह उतना ही सहनशील बनकर संसार में सर्वजयी होता है।
सुख-सुविधा को नहीं सोचता, उसको कभी भी शांति नहीं मिल सकती। और जो दूसरों की बुराई में लगा हो, उसकी अशांति का पारावार कहाँ होगा!
वे भले हो बुरे, किसी को शत्रु मानना अपनी ही हानि करना है। किसी को शत्रु मान लेने से उसके प्रति हमारे मन में द्वेष एवं वैर बन जाते है। इस प्रकार हमारा मन गन्दा हो जाता है। हमारे मन की शुद्धि एवं अशुद्धि दशा ही हमारे मोक्ष तथा बंधन का कारण है।
कोई सचमुच ही हम से शत्रुता रखता हो, परन्तु हम यदि उसे अपने मन में महत्व नहीं देते, तो वह हमारी थोड़ी भी हानि नहीं कर सकता। हमारी हानि हमारे मन की अशुद्धि में है तथा हमारा लाभ हमारे मन की पवित्रता में है। इस बात को ठीक से समाघ लेने पर हमारी दृष्टि में कोई शत्रु रह ही नहीं जाता।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अकेले नहीं रह सकता। यदि वह जिनके साथ रहता है, उनसे प्रेम नहीं बनायें रख सकता, तो उसके जीवन में सुख-शांति के दर्शन नहीं हो सकते। मनुष्य अपने साथियों में अहंकार-वश राग-द्वेष करके वर्तमान स्थिति को नरकमय बना लेता है। जहाँ एक दूसरे से तनाव रखता है और इसलिए लोग उससे घृणा रखते हैं, वहां ऐसे वातावरण में दुर्गन्धि के अलावा क्या हो सकता है!
हम अपना मन खराब करके अपने ही शत्रु बन जाते हैं और अपना मन पवित्र करके अपने मित्र बन जाते है ।
जो लोग दूसरों के विरोध में कमर कस कर रात-दिन तैयार रहते हैं, वे अपने जोश में अपने आप को बड़ा बहादुर मानते हैं और वे समझते हैं कि हम संसार का बहुत बड़ा काम कर रहे है। परन्तु वे अत्यंत भोले हैं, और वे अपने आप को कुछ ही दिनों में उसी प्रकार नष्ट कर लेते हैं जैसे वर्षा आने पर भड़भाड़ नष्ट हो जाते है।