रश्मिरथी हिंदी का एक उत्कृष्ट खंड काव्य है जिसे 1952 में हिंदी के विख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचा गया था। यह काव्य कर्ण, जो कि अविवाहित माता कुन्ती (पाण्डु की पत्नी) के पुत्र थे, के जीवन को केंद्रित कर रचा गया है। 'कुरूक्षेत्र' के बाद दिनकर जी की यह सबसे सराहनीय रचना थी, तथा आधुनिक हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट कृति।
कुछ महीने पहले ही इसका अंग्रेजी अनुवाद मॉरीशस के एक कल्चरल एक्टिविस्ट -
लीला गुजाधुर शारूप द्वारा किया गया, जिसकी तारीफ भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक संदेश लिखकर किया था। रामधारी सिंह 'दिनकर' की इस महान काव्य रचना को एक बार जरूर डाउनलोड कर पढ़े -
DOWNLOAD
कविता के बारे में
कर्ण कुन्ती के पहले पुत्र थे, परन्तु उन्होंने कर्ण को जन्म देते ही त्याग दिया था, क्योंकि कर्ण का जन्म कुन्ती के विवाह पूर्व ही हो गया था। यद्यपी कर्ण एक दीन-हीन परिवार में बड़े हुए लेकिन फिर भी वह सबसे वीर योद्धा बने।
महाभारत के युद्ध में कर्ण दुर्योधन की ओर से लड़ने के लिए बाध्य थे, क्योंकि दुर्योधन ने ही उनकी शक्तियों और योग्यताओं को पहचान कर उन्हें राजा बनाया था तथा एक घनिष्ट मित्र के रूप में अपनाया था। कर्ण का कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लेना, पाण्डवों के लिए चिंता का प्रश्न था, क्योंकि कर्ण को युद्ध में अजेय माना जाता था। दिनकर जी ने जिस तरह मानवीय भावनाओं को कर्ण की कहानी में प्रदर्शित किया हैं, वह अतुलनीय है। काव्य का लय और छंद सर्वोत्तम है। इसे लिखने में जिन शब्दों का चयन किया गया हैं तथा भाषा की जो शुद्धता है वह प्राणपोषक (exhilarating) है।
डाउनलोड करें:
Best Premchnd Novel 'Godan' (PDF)
महाभारत युद्ध की पूर्वसंध्या पर माता कुन्ती कर्ण के पास जाती है, तथा आग्रह करती है कि वे दुर्योधन का साथ छोड़
इस धर्मयुद्ध को पहले ही समाप्त कर दे या युद्ध करना भी है तो पाण्डवों की तरफ से करें। क्योंकि यही उचित होगा। इस पर कर्ण जो कहते है, उसका वर्णन भी दिनकर ने इस काव्य-खंड में किया है। कर्ण कहते है-
"निसंदेह मैं जानता हूं कि कौरव पक्ष हारेगा, परन्तु मैं फिर भी दुर्योधन का ही पक्ष लूंगा। यह युद्ध निरर्थक है, फिर भी मेरी नियति यही है। अंतः मुझे वही प्राप्त होगा।"
फिल्म में रूपांतरण
वर्ष 2009 में आई अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित फिल्म -
'गुलाल' में भी इसके एक भाग (कृष्ण की चेतावनी) का प्रतिपादन पीयूष मिश्रा द्वारा किया गया था।
इस काव्य का एक संगीत नाटक भी बनाया गया है। जिसका निर्देशन डॉ. शंकुतला शुक्ला और व्योमकेश शुक्ला ने किया है। इसमें पूरी रचना को कर्ण की माता कुन्ती के दृष्टिकोण से दिखाने का प्रयास किया गया है। अब तक 47 बार इस नाटक का मंचन हो चुका हैं।