एक वन में चतुर्दन्त नाम का हाथी था। वह अपने दल का मुखिया था। बरसों तक सूखा पड़ने के कारण वहां के सारे झील, ताल-तलैया सूख गए। सभी हाथी मिलकर चतुर्दन्त के पास आकर बोले, "अब हम सब मरने के कगार पर हैं। हमें पानी से भरा कोई तालाब ढूंढना चाहिए।"
चतुर्दन्त ने कहा, "मुझे एक तालाब का पता है जहाँ सदा पानी रहता है। चलो, वहीं चलें।" पांच दिन की लंबी यात्रा के बाद हाथी दल वहां पहुंचा। तालाब के चारों ओर खरगोशों के अनगिनत बिल थे। बिलों से जमीन पोली हो गई थी। हाथियों के पैरों से सब बिल टूट गए। बहुत से खरगोश कुचल गए। किसी की गरदन टूटी तो किसी का पैर और बहुत से मर भी गए।
हाथियों के वापस जाने के बाद खरगोशों ने मिलकर बैठक की। बहुत विचार के बाद उन्होंने विजयदत्त नामक खरगोश को अपना दूत बनाकर चतुर्दन्त के पास भेजा। उसने कहा, "महाराज, चन्द्रमा ने मुझे आपके पास भेजा है। कल आपने खरगोशों के बिलों का नाश कर दिया था। वे खरगोशों के रक्षक हैं और उनकी विनती सुनकर आए हैं। आप तालाब में न आया करें।"
चतुर्दन्त ने कहा, "ऐसा है, तो मुझे उनके दर्शन करा दो। मैं भी उन्हें प्रणाम करना चाहता हूं।"
चतुर्दन्त को विजयदत्त तालाब के किनारे ले आया और तालाब में पड़ रही चांद की छाया दिखलाई। चतुर्दन्त ने चांद को प्रणाम किया और अपने साथियों के साथ वहां से चला गया। खरगोश आराम से रहने लगे।
शिक्षा (Panchatantra Moral): सदा बुद्धीमान को ही नेता चुनना चाहिए।
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