कौवों का राजा मेघवर्ण एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर सैंकड़ों कौवों के साथ रहता था। उलूकराज अपने पूरे वंश दल के साथ पास की पहाड़ी की गुफा में रहते थे। पुराने वैर के कारण अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक कौवे को वे मार दिया करते थे।
स्थिरजीवी मेघवर्ण का सबसे पुराना मंत्री था। उल्लुओं को अपने मार्ग से हटाने के लिए उसने एक युक्ति बनाई। उसने मेघवर्ण से कहा, "तुम मुझसे लड़कर, मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार पर्वत पर चले जाओ। मैं उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर अवसर पाकर सबका नाश कर दूंगा।"
मेघवर्ण ने ऐसा ही किया। स्थिरजीवी को अपनी चोंचों के प्रहार से घायल कर वहीं फेंक दिया और स्वयं सभी कौवों के साथ पर्वत पर चला गया। यह समाचार तुरंत उलूकराज के सामने लाया गया। वह रोते तथा कांपते हुए बोला, "राजन्! मैं मेघवर्ण का मुख्यमंत्री स्थिरजीवी हूं। मैंने आपकी थोड़ी तारीफ क्या कर दी मुझे पीटकर राज्य से निष्कासित कर दिया। अब मैं आपको मेघपूर्ण के सारे राज बताऊंगा जिससे आप सारे कौवों का नाश कर पाएं।" उल्लूकराज का मंत्री रक्ताक्ष बीच में बात काटकर तुरंत बोला, "स्वामी! इसपर विश्वास मत कीजिए। यह हमारा शत्रु है इसे मारने में ही भलाई है।" शेष मंत्री इस बात से सहमत न हुए। एक बुजुर्ग उल्लू ने सलाह दी, "मुझे लगता है यह कौआ बड़े काम का साबित होगा।"
इन तर्कों से सहमत होकर उलूकराज ने स्थिरजीवी को नहीं मारा।
थोड़ा ठीक होने पर स्थिरजीवी ने उलूकराज से कहा, "महाराज, मैं आत्मदाह करके उल्लू का जन्म लेना चाहता हूं जिससे मेघवर्ण से बदला ले सकूं। आप मुझे लकड़ियां इक्ट्ठी करने की अनुमति दीजिए।"
रक्ताक्ष स्थिरजीवी की सच्चाई जानता था। उसने विरोध किया पर किसी ने उसकी बात न सुनी। वह अपने कुछ उल्लू साथियों के साथ वहां से दूसरी जगह चला गया।
गुफा के मुंह पर स्थिरजीवी ने ढेर सारी लकड़ियां इक्ट्ठी करीं और फिर मेघवर्ण के पास जाकर बोला, "मशाल लेकर दिन में आना। गुफा के द्वार पर इकट्ठी लकड़ियों पर डाल देना।"
स्थिरजीवी ने जैसा कहा था कौवों ने वैसा ही किया। गुफा के दरवाजे पर लकड़ियां जल उठीं और सभी उल्लू भीतर ही फंस कर भस्म हो गए। मेघवर्ण अपने अनुयायियों के साथ वापस बरगद के पेड़ पर आ गया और सूखपूर्वक रहने लगा।
शिक्षा (Panchatantra Story's Moral): शत्रु की शक्ति को समझकर ही युद्ध करना चाहिए।
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