Title : महा इन्द्रजाल
Pages : 186
File Size : 4.7 MB
Category : Religious
Language : Hindi
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Only for reading:किसी साथी की थोड़ी अवज्ञा देखकर हमें उसको अनदेखा कर देना चाहिए। हमें उसको अपने मन पर लाना ही नहीं चाहिए।
यदि अगले आदमी की अवज्ञा बढ़ती जा रही है तो उसे अकेले में बैठाकर सहिर्दयता पूर्वक उसके मन की बात जानने की चेष्टा करनी चाहिए। मिल-बैठकर बात करने से बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान हो जाता है। आप देखते है कि एक दूसरे के शत्रु बने राष्ट्र - नायक इक्क्ठे बैठकर समझौता कर लेते है।
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जिस परिवार तथा समाज में नित्य एक साथ रहना है, वहां यदि एक दूसरे को लोग नहीं समझते है और परस्पर मिल बैठकर एक दूसरे के प्रति अपना मन साफ नहीं रखते हैं तो उनका व्यवहार मधुर नहीं सकता न उनकी प्रगति होगी न उनके जीवन में शांति होगी
संसार में सबसे बड़ा कठिन काम है दूसरों को समझाना यह ठीक हैं कि कुछ लोग ठग होते हैं, परन्तु ज्यादातर तो हम संदेह के रोग से पीड़ित होकर अपने साथियों को अपना शत्रु मान लेते हैं। हम अपने साथियों कि थोड़ी थोड़ी गलती पर उन पर संदेह करने लगते हैं। भला गलती किससे नहीं होती तो क्या साथियों कि थोड़ी थोड़ी गलती करने पर हम उन्हें अपना विरोधी मान ले, क्या इस व्यवहार से परिवार, समाज, एवं राष्ट्र सुदृढ़ हो सकते हैं।
याद रखों, जिन मनष्यों को लेकर तुम परिवार, समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हो, वे सब किसी न किसी प्रकार कमजोर हैं। समय समय पर वे ज्यादा कमजोर हो सकते हैं। आपका काम हैं कि उनके दोषो को क्षमा करते हुए और उन्हें सुधारते हुए साथ लेकर चलते रहना। जो सदस्य अवज्ञा करने पर ही कमर कस लेता हैं उसे त्यागा जाना ही समाज एवं परिवार के लिए मंगलकर हैं। एक सड़ी मछली पुरे तालाब को गन्दा करती हैं, इसलिए उसे तालाब से निकालकर बहार फेंक देना ही श्रेयकर है।