Title : अथर्ववेद
Pages : 210
File Size : 52.1 MB
Category : Religion
Language : Hindi
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केवल पढ़ने के लिए: हर मनुष्य सदाकाल से अपनी स्वतंत्रता का इच्छुक रहा है। सबको आजादी पसन्द है।
ऐसा होने पर भी पहले जमाने में लोग आज्ञाकारी तथा अनुशासनप्रिय ज्यादा थे। वे परिवार के स्वमी की बात सिर पर रखते थे और हर परिवार का अनुशासन के आधार पर संगठन दृढ़ था।
आज का परिवेश एकदम बदल गया है। पूरी दुनिया में स्वतंत्रता की लहर दौड़ पड़ी है। आज पत्नी भी पति से आजाद रहना चाहती है और इसके लिए नारियों की ओर से आंदोलन भी होते हैं। पुत्र जवान होकर शादी करते ही माता-पिता से अलग हो जाना चाहते हैं। यह सब अच्छा है कि बुरा, यह एक अलग विषय है। समय के प्रवाह को कोई बुरा कहकर रोक नहीं सकता। समझदार मनुष्य का कर्तव्य है कि वह समय की परख करे और उसके अनुसार अपना व्यवहार बनावे।
आज पत्नी को केवल दासी बनाकर नहीं रखा जा सकता और न पुत्र तथा शिष्य पर केवल डांट-गांस के बल पर अधिकार रखा जा सकता है। ऐसा भूतकाल में भी नहीं रखना चाहिए था, परन्तु यह कहकर हम भूतकाल को कचोट नहीं सकते और न उसकी आवश्यकता है। वह बीत चुका है, और भूतकाल की स्थिति कई दशा में सन्तोषजनक भी थी।
परिवार या समाज के चाहे छोटे सदस्य हों व बड़े, परिवार तथा समाज पर सबका समान अधिकार है। हर आदमी अपने घर का राजा होता है। अपने घर तथा समाज में सब सम्मानपूर्वक जीना चाहते हैं। आदमी अपने घर और समाज के बाहर जाकर अपमान सह लेता है, परन्तु अपने घर एवं समाज में अपमान नहीं सह पाता। यह उसकी स्वभाव-त्रुटि है, परन्तु क्या कीजियेगा! मनुष्य की ऐसी मानसिकता ही है।
अतएव आपके परिवार एवं समाज में पूर्ण जनतन्त्र की बड़ी आवश्यकता है। परिवार एवं समाज के हर सदस्य के साथ ऐसा समता एवं आदर पूर्वक व्यवहार होना चाहिए, जिससे वे बड़े हों या छोटे, यह समझें कि मैं परिवार एवं समाज की एक महत्वपूर्ण कड़ी हूं। यह ठीक है कि योग्यता से अधिक सम्मान पाकर आदमी गिरता है, परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि घृणा, तिरस्कार और अनादर पाकर आदमी जलता है, विरोधी बन जाता है और परिवार एवं समाज में विस्फोटक वातावरण तैयार करता है।
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अपने परिवार तथा समाज वालों को कोंच-कोंच कर, उन्हें हर समय भला-बुरा कह-कह कर सुधारा नहीं जा सकता। जो स्वामी कटु शब्द, गुस्सा और हर समय डांट-गांस को अपना तेज समझते हैं, वे भूल में हैं। जो स्वामी अपने स्वजनों को सौ-बार प्यार और आदर देकर एकबार आवश्यकता पड़ने पर फटकार भी देता है, उसके फटकार को उसके स्वजन ही मानते हैं। और जो स्वामी प्यार तथा आदर कभी नहीं देना जानता और कभी अपने साथियों से मीठा नहीं बोलता, सदैव केवल गुस्सा और फटकार की ध्वनि में ही बात करता है, वह अपने परिवार तथा समाज में शांति का वातावरण नहीं बना सकता।
स्वजनों से कोमलता का व्यवहार किया जाये। प्रायः हर काम में सबसे राय ली जाये। निर्वाहिक वस्तुएं, भोजन, वस्त्र एवं कोमल वचनों द्वारा सबका सत्कार किया जाये। इस प्रकार परिवार एवं समाज में पूर्ण प्रजातन्त्र एवं जनतन्त्र की महान आवश्यकता है।