मधग सम्राट चंद्रगुप्त के शासन काल में मगध इतना समृद्ध था कि उसका वर्णन हमें आज भी विदेशी यात्रियों द्वारा लिखी गई पुस्तकों में मिलता हैं। दरअसल, मगध की ये सारी समृद्धी चाणक्य के कारण थी। आचार्य चाणक्य ने
सर्वप्रथम अर्थशास्त्र की रचना की और फिर नीति शास्त्र लिखा, जिसे आज हम
चाणक्य नीति के नाम से भी जानते है।
आचार्य चाणक्य के देशप्रेम तथा महानता को जानने के लिए उनके जीवन की इस कहानी को जानना आवश्यक है - यह कहानी उस वक्त की है, जब यूनान के राजा सिकंदर ने अपने सेनापति सेल्यूकस को चाणक्य से मिलने-जुलने के मगध भेजा था। रात का वक्त था, चाणक्य एक छोटी-सी कुटिया में बैठकर कुछ लिख रहे थे।
रक्षकों ने जब चाणक्य को बताया कि सिकंदर का सेनापति सेल्यूकस उनसे मिलने आया है, तो उन्होंने उसे कुटिया के अंदर बुलाव लिया। सेल्यूकस ने जब कहा कि वह व्यक्तिगत भेंट करने आया हैं तो आचार्य चाणक्य जिस जलते दीपक के सामने बैठकर लिख रहे थे उसे बुझा दिया और वही कुछ दूर रखे एक दूसरे दीपक को जला लिया। सेल्यूकस ने चाणक्य से विस्तार से चर्चा की लेकिन अंत में जाते वक्त उसने चाणक्य से एक दीपक को बूझा कर दूसरे दीपक को जलाने का कारण पूछा।
तब चाणक्य ने उत्तर दिया - जब तुम अंदर आए और मुझसे कहा कि तुम व्यक्तिगत भेंट के लिए आए हो, तब मैंने जिस दीपक को बुझा दिया था उसमें राज्य के पैसों का तेल जल रहा था, लेकिन यह जानकर कि तुम व्यक्तिगत भेंट के लिए आये हो, मैंने राज्य के दीपक को बुझाकर अपने व्यक्तिगत पैसे के तेल से जलने वाले दीपक को जला दिया। इसका कारण यह है कि जब देश की बातें होती हैं तो देश का व्यय होना चाहिए और जब व्यक्तिगत विचार-विमर्श हो रहा हो तो व्यक्तिगत व्यय होना चाहिए, इसे ही आदर्श राजनीति कहते है।
चाणक्य की ये बातें सुनकर ही सेल्यूकस आश्चर्यचकित रह गया। उसने चाणक्य के पैर छूते हुए कहा - "आचार्य आपके पास मेरा आना पूरी तरह सार्थक हुआ। मैं आज जान गया कि राजा चंद्रगुप्त और उनकी वास्तविक शक्ति किसमें निहित है।"
इतिहास में महान चाणक्य का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। आचार्य चाणक्य देश के महान राजनीतिज्ञ थे और उनके चरित्र पर देश को गर्व है।