Title : गोदान
Author : मुंशी प्रेमचंद
Page : 516
File size : 124 MB
Language : Hindi
Category : Novel
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गोदान: एक कालजयी उपन्यास
वर्ष 1936 में प्रकाशित उपन्यास 'गोदान' मुंशी प्रेमचंद का आखिरी उपन्यास माना जाता है। यह एक बेहतरीन उपन्यास है जिसमें प्रेमचंद की रचना-कला अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर है।
जब देश अंग्रेजों का गुलाम था तब देश के किसान तथा गरीब जमींदारों द्वारा किस प्रकार शोषित किये जाते थे, इसका उन्होंने गोदान में मार्मिक वर्णन किया है। उन्होंने हमारे देश के समाज की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले किसान के अंधकारमय जीवन और बेबसी का एक सजीव चित्रण किया है तथा साथ-साथ उनके देश-प्रेम को भी अच्छी तरह दर्शाया है।
प्रेमचंद कर्ज के नीचे दबे, धीरे-धीरे मरते और दोबारा आगे बढ़ते भारत के किसानों की मन की दशा को बखूबी दर्शाया है। जमींदारों और साहूकारों द्वारा कमजोर किसान का शोषण, उनके अत्याचारों से पीड़ित किसान आत्महत्या तक के लिए मजबूर हो जाता है। गोदान में इन बातों का इतना सजीव वर्णन किया गया है कि लगता है ये वर्तमान में हमारे देश में घटित हो रहा है, वास्तव में इस उपन्यास की कहानी सामयिक है।
मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित लगभग सभी उपन्यासों में एक ओर तो किसानों के जीवन का विस्तृत वर्णन मिलता है, वहीं दूसरी ओर पतन की ओर अग्रसर और उभरती हुई सामाजिक शक्तियों की विशेष पहचान दिखाई देती हैं।
ग्रामीण जीवन के साथ नगरीय जीवन को भी प्रेमचंद ने बहुत ही जीवंतता के साथ चित्रित किया है। उनकी सभी रचनाओं में 'गोदान' सबसे श्रेष्ठ रचना है।
वास्तव में गोदान को 'ग्राम्य जीवन का उपन्यास' कहा जाये तो इसमें कोई दोस नहीं होगा।
गोदान उपन्यास में हरेक आदमी की जिंदगी में रोज आने वाली कठिनाईयों और उनसे लड़ने की जीवंतता का प्रेमचंद ने बेहतरीन वर्णन किया है उससे इस उपन्यास को पढ़ने वाला व्यक्ति खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है और यही एक अच्छे रचनाकार की पहचान भी है।
उपन्यास में बहुत सारे किसान पात्रों के स्थान पर प्रेमचंद ने 'होरी' तथा 'धनिया' पर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया है। 'होरी' के किरदार में उन सभी किसानों की विशेषताएं हैं जो जमींदारों और साहूकारों से पीड़ित और शोषित हैं। उपन्यास की कहानी में किसानों पर किया जाने वाला अत्याचार बहुत धूर्तता पूर्ण है, जिसमें सामंतवादियों और पूंजीवादियों के मध्य एक समझौता है। इस धूर्तता से भरे समझौते को होरी जैसे गरीब और भोले किसान समझने में अयोग्य हैं। गोदान में जमींदारी प्रथा अच्छाई का नकाब पहने हुए है। पूरे उपन्यास को अनेक बार पढ़ने के पश्चात भी इसकी नवीनता समाप्त नहीं होती। ये बातें ही इस उपन्यास को सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं।