दोस्तों, पिछले पोस्ट में हमने 7 अकबर बीरबल की कहानी दी थी। उम्मीद है आपको पसंद आई होगी। यहां और 5 अकबर बीरबल की कहानियों को दिया जा रहा है।
एक दिन अकबर बादशाह ने मजाक में बीरबल से कहा - 'बीरबल! मुझे बैल का दूख ला दो।'
बीरबल बोले - 'लाने का प्रयन्न करूंगा, लेकिन इस काम में चार-छः दिन अवश्य लग जाएंगे।'
अकबर बोले - 'चार-छः दिन की जगह अगर आठ-दस दिन भी लग जाएं तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन बैल का दूध जरूर मिलना चाहिए, क्योंकि
एक मशहूर वैद्य ने मुझे एक दवा दी है जिसका इस्तेमाल बैल के दूध के साथ ही करना है।'
बीरबल घर आए और उन्होंने अपनी लड़की से परामर्श करके कहा - 'कल आधी रात को बादशाह के ठीक नीचे वाले घाट पर जाकर कपड़े
पीट-पीटकर धोना और किसी के पूछने पर कारण किसी को मत बताना। यदि बादशाह पूछें तो जो कुछ मैंने कहा है उन्हें वह सब बता देना'
अगले दिन बीरबल की लड़की ने आधी रात को घर के मैले-कुचैले कपड़कों की एक गठरी बांधी और बादशाह के महल के ठीक नीचे वाले घाट
पर जाकर उन कपड़ों को पानी में भिगो-भिगोकर पत्थर पर पीटना शुरू कर दिया। रात के सन्नाटे में जोर-जोर से कपड़े पीटने से
'फटफट....फटफट' का कर्णभेदी स्वर गूंजने लगा और बादशाह की निद्रा भंग हो गई। उन्हें बड़ा क्रोध आया और उन्होंने पहरे वाले सिपाही को
बुलाकर उनकी निद्रा भंग करने वाले को पकड़कर लाने का हुक्म दिया।
आज्ञा पाकर सिपाही घाट के पास पहुंचा तो उसने देखा कि अट्ठारह-उन्नीस वर्ष की एक सुन्दर युवती कपड़े धो रही है। सिपाही ने उस युवती से
बेवक्त ऐसा करने का कारण पूछा और बादशाह के सामने उपस्थित होने के लिए कहा। पर युवती ने सिपाही की बात सुनकर अनसुनी कर दी
और पहले के समान काम में व्यस्त रही। सिपाही उसकी इस अवज्ञा से झुंझला उठा और बोला - 'आधी रात में कपड़े धोकर तुमने बादशाह की
नींद खराब की है और अब उनकी आज्ञा की भी अवहेलना कर रही हो। यह उचित नहीं। भलाई इसी में है कि हमारे साथ बादशाह के सामने
चलो।'
युवती तो यह चाहती ही थी। वह सिपाही के साथ चल दी। थोड़ी देर में वह बादशाह के सामने पहुंच गई।
बादशाह आधी रात को इस परम सुन्दरी को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। लेकिन अपनी भावमुद्रा छिपाकर नाराजगी प्रकट करते हुए बोले -
'इतनी रात को कपड़े धोने की क्या वजह है? तुम कौन हो और कहां रहती हो?'
युवती ने घबराहटपूर्ण स्वर में उत्तर दिया- ‘आलीजहां! मैं लाचार होकर इतनी देर से यहां आई हूं।' यह कहते-कहते बादशाह के क्रुद्ध चेहरे को
देखकर युवती का धैय जाता रहा। लड़खड़ाती हुई जुबान में वह आगे और कुछ नहीं कहना चाहती थी, लेकिन वह कह न सकी।
बदशाह ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा- ‘सच बात बता देने पर तुम दण्ड से मुक्त हो जाओगी।'
यह सुनकर चुवती ने कहना शुरू किया- 'आज सुबह मेरे पिताजी का लड़का हुआ है। दिनभर तो मैं वहीं कामों में उलझी रही। अब जरा-सा
विश्राम लेने का अवकाश मिला तो ख्याल आया कि कल साफ कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, लेकिन घर में जगह न होने की वजह से यहां कपड़े
धोने चली आई, कल इन्हें काम में लाऊंगी।'
युवती का उत्तर सुनकर बादशह और भी आश्चर्यचकित रह गए और बोले- 'तुम क्या बक रही हो? क्या पुरूष के भी बच्चे उत्पन्न होते
हैं?'
युवती ने उपयुक्त अवसर देखकर कहा- 'जब बैल का दूध मिलना संभव है तो पुरूष को बच्चा होना संभव क्यों नहीं हो सकता?'
अब बादशाह को अपनी बात का स्मरण हो आया और उन्होंने युवती से पूछा - 'क्या तुम बीरबल की पुत्री हो?'
युवती चुप रही। बादशाह समझ गए कि यह बुद्धीमानी बीरबल की ही है, पर प्रकट में बोले- 'तुम्हें ऐसा करने की किसने सलाह दी?'
युवती बाली-'पिताजी की आज्ञा से ही मैंने ऐसा किया है।'
लेकिन मैं भी तो गया ही नहीं
एक दिन बीरबल दूसरे शहर में अपने रिश्तेदारों से मिलने पहुंचे। दूर से बीरबल को आते देखकर एक दंपत्ति ने लड़ाई का नाटक करने का फैसला किया। पति ने हाथ में लकड़ी ली और उसे जमीन पर मारते हुए पत्नी को धमकाते हुए पीटने का नाटक शुरू कर दिया।
बीरबल ने जब देखा तो समझ गए कि यह सब नाटक है और वह घर के चौबारे में छिपकर बैठ गए। कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि पति-पत्नी ने लड़ाई रोक दी और अपनी-अपनी होशियारी जताने लगे।
पति बोला - 'देखा, किस होशियारी से मैंने लकड़ी उठाकर चलाई, लेकिन तुम्हें एक भी नहीं लगी।'
पत्नी बोली - 'आपने भी देखा कि मैं कितनी चतुराई से चिल्लाई, लेकिन रोई तक नहीं।'
यह सुनकर बीरबल से न रहा गया। वह बोले - 'तुम लोगों ने देखा, मैं किस तरह चौबारे में छिप गया लेकिन मैं भी तो गया नहीं।'
आगरा में कितने कौवे?
एक दिन बादशाह सलामत दरबार में सबसे पहले आए और पीछे जितने भी दरबारी आते गए उन सबसे यही पूछते गए - 'आगरा में कौओं कि संख्या कितनी है?'
सभी दरबारी चुप होते गए, किसी ने भी झूठ-सच कुछ भी उत्तर नहीं दिया। तब तक बीरबल भी दरबार में आ पहुँचे। बादशाह ने वही प्रश्न उनसे भी पूछा।
बीरबल ने तुरंत जवाब देते हुए कहा - 'गरीबपरवर! पिछले साल उनकी गणना करवाई थी, केवल आगरा शहर में ही पन्द्रह सौ पचास कौवे निकले थे।'
बादशाह बीरबल से कौओं की स्पष्ट गणना सुनकर आश्चर्यचकित रह गए और पूछा- 'तुमने पिछले साल गणना कब करवाई थी? उसका प्रमाण दो। मुझे मर्दमशुमारी में शक है।'
बीरबल ने उत्तर दिया - 'पृथ्वीनाथ! यह गणना रत्ती-पाई सही है।'
बादशाह ने कहा- 'अगर इसमें एक नम्बर की भी कमीबेशी होगी तो तुमसे पांच हजार दो सौ सत्तर रूपए दण्ड के रूप में वसूले जाएंगे। आज शाम तक का मौका है, भलीभांति सोच-विचार कर उत्तर दो।'
बीरबल ने कहा - 'जहांपनाह! मेरी गणना बिल्कुल ठीक है। फिर भी गणना करने पर इतने ही कौवे निकलेंगे। कमीबेशी तब होगी जब जहां से कुछ कौवे बाहर गए होंगे या बाहर से मेहमानदारी निभाने के लिए यहां आए होंगे।'
सबसे बड़ा हथियार 'औसान'
एक दिन बादशाह ने बीरबल की अक्ल की परीक्षा के निमित बीच गली में एक मस्ताने हाथी को छुड़वा दिया। एक तरफ से झूमता हुआ हाथी चला और दूसरी तरफ से बीरबल आ रहे थे।
मोड़ पर एकाएक बीरबल और हाथी की मुठभेड़ हो गई।
बीरबल के पास कोई शस्त्र नहीं था, हाथी के भय से सब बाजार भी बन्द थे और कहीं छिपने का स्थान भी नहीं था। हाथी बीरबल को देखकर आगे झपटा। बीरबल ने इधर-उधर देखा, लेकिन उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया। उनकी नजर कोने में बैठी एक कुतिया पर पड़ी। बीरबल ने झट उसकी दोनों पिछली टांगे पकड़ी और घुमाकर उसे हाथी की सूंड पर दे मारा।
चोट खाकर कुतिया के जोर-जोर से चिल्लाने, छटपटाने से हाथी की सूंड कुतिया के नाखूनों से खुरच गई और वह घबराकर पीछे को लौट गया। इधर बीरबल भी अवसर पाकर अपनी जान बचाकर भागे।
बादशाह अपने महल की खिड़की से यह तमाशा देख रहे थे। उनको बीरबल के औसान पर बड़ा सन्तोष हुआ।
जल्दी हजम हो जाएगा
एक बार बादशाह के पास शिकायत पहुंची कि उनका एक मालगुजारी अफसर बहुत गड़बड़ कर रहा है। वह रियाया (प्रजा) से कई गुना ज्यादा माल उगाहता है और ज्यादातर खुद हड़प् कर जाता है। जब अफसर को बुलाकर जांच की गई तो पाया गया कि बहीखातों में बहुत बड़ा घोटाला है। बादशाह ने न केवल उसकी सम्पत्ति जब्त कर ली बल्कि उसे विवश कर दिया कि वह बहीखाते के सारे कागज भी खाए।
प्रजा बादशाह के इस न्याय से बड़ी प्रसन्न हुई। पर बीरबल खुश नहीं हुए। हालांकि उस भ्रष्ट अफसर की जगह उन्हें मालगुजारी अफसर बना दिया गया था। उन्होंने सारा हिसाब-किताब खाखरों पर लिखना शुरू कर दिया।
फिर एक रोज बादशाह ने सब खाते जांच के लिए मंगवाए तो बीरबल सारे खाखरे लेकर उपस्थित हुए।
बादशाह उन अजीब खाखरों को देखकर चकित हुए तो बीरबल ने स्पष्टीकरण पेश किया - 'हुजूर! मेरा हाजमा खराब है। मैंने सोचा कि क्या पता हिसाब-किताब में गड़बड़ी हो और हुजूर मुझे कागज खाने के लिए विवश करें तो जान से हाथ न धो बैठूं। इसलिए मैंने सारा हिसाब-किताब खाखरों पर लिखा है। यह कागज से जल्दी हज़म हो जाएगा।'