मित्रशर्मा नाम का एक ब्राह्मण था। वह भिक्षा पर जीवन निर्वाह करता था। एक दिन एक धनी व्यापारी ने मोटा-तगड़ा बकरा उसे दान में दिया। बकरे को कंधे पर रखकर ब्राह्मण घर आ रहा था।
रास्ते में उसे तीन ठग मिले। बकरे को देखकर, उसे पाने के लिए उन लोगों ने एक चाल चली। एक ठग ने मित्रशर्मा के पास जाकर कहा, "श्रीमान्! आप यह कुत्ता कंधे पर उठाकर कहां जा रहे हैं? ब्राह्मण तो कुत्ते को छूते भी नहीं हैं।"
मित्रशर्मा ने चिढ़कर कहा, "क्या तुम अंधे हो? बकरे को कुत्ता कहते हो।"
"ध्यान से जाइयेगा", कहकर ठग चला गया। थोड़ी ही दूर जाने के बाद दूसरे ठग ने आकर कहा, "ओह, श्रीमान्! मरा हुआ बछड़ा कंधे पर क्यों ले जा रहे हैं?"
मित्रशर्मा के नाराज होने पर ठग ने कहा, "कृपया, नाराज मत होइये। जो आपको अच्छा लगे वही कीजिए।"
मित्रशर्मा के थोड़े और आगे जाने पर तीसरे ठग ने सामने आकर कहा, "कितना पतित कार्य आप कर रहे हैं। आपने एक गधे को कंधे पर उठाया हुआ है। कोई देखेगा तो क्या कहेगा।"
अब मित्रशर्मा को लगा कि हो न हो यह कोई दुरात्मा है जो सभी को अलग-अलग रूप में दिखाई दे रहा है। डर के मारे मित्रशर्मा ने बकरे को वहीं छोड़ा और अपने घर की ओर जान बचाकर भागा। तीनों ठगों ने तुरंत बकरे को पकड़ लिया और छककर उसका भोजन किया।
शिक्षा (Panchatantra Story's Moral): बुद्धी से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
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