Title : सूर्य मंत्र
Pages : 5
Size : 135.3 KB
File format : PDF
Category : Hinduism
Language : Hindi / Sanskrit
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अच्छी बातें : जो व्यक्ति नशीली वस्तुओं का व्यसन भी नहीं त्याग सकता है, वह जीवन में क्या विकाशन व सुधार कर सकता है! व्यसनी आदमी के हाथों में न धन रूक सकता है और न उसके मन में शांति आ सकती है। सदगुरू कबीर संदेश देते हैं कि व्यसनी लोगों पर सदैव तृष्णा की ज़िद (hangover) चढ़ी रहती है। वे कहीं भी तुष्टि नहीं पाते।
कितने ही अनुचरवर्ग जब दूसरों के दरवाजे पर जाते हैं, तब वे कुटुंब वालों से कहते हैं- लाओ यार! कुछ अपने नाम पर फुंकाओ, थुकाओ; जब आप किसी के स्वागत में बीड़ी, सिगरेट आदि देते है। तब वह उसे पी-पी कर मानो आपके नाम पर फूंकता है। जब आप किसी के स्वागत में पान-तम्बाकू आदी देते हैं, तब वह उन्हें खाकर आपके नाम पर थूकता है।
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बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू पान आदि खाने-पीने वाले फूंक-फूंक कर और थूक-थूक कर वातावरण और जगह को दुर्गंध से भरने के सिवाय व बग़ैर क्या करते हैं!
जब आदमी बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि द्वारा धूम्रपान करता है, तब उसके भीतर का परमात्मा उस गन्दे तथा जहरीले धुएं से घबराकर उसे कहता है- क्या लाया रे! तब आदमी धुआं को फुर्र से ऊपर उड़ा देता है। जब आदमी तम्बाकू आदि खाता है, और उसका जहर जाता है तब अन्दर का बैठा परमात्मा कहता है- अरे यह कैसी जहरीली चीज लायी? तब आदमी किच दे थूक देता है। अन्दर का भगवान इन नशीली चीजों को एकदम पसन्द नही करता।
शिष्टाचार कि भ्रष्टाचार : जब अनुचरवर्ग से कहा जाता है कि बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू आदि नशीली चीजों का सेवन क्यों करते हो, तब लोग कहते हैं क्या करें! जब कोई मकान पर आता है, शिष्टाचार के नाते उसे बीड़ी-तंबाकू देना पड़ता है।
कैसी-कैसी धारणा लोगों में है! यदि शिष्टाचार के नाते नशीली चीजें अभ्यागत को देना पड़े तो भ्रष्टाचार के नाते क्या देना पड़ेगा! वस्तुतः नशीली चीजों का स्वयं सेवन करना तथा दूसरे को स्वागत में देना भ्रष्टाचार है, शिष्टाचार नहीं।