Title : सत्य के साथ मेरे प्रयोग
Pages : 539
File Size : 3.15 MB
Category : Autobiography
Author : Mohandas Karamchand Gandhi
Language : Hindi
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केवल पढ़ने हेतु: साधु-समाज में पाठ-कथा-सत्संग की तो धूमधाम होनी ही चाहिए। गृहस्थ परिवार में भी कम-से-कम शाम को भोजन के पहले या भोजन के बाद अपने मान्य धर्मग्रंथ का कुछ समय पाठ,
उसके बाद सद्ग्रन्थों द्वारा या स्वतंत्र रूप में कथा-प्रवचन होना चाहिए। हर कबीरपंथी घर में नित्य शाम को बीजक-पाठ तथा ग्रन्थवाचन होना चाहिए। इसी प्रकार अन्य मतवालों को अपने-अपने धर्मग्रन्थों का पाठ और कथा करना चाहिए।
शाम को एक बार पाठ-सत्संग कर लेने पर घर के सभी सदस्यों के चित कुछ-न-कुछ सुलझ जाते हैं, आपस में भाईचारे का भाव जगता है, धर्म का ज्ञान होता है और शांति मिलती है।
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इस प्रकार परिवार एवं समाज में विवेकपूर्वक चल कर हर व्यक्ति को सच्चे सुख का भागी होना चाहिए।
व्यवहार क्यों बिगड़ता है?
किसी भी संगठन के विनाश का कारण होता है उसमें रहने वाले लोगों के अपने माने हुए स्वार्थों एवं अहंकारों का टकराना। यह बात परिवार, समाज, राष्ट्र एवं अन्ताराष्ट्र - सभी जन समुदाय के संगठन एवं शासन पर लागू होती है। भौतिक क्षेत्र का शुद्ध स्वार्थ है देहनिर्वाह। वह सबका होता है। उसके रूक जाने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। शेष सारे स्वार्थ हमारे माने हुए होते हैं और जब हम उनमें किसी द्वारा बाधा देखते हैं, तब उलझ जाते हैं। दूसरा अपना काल्पनिक अहंकार होता है। 'मेरी बात क्यों नहीं मानी गयी! हर कार्य में मेरी बात चलनी चाहिए।'
चाहे उचित हो या अनुचित, हर विषय में अपनी बात मनवाने का हठ और लोगों द्वारा न मानने पर विग्रह। ये सब किसी भह संगठन के विनाश के कारण हैं।
किसी भी संगठन का पूर्ण पतन तब होता है जब उसके अधिकतम सदस्यों में अहंकार और स्वार्थ प्रबल हो जाते हैं। यही नियम व्यक्ति के पतन पर भी लागू होता है।
कितनी ही सुव्यवस्थित और सुसंगठित समाज हो, किन्तु उसमें भी समय-समय से ऐसे व्यक्ति भरती हो सकते हैं जो आगे चलकर अपने काल्पनिक स्वार्थ और अहंकार के अधीन होकर उन्मादी बात-व्यवहार शुरू कर दें। किसी भी व्यक्ति का बात-व्यवहार तभी बिगड़ता है, जब कुछ दिनों पूर्व से अहंकार एवं स्वार्थवश उसके भीतर विकार बनना शुरू हो गया रहता है। यह उसके मन के अज्ञान का फल होता है। यदि समाज की अच्छी सीख और अनुशासन से उसका सुधार हो गया तो कुशल है; अन्यथा उसका पतन रखा-रखाया है। जिसके मन में विकार आता है, वह समाज के नियमों तथा समाज के लोगों के प्रति दबे-खुले रूप में आलोचक बन जाता है। वह धीरे-धीरे अपने आपको समाज से अलग करने लगता है। यदि उसने बड़ों तथा मित्रों की बातों पर ध्यान नहीं दिया तो समाज से अलग हो जाता है।
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समाज का काम है कि वह यह ध्यान रखे कि यदि समाज के किसी व्यक्ति में उन्माद आता है, तो उसे सत्सम्मति एवं अनुशासन से शीघ्र सुधार कर सही रास्ते पर लावे। उसे सुधारने का भरसक प्रयत्न किया जाय। यदि वह रास्ते पर न आवे तो समाज के हित के लिए ऐसे उन्मादी व्यक्ति से छुटकारा ले। एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा करती है तथा एक सड़ा पान का पत्ता बहुत पत्तों को सड़ाता है। अंग के सड़े अंश को काटकर निकाल देने से ही पूरे शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। किसी भी समाज एवं संगठन के कल्याण के लिए उसे कुसंग रहित शुद्ध रखना अत्यन्तावश्यक है। सारी बुराइयों की जड़ अज्ञान, अहंकार, प्रलोभन और संदेह है। इन पर हम थोड़ा-थोड़ा विचार करें।