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[PDF] Maha Mrityunjaya Mantra PDF | महामृत्युंजय मंत्र अर्थ सहित

भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र
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परिवार और समाज में आनंद की धारा सदैव कैसे बहती रहे, इसके लिए साधन श्रद्धा, प्रेम और करूणा का व्यवहार ही है। जैसे बड़ों का मूल्य है, वैसे छोटों का भी मूल्य है। सम्मान पूर्वक आदर व सत्कार करना चाहिए और छोटों का भी। जिसका मन विनम्र और मृदु है, वह बड़ों को श्रद्धा समर्पित करेगा, परस्पर में प्रेम करेगा और छोटों को स्नेह एवं प्रेमभाव देगा।

अपने मन को कोमल बनाये रखना अत्यंत सहज है। कंकड़, पत्थर, घास तथा घास की जड़ें निकाल देने पर खेत की मिट्टी बहुत ही कोमल mrityunjaya mantra नर्म और मुलायम हो जाती है। इसी प्रकार मन से स्वार्थ, अहंकार एवं कामनाओं को निकाल देने पर मन भी अत्यंत हल्का व विनम्र हो जाता है। कोमल मनुष्य सबको प्यारा लगता है। कई सद्गुणों से संपन्न / दुर्लभ शाबर मंत्र संग्रह पीडीएफ में किन्तु अकड़बाज व्यक्ति सबको अप्रिय लगता है।

किसी भी परिवार और लोगों के समाज में अत्यधिक बिखराव क्यों होता है! जब लोगों के मन के स्वार्थ, अहंकार एवं कामनाएं बढ़ जाती हैं, तब परिवार तथा उससे बना समाज पूरी तरह टूटना और बिखरना शुरू हो जाता है। परिवार तथा समाज में एकता बनाये रखने की महत्वपूर्ण भूमिका उनके अगुआ पर जाती है।

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प्रतिकूलता से डरने वाला कायर-कपूत है। ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक साधना में क्या, लोक-व्यवहार में भी नहीं सफल हो सकता। जो गुरु की भक्ति करना चाहता है और संतों की नहीं, वह गुरु भक्त भी नहीं है। दिखावा या अज्ञान है। पढ़े - शिव जी की आरती पीडीएफ में

जीवन में आजीवन संघर्ष आते हैं। प्राणी, पदार्थ, अवस्था, परिस्थिति आदि की प्रतिकूलताएं झेल कर ही कोई श्रेष्ठ प्रगति पा सकता है। साधना के क्षेत्र में भी इनकी प्रतिकूलताएं आती हैं। इन्हें निर्विकार भाव से सहकर ही साधना में सफलता हो सकती है।

मुख्य संघर्ष तो है अपने गलत स्वभाव, मनोविकार, मन-इन्द्रियों के अध्यासों एवं वासनाओं से। जो इन पर विजयी हो जाता है उसके लिए प्राणी, पदार्थों, अवस्था, परिस्थिति आदि की प्रतिकूलताएं कुछ महत्व ही नहीं रखती। शत्रु तो अपने मनोविकार हैं। इन पर विजय हो जाने के बाद सारी विपत्ती और दुर्भाग्य धीरे-धीरे हमारे लिए उपकारक एवं हितकारी हो जाते हैं।

जब बाह्य सुख और सम्मान की कामना छोड़ दी जाती है और पर-सेवा तथा संतोषवृत्ति से रहा जाने लगता है तब संसार में न कोई अपना वैरी रहता है और न कुछ प्रतिकूलता रहती है।

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