Msin.in
Powered by Blogger

[PDF] Sampoorna Manas Piyush PDF | सातों भाग

पीयूषा का सातों भाग पीडीएफ में
Title : संपूर्ण मानस पीयूस
Pages : 1000+
File Size : 900+ MB
Category : Hindu Religion
Language : Hindi & Sanskrit
To read : भाग-1 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7

भाग-2 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7, अध्याय 8, अध्याय 9, अध्याय 10,

भाग-3 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7, अध्याय 8, अध्याय 9, अध्याय 10,

भाग-4 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7,

भाग-5 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7,

भाग-6 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7, अध्याय 8, अध्याय 9, अध्याय 10, अध्याय 11,

भाग-7 : अध्याय 1, अध्याय 2, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 6, अध्याय 7, अध्याय 8,

केवल पढ़ने हेतु: हम अज्ञान, अहंकार, प्रलोभन तथा संदेह को त्याग कर मनोवैज्ञानिक, विनम्र, त्यागी एवं निर्भय अंतःकरण के बनें और सबके साथ सुन्दर व्यवहार करके जीवन में शांति स्थापित करें। जिसका व्यवहार सुन्दर है, वही सुखी है।
संशय एवं सन्देह एक ऐसा मानसिक घुन है जो मनुष्य के अन्दर ही पैदा होकर उसे निरन्तर चालता रहता है। यदि पति देर रात बाहर घर में आये तो पत्नी के मन में सन्देह होने लगता है कि यह किसी दूसरी स्त्री के चक्कर में तो नहीं फंस रहा है!

ये पुस्तकें भी पढ़े -
  • सबसे प्राचीन महाकाव्य - महाभारत
  • सनातन वेद - ऋग्वेद
  • चौथा वेद - अथर्ववेद

यदि पत्नी ने किसी अन्य पुरुष से एक बार हंसकर बोल दिया, तो पति के मन में उसके प्रति संदेह हो जता है। भाई-भाई के लिए संदेह करता है कि सामूहिक धन में से चुराकर अपना व्यक्तिगत तो नहीं बना रहा है! पिता पुत्र पर सन्देह करता है, पुत्र पिता पर!

इसी प्रकार पति-पत्नी, भाई-भाई, गुरु-शिष्य, पड़ोसी-पड़ोसी अर्थात जहां तक मनुष्यों का संबंध है, एक दूसरे के प्रति मनुष्य पदे-पदे संदेह-संशय किया करता है और इस दोष से आपस का व्यवहार किरकिरा होता रहता है।

यह ठीक है कि कभी-कभी हमारे मन का संशय सच उतरता है; किन्तु हमारे अधिकतम संदेह मन के भ्रम मात्र होते हैं। आदमी ने अपने मन में संशय एवं रांदेह के बीज बोकर अपने आप को शंकालु बना लिया है। जिनके बीच में हमें रात-दिन रहना है, उनके प्रति शक एवं सुबहा रखकर हमारा व्यवहार सफल नहीं हो सकता। जो मनुष्य जितना ही ऐन्द्रिक एवं मानसिक चरित्र से कमजोर होता है, वह उतना ही सब पर सन्देह करता है। विवेकी पुरूष ही संदेह से मुक्त हो सकता है।

Home » PDF

Popular

  • श्रीमद्भगवद्गीता संपूर्ण अध्याय व्याख्या सहित
  • पंचतंत्र की 27 प्रसिद्ध कहानियाँ
  • तेनालीराम की चतुराई की 27 मजेदार कहानियां
  • संपूर्ण गीता सार - आसान शब्दों में जरूर पढ़े
  • स्वामी विवेकानंद की 5 प्रेरक कहानियाँ
  • श्रेष्ठ 27 बाल कहानियाँ
  • Steve Jobs की सफलता की कहानी
  • महापुरूषों के प्रेरक प्रसंग
  • बिल गेट्स की वो 5 आदतें जिनसे वे विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनें
  • शिव खेड़ा की 5 प्रेरणादायी कहानियाँ
  • विद्यार्थियों के लिए 3 बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ
  • दुनिया के सबसे प्रेरक 'असफलताओं' वाले लोग!

eBooks (PDF)

  • संपूर्ण सुन्दरकाण्ड (गीताप्रेस) (PDF)
  • संपूर्ण चाणक्य नीति (PDF)
  • श्रीमद्भगवद्गीता (गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित) (PDF)
  • शिव ताण्डव स्तोत्र अर्थ सहित (PDF)
  • दुर्लभ शाबर मंत्र संग्रह (PDF)
  • श्री हनुमान बाहुक (PDF)
  • श्री दुर्गा सप्तशती (PDF)
  • श्री हनुमान चालीसा (अर्थ सहित) (PDF)
  • संपूर्ण शिव चालीसा (PDF)
  • एक योगी की आत्मकथा (PDF)
  • स्वामी विवेकानंद की प्रेरक पुस्तकें (PDF)
  • संपूर्ण ऋग्वेद (PDF)
  • संपूर्ण गरुड़ पुराण (PDF)

Important Links

  • हमारे बारे में
  • संपर्क करें

©   Privacy   Disclaimer   Sitemap