'निबंध' शब्द 'नि' उपसर्ग के साथ बंध (बांधना) धातु से बना है। विचारों या भावों को सुसंबद्ध रूप में बाँध कर जिस विधा में प्रकट किया जाए वह निबंध है। यह अंग्रेजी के शब्द 'ESSAY' का पर्याय है।
यह लेखन का ऐसा क्षेत्र है, जिसमें लिखने वाला किसी विषय या मुद्दे पर अपना विचार संक्षेप में लोगों के सामने ऐसे रखता है कि वे पाठक के मन पर प्रभाव छोड़ सके। लेखक की विशिष्टता, चिंतन या संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति निबंध में आवश्यक है। विचारों और वर्णन की दृष्टि से निबंध अपने आप में पूर्ण होना चाहिए।
निबंध कला (ART OF ESSAY)
साहित्य की अनेक विधाओं में से एक
निबंध लेखन (essay writing in hindi) भी है। यह साहित्यिक विधा अन्य विधाओं की तुलना में कठिन है। ऐसा संस्कृत विद्वानों का मत है कि गद्य कवियों की लेखन-कला की कसौटी है। इसी प्रकार निबंध गद्य लेखन की कसौटी है। निबंध का शब्दिक अर्थ है निबद्धता अर्थात् बंधन।
इसमें सीमित आकार के आधार पर निबंधकार अपने भावों, विचारों, कल्पनाओं तथा चिन्तन तत्व को कार्यान्वित करता है। इसमें प्रसन्नतापूर्वक होनेवाला पारस्परिक सम्भाषण के स्थान पर उपयुक्त शब्दचित्रों के माध्यम से पाठकों के समक्ष जीवन दर्शन, जीवन की अनुभूती, ज्ञान का संचित कोष तथा भावाभिव्यक्ति को सम्प्रेषित किया जाता है। निबंध सामान्य तथा गंभीर से गंभीर विचारों और भावों का सशक्त संवाहक है।
निबंध में आत्मपरकता तथा वस्तुपरकता दोनों का स्थान है। व्यक्तिगत अनुभूतियों की अभिव्यक्ति लेखक के भावों के द्वारा होता है और इसकी सफलता का भाव है पाठकों को अपनी भावानुभूतियों में डुबो देना। पाठक का लेखक या निबंधकार की निजी अनुभूतियों को अपना समझकर उनके साथ जुड़ जाना तथा उसमें डुबकी लगाना निबंध की सफलता की पराकाष्ठा है। व्यक्तिगत अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मन के भावों के द्वारा होता है। अपने भावों तथा भावनाओं को दूसरों के हृदय में शब्दचित्र के माध्यम से उतार देना ही निबंधकार की श्रेष्ठ उपलब्धि है।
आत्मपरकाता के माध्यम से निबंधकार अपने को सहज और स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार के आत्मप्रकाशन से वह अपने 'मैं' या 'स्व' को उजागर करता है। दूसरी तरफ, वह वस्तुपरक होकर विषय के साथ निःसंग होकर, तथ्यों की मर्यादा के आधार पर उसका निर्वाह करता है। अपना मत दूसरों को समझाने की प्रक्रिया में वह साधारण से साधारण और कठिन से कठिन विषय चुन सकता है। इस प्रकार वह आत्मपरक और वस्तुपरक विशिष्टता के माध्यम से भावनात्मक और विचारात्मक या विश्लेषणात्मक निबंधों को प्रस्तुत करता है।
निबंध रचना में छुटपुट विचारों, व्यक्तिगत अनुभूयियों, आत्मप्रकाशों, राजनैतिक तथ्य निरूपण, नैतिकता से परिपूर्ण प्रस्तुतीकरणों और अनेक प्रकार की विषय-वस्तुओं को स्थान मिलता है। उसमें विषय विभिन्न है। वह मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श करने की ही नहीं अपितु उसे अलंकृत और परिष्कृत करने की क्षमता रखता है। उसकी विविध विषयों को स्पर्शित करने की शक्ति असीमित है। इसमें विषय प्रतिपादन की क्षमता तथा सजीवता है। इसमें भावों एवं विचारों के बिखराव को कोई स्थान नहीं है। कसाव अर्थात निबद्धता की कौशल है। जीवनोपयोगी सामग्री से मंडित होने के कारण इसकी नीरसता भी आकर्षक है।
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निबंध लेखन प्रतियोगिता तथा परीक्षाओं में सामान्यतः
समस्यामूलक या तर्कप्रधान विषयों पर निबंध लिखने को कहा जाता है। इसके पीछे उद्देश्य यही होता है कि परीक्षार्थी का प्रस्तुतीकरण, विषय का प्रतिपादन तथा तर्कशीलता का स्तर कैसा है। अतः विषय के प्रस्तुतिकरण तथा शैली के संबंध में उसे ज्ञान प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
विषयवस्तु के प्रतिपादन और उसकी प्रभावान्विति के लिए आवश्यक निबंध की पाँच स्थितियाँ हैं। वे हैं-
- प्रारम्भ
- उत्कर्ष
- चरम सीमा
- अपकर्ष
- उपसंहार
इन पाँचों स्थितियों से युक्त निबंध संरचनात्मक दृष्टि से उत्तम माना जाता है।
प्रारंभ (Opening of the Essay)
अच्छे ढंग से कि गई शुरूआत आधी सफलता निश्चित कर देती है। प्रारंभ आकर्षक और ध्यान केन्द्रित करने वाला हो। विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण में निबंधकार से यह अपेक्षित है कि वह प्रारंभ में ही संक्षेप में विषयवस्तु की उपयोगिता और गांभीर्य का परिचय दे दे और वह प्रारम्भ संक्षिप्त हो। प्रारंभ का लम्बा होना, मूल विषय को समझने और जानने की तीव्रता के घनेपन को कम कर देता है।
निबंध का प्रारंभ कई प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है। किसी उद्धरण, प्रासंगिक किन्तु संक्षिप्त कथा, वार्ता, प्रारंभ में ही विषय को निष्कर्ष देने की शैली तथा चरमोत्कर्ष उत्पन्न करने वाले अनुच्छेद- इनमें से कोई भी प्रकार अपनाया जा सकता है। इन सभी प्रकारों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं, किन्तु निबंधकार अपनी शैली के अनुरूप निबंध के प्रारंभ को आकर्षक बनाने का प्रयत्न करता है। निबंधकार को यह ज्ञात होना चाहिए कि निबंध का प्रारंभ अर्थात प्रस्तावना उसे तुरन्त सफलता प्रदान कर देती है, यदि वह विषय गांभीर्य को सरल एवं आकर्षक शैली में प्रस्तुत करता है तो विषय के मूल बिन्दु पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पाठक को विविश कर देता है। सर्वमान्य परिभाषा 'प्रारंभ' की दृष्टि से प्रस्तुत करना कठिन है, किन्तु विषय के अनुरूप आकर्षण एवं सौन्दर्य की सृष्टि की जा सकती है।
उत्कर्ष (Climax of the Essay)
प्रारंभ के पश्चात उत्कर्ष स्वाभाविक ही है। प्रस्तावना के पश्चात् मुख्य विषय पर आना ही पड़ता है। प्रश्न उठता है कि विषय को कैसे उभारें, विकसित करें और सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को प्रस्तुत करें। निबंध में विषयवस्तु का उत्कर्ष तब होता है जब उसको तर्कों से, तथ्यों से एवं विश्लेषण के द्वारा स्पष्ट किया जाए और उसके पक्ष को उजागर किया जाए, पर यह सब दूसरे विद्वानों के उद्धरणों से नहीं, अपितु अपने मौलिक चिन्तन एवं अध्ययन के आधार पर ही निबंधकार का व्यक्तित्व विषय के विवेचन एवं प्रस्तुतीकरण के द्वारा ही प्रकट होता है। उत्सकर्ष से विषय को नए आयाम मिलते हैं।
चरमोत्कर्ष (Apogee of the Essay)
निबंध का यही भाग उसकी जान है और यह भाग सबसे बड़ा होना चाहिए, अतएव कम से कम तीन चौथाई भाग। विषयवस्तु का मुख्य मुद्दा यहाँ ही स्पष्ट होता है। यहीं पर निबंधकार अपने पाठकों के समक्ष अनेक तर्कों को प्रस्तुत करता है, उन्हें विश्वास दिलाने प्रयत्न करता है और यही वह अपने विचारों के प्रतिपादन को सही रूप देने के लिए दूसरे विद्वानों को भी उद्धृत करता है। परिणामतः लेखक को अपने अध्ययन एवं अनुशीलन के माध्यम से प्राप्त तथ्यों को अधिक वेग एवं शक्ति से प्रस्तुत करना चाहिए। चरमोत्कर्ष की अवस्था का प्रस्तुतीकरण ठीक होने से निबंध में नव्य सौंदर्य के दर्शन हो जाते हैं। सावधानी से प्रस्तुत किया जाने वाला चरमोत्कर्ष न केवल लेखक का दृष्टिकोण प्रतिपादित करता है, अपितु उसकी गरिमा भी प्रदान करता है। चरमोत्कर्ष प्रारम्भ तथा अंत के बीच में एक सेतु का कार्य करता है अर्थात प्रारंभ तथा अंत के मध्य एक चमचमाती रेखा है।
अपकर्ष (Retrogression of the Essay)
निबंध का अपकर्ष बहुत महत्वपूर्ण है और कठिन भी क्योंकि निबंधकार को निबंध की सामग्री से संबंधित सूत्रों को पिरोना पड़ता है। यहाँ बिखराव की नहीं कसाव की आवश्यकता होती है, विस्तार की नहीं समेटने की जरूरत होती है। निबंध की इस अवस्था में विषय को समेटने की प्रक्रिया में अनेक विचार-बिन्दुओं की पुनरावृत्ति की संभावना रहती है और यह निबंध की गरिमा और रोचकता को कम कर सकती है। अतः निबंधकार के लिए यह आवश्यक है कि वह चरमोत्कर्ष की अवस्था में प्रस्तृत किए गए तर्कों एवं विश्लेषणों को बार-बार दोहराए नहीं, अन्यथा तर्कों की पुनरावृत्ति से पाठक के हृदय में जो स्वीकृति का भाव बना है, उसमें न्यूनता आ जाएगी। यह हानिकारक होगा तर्कों एवं प्रस्तुतीकरण की विश्वसनीयता के लिए। यह भी ध्यान रहे कि चरमोत्कर्ष के पश्चात अंत एकाएक न हो। निबंध के एकाएक समाप्त हो जाने से उसकी प्रभविष्णुता पर प्रश्न चिह्नन लग जाता है।
उपसंहार (Conclusion of the Essay)
निबंध का अंत कैसा होना चाहिए? इस सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किए हैं। कुछ लेखकों का कहना है कि अंत का अनुच्छेद ही अंतिम प्रभाव डालता है। अतः उसमें प्रयुक्त विचारों का समुच्चय या सारांश परिलक्षित होना चाहिए, किन्तु कुछ विद्वानों का यह मत है कि अंत में मुख्य बिन्दु पर जोर दिया जाए और वही पाठकों के ध्यानाकर्षण का आधार बने। प्रारम्भ से लेकर अंत तक जिस विचार बिन्दु या दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत किए हैं, वही सर्वोपरि महत्व प्राप्त करें। इधर-उधर भटकने से विचारों के जंगल में खो जाने की सम्भावनाएँ बढ़ जायेंगी और निबंध की अर्थवत्ता ही समाप्त हो जाएगी। जिस विचारबिन्दु या समस्या को उठाया गया है, वह असमाधान के भवर में न फँसे, यह आवश्यक है।
उद्देश्य
मानवकृत कोई भी रचना निरूद्देश्य नहीं हो सकती। उसका निश्चित रूप से कोई उद्देश्य होगा। सोद्देश्य रचना में ही संदेश देने की क्षमता होती है, किन्तु यदि उपदेशात्मकता का सहारा लिया जाये तो उपयुक्त नहीं होगा। निबंध की कलात्मकता को उसके सौंदर्य को नष्ट किए बिना 'संदेश' देना ही निबंध के सुंदरता में अभिवृद्धि करना होगा। उपदेशात्मकता से एक तो लेखक का व्यक्तित्व हावी होता है और दूसरे इससे किसी विचार विशेष के प्रचार का आरोप लगता है। जैसे दही में मक्खन की संस्थिति होती है और मथने से वह प्रकट होती है उसी प्रकार 'संदेश' विचार मंथन से निकले, तभी निबंध के कलात्मक सौंदर्य की रक्षा हो सकेगी।
विषयवस्तु की शैली
शैली व्यक्तित्व की परिचायक होती है। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में अपनापन होता है, मौलिकता होती है और इसकी अपरिहार्यता से कोई इंकार नहीं कर सकता। शैली की छाया कृति पर पड़ती ही है। शैली दुर्निवार्य है। निबंधकार की भी अपनी एक शैली होती है और उसी के माध्यम से उसकी पहचान बनती है और उसी के माध्यम से वह अपने विचारों को कृति के रूप में मूर्त रूप दे पाता है। किसी भी निबंधकार की शैली अभिव्यक्त होती है विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण से। विषय के प्रस्तुतीकरण की शैली के आधार पर लेखक के स्तर का आकलन किया जाता है। यह जाना जाता है कि बौद्धिकता, कलात्मकता और भावाभिव्यंजना के धरातल पर कहाँ खड़ा है?
विषयवस्तु का प्रस्तुतीकरण
किसी भी विद्या के साहित्यकार एवं पाठक में विचारों की दृष्टि से कोई विशेष अंतर नहीं होता। थोड़ा-बहुत तो अंतर होता ही है, किन्तु सबसे बड़ा अन्तर होता है विषय के प्रस्तुतीकरण में। सामान्य व्यक्ति जिन विचारों को अभिव्यक्त नहीं कर पाता, उनको निबंधकर अपनी तर्कशीलता और अभ्यास से इस प्रकार रखता है कि सामान्य व्यक्ति को यही प्रतीत होता है कि लेखक ने मानों उसके विचारों को ही शब्द रूप दिया है। जब पाठक लेखक के विचारों के साथ संबंध स्थापित कर लेता है या वह रस लेना प्रारंभ कर देता है, तो समझना चाहिए कि लेखक अपने उद्देश्य में सफल हुआ है। विचारों की समानता को जब लेखक पाठक तक अपनी लेखनी के माध्यम से सम्प्रेषित कर सकने में सफल हो जाता है तो वे दोनों रस निष्पत्ति की प्रक्रिया का अपने-अपने ढंग से आस्वादन करते हैं। इस रसास्वादन की प्रक्रिया में लेखकों की प्रस्तुतिकरण शैली बड़ी अहम् भूमिका अदा करती है। उसे जाने बिना निबंध के सौंदर्य और उसकी प्रभविष्णुता का हम अंदाज नहीं लगा सकते।
विषय के सम्यक् प्रस्तुतीकरण में लेखक की तर्क बुद्धि काम करती है। पाठकवर्ग को अपने दृष्टिकोण से सहमत कराने के लिए उसे तथ्यों का सम्यक् ज्ञान और उसे विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए तर्कों का प्रस्तुतीकरण अत्यन्त आवश्यक है। तर्क प्रस्तुत करते समय निबंधकार को अपनी दिशा तथा विचारों की स्पष्टता की ओर ध्यान करना होगा। उसे विषय के पक्ष तथा विपक्ष में उठाये जाने वाले तर्कों की जानकारी रखनी होगी और निष्पक्ष रूप से तार्किकता का सहारा लेना पड़ेगा ताकि वह अपने दृष्टिकोण से अन्यों को सहमत कर ले।
विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण में तारतम्यता का बहुत योगदान रहता है। तथ्यों की प्रस्तुति में यदि क्रमबद्धता का अभाव रहा, तो प्रभाव कम पड़ेगा और विचार बिखरे-बिखरे लगेंगे। अतः यह आवश्यक है कि विचारों और तर्कों की क्रमबद्धता प्रारंभ से अंत तक रहे।
विचारों के संतुलन के लिए यह आवश्यक है कि विचार सामग्री की पूर्व योजना बनाई जाए। इसके अभाव में सामग्री का संगठन नहीं हो सकता। जैसे शारीरिक सौन्दर्य के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक अंग सुगठित हो, उसी प्रकार हर विचार या तर्क के लिए निश्चित स्थान एवं सीमा निर्धारित होने से ही प्रस्तुतीकरण आकर्षक एवं मनग्राही हो सकेगा।
सामग्री के गठन में निबंध के विकास की सभी स्थितियों के लिए उपयुक्त अनुपात में विषय सामग्री का वितरण परमावश्यक है। लेखक अपनी संपूर्ण योग्यता किसी एक स्थिति विशेष पर ही न खर्च कर दे। उसे अपनी बौद्धिकता एवं तर्कशीलता का वहीं विशेष रूप से परिचय देना होगा, जहाँ उसकी बहुत जरूरत है।
उदाहरण के लिए चरमोत्कर्ष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तर्क को प्रस्तुत करना होगा। प्रारंभ तथा अंत में उसे प्रतिपादित करना उसकी अर्थवत्ता और महत्ता को कम करना होगा।
निबंध की भाषा (Language of Essay)
भाषा विचारों की वाहक है। उसके सौन्दर्य पर अवलंबित है निबंध के सन्देश की संप्रेषणीयता। भाषा की प्रभावशीलता की अनुभूति होती है पाठक को उसमें व्याप्त विचारों की स्पष्टता से और भावानुरूप शब्दों के सम्यक् प्रयोग से। सटीक भाषा या स्पष्ट भाषा निबंध में गत्यात्मकता उत्पन्न करती है और विचार-प्रभाव को आगे बढ़ाती है। कसाव भाषा को गरिमा प्रदान करता है और प्रभावोत्पादन में सहायक होता है। ध्यातव्य है कि दुर्बोध एवं क्लिष्ट शब्द भाषा के सौंदर्य में अभिवृद्धि नहीं करते अपपितु विचार प्रवाह की गति को धीमा करते हैं। सरल एवं बोधगम्य भाषा ही रसात्मकता उत्पन्न करती है और वही उसका परम उद्देश्य भी है।
भाषा के सौंदर्य को बढ़ाते हैं सुगठित वाक्य। ढीले, असम्बद्ध, तारतम्य रहित, अध्वन्यात्मक तथा जटिल वाक्य भावगम्यता को कम करते हैं और सम्यक् रूपेण सम्बद्ध छोटे तथा बोधगम्य वाक्य प्रभावान्वित में बाधा पहुँचाते हैं। अतः यह आवश्यक है कि निबंध की भाषा में वाक्य रचना की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। भाषा की प्रांजलता, स्पष्टता, बोधगम्यता तथा सरलता के माध्यम से ही निबंध के कथ्य की सार्थकता सिद्ध होगी।
प्रभावान्विति
निबंध की सफलता प्रभावान्वित में निहित है।
निबंध (essay writing) के पठन के पश्चात यदि पाठक कुछ देर के लिए सब कुछ विस्मृत कर उसके कथ्य में डूब जाता है, उसके संदेश को हृदयंगम करने के लिए बाध्य हो जाता है, तो निबंध सफलता की कसौटी में खरा उतरा है, ऐसा माना जायेगा। पाठक की इस प्रकार की मनः स्थिति बने, यही निबंधकार का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। लक्ष्यपूर्ति के लिए उपर्युक्त सुझाव उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
निबंध के प्रकार (Types of Hindi Essay)
हिन्दी निबंध के कई प्रकार है। ये समाज और दुनिया के विभिन्न विषयों पर लिखे जाते हैं।
- साहित्यिक एवं सांस्कृतिक निबंध
- लोकोक्तियों पर आधारित निबंध
- भारत की विविध समस्याएँ
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- नारी संबंधी निबंध
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