Selected moral stories for class 6 with great moral.
#1 Class 6 Stories : खुद को बनाएं योग्य
अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक जार्ज बर्नार्ड शॉ का आरंभिक जीवन बेहद संघर्षपूर्ण था। लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी, और धीरे-धीरे सफलता की बुलंदियां छूते गए। एक दिन उन्हें एक कॉलेज के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। बर्नार्ड शॉ ने सहजता से आमंत्रण स्वीकार कर लिया और कार्यक्रम के दिन कॉलेज के विघार्थियों के उत्साह का कोई ठिकाना न रहा।
सभी उनकी एक झलक पाने को लालायित हो उठे। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो उनके ऑटोग्राफ लेने वालों की एक अच्छी-खासी भीड़ वहां जमा थी। एक नौजवान ने अपनी ऑटोग्राफ बुक उन्हें देते हुए कहा, 'सर, मुझे साहित्य से बहुत लगाव है और मैंने आपकी कई पुस्तकें पढ़ी हैं। मैं अब तक अपनी कोई अपनी पहचान नहीं बना पाया हूं, लेकिन अवश्य चाहता हूं। इसके लिए आप कोई संदेश देकर अपने हस्ताक्षर कर दें, तो बहुत मेहरबानी होगी।'
बर्नार्ड शॉ नौजवान की इस बात पर धीमे से मुस्कराए। फिर उसके हाथ से ऑटोग्राफ बुक लेकर एक संदेश लिखा और आपने हस्ताक्षर भी कर दिए। नौजवान ने ऑटोग्राफ बुक खोलकर देखी तो संदेश पर उसकी नजर गई। लिखा था,
'अपना समय दूसरों के ऑटोग्राफ इकट्ठा करने में नष्ट न करें, बल्कि खुद को इस योग्य बनाएं कि दूसरे लोग आपके ऑटोग्राफ प्राप्त करने के लिए लालायित रहें।' यह संदेश पढ़कर नौजवान ने उनका अभिवादन किया और बोला, 'सर, मैं आपके इस संदेश को जीवनभर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बनाकर दिखाऊंगा।' बर्नार्ड शॉ ने नवयुवक की पीठ थपथपाई और आगे चल पड़े।
सीख: खूब मेहनत कर अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए।
#2 Class 6 Stories : अहंकार का विसर्जन
एक शिष्य ने ज्ञान प्राप्ति के बाद गुरूदक्षिणा देनी चाही। गुरू ने कहा - 'गुरूदक्षिणा में मुझे ऐसी वस्तु चाहिए जो बिल्कुल व्यर्थ हो।'
शिष्य चीज की खोज में निकल पड़ा। मिट्टी को व्यर्थ समझकर उसने मिट्टी की तरफ हाथ बढ़ाया, तो उसका अंतर्मन बोला - 'अरे मूर्ख, तुम इसे व्यर्थ समझ रहे हो? धरती का सारा वैभव इसी के गर्भ से प्रकट होता है।'
वह चलता गया। घूमते-फिरते उसे गंदगी का ढेर दिखा। उसे देखते ही शिष्य के मन में घृणा उभरी। सोचा, इससे बेकार चीज और क्या होगी? उसका अंतर्मन फिर बोला - 'इससे बढ़िया खाद कहाँ मिलेगी? फसलें इसी से पोषण ग्रहण करती हैं।'
शिष्य गहरी सोच में डूब गया, तो भला व्यर्थ क्या हो सकता है? तभी ज्ञान का प्रकाश हुआ कि सृष्टि का हर पदार्थ उपयोगी है। व्यर्थ और तुच्छ तो वह है जो दूसरों को व्यर्थ और तुच्छ समझता है। अहंकार के सिवा व्यर्थ और क्या हो सकता है?
शिष्य गुरू के पास लौटा। गिड़गिड़ाया - 'गुरूदेव, दर-दर खोजने के बावजूद मुझे धरती पर अहंकार के अलावा व्यर्थ और कुछ नहीं मिला। इसीलिए मैं दक्षिणा में अहंकार देने आया हूं।'
यह सुनकर गुरू प्रसन्न हुए। बोले - 'सही समझे, वत्स, अहंकार के विसर्जन से ही विद्या सार्थक और फलदायक होती है।'
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