मानव सभ्यता के इतिहास में कुछ चरित्र ऐसे होते हैं, जो सभ्यता और संस्कृति को नई दिशा देते हैं। ऐसे महापुरूष युग को बदलने की क्षमता रखते हैं। इनका जीवन साधारण मानव की भाँति नहीं होता है, अपितु वे दुसरों के लिए, सत्य के लिए जीते हैं और संघर्ष करते हैं। भारतीय इतिहास में एक ऐसे ही व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्हें महात्मा का विशेषण दिया गया है। महात्मा गांधी
(Essay on Mahatma Gandhi in Hindi) राष्ट्रपिता इसीलिए कहलाते हैं, क्योंकि संपूर्ण राष्ट्र को स्वतंत्रता, करूणा और अहिंसा की पैतृक संपत्ति दी। युग-पुरूष गांधी संपूर्ण विश्व को शांति और मैत्री का पाठ पढ़ाने आए थे।
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात-काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता जी का नाम पुतली बाई था। आपका नाम मोहनदास गांधी था, इसलिए गांधी जी मोहन दास करमचंद गांधी कहलाए। इनके पिता राजकोट राज्य के दीवान थे। इसलिए इनका बाल्यकाल भी वहीं व्यतीत हुआ। माता पुतलीबाई बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की एवं सती-साध्वी स्त्री थीं, जिनका प्रभाव गांधी जी पर आजीवन रहा।
गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। कक्षा में ये साधारण विद्यार्थी थे। श्रेणी में किसी सहपाठी से बातचीत नहीं करते थे। अपने अध्यापकों का पूर्ण सम्मान करते थे। इन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में ही प्राप्त की। सन् 1886 को सत्रह वर्ष की अवस्था में ये वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड जाते समय इनकी माता ने इनसे तीन वचन लिए- माँस न खाना, शराब न पीनना, ब्रह्मचर्य रखना। इन्होंने इन वचनों का पालन किया। इनका विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा बाई से हो गया।
सन् 1891 में बैरिस्टर बनकर गांधी जी भारत आ गए और मुंबई में वकालत शुरू की। इनकी वकालत अपनी किस्म की ही थी। गांधी जी झूठे मुकद्दमें लेने से इनकार कर देते थे और ग़रीबों के मुक़द्दमों की पैरवी मुफ्त करते थे। सन् 1893 में ये सेठ अब्दुल्ला के मुक़द्दमें की पैरवी के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका में लाखों भारतीय रहते थे, जिनकी दशा बहुत शोचनीय थी। उनके साथ अमानवीय और अपमानपूर्ण व्यवहार किया जाता था। गांधी जी ने उनकी राजनीतिक और समाजिक दशा सुधारने का यत्न किया और उनके लिए स्कूल खोले। व्यक्तिगत रूप से इन्हें अंग्रेजों के क्रूर कृत्यों का शिकार होना पड़ा। ये
रेल गाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से निकाल दिए गए, घोड़ा गाड़ी में सफर करने की सजा भुगतनी पड़ी। गांलियों की बौछार और पत्थरों की मार से प्राणघातक हमले करने की साजिशें की गई। गोरी सरकार के विरूद्ध हुई क्रांति में जब अंग्रेजों को हताहत किया गया तो महामानव गांधी ने घृणा और अत्याचार के बदले उन्हें प्यार और सेवा का फल दिया। अपमानित करने वालों को इन्होंने सम्मान दिया। लेकिन मदांध गोरी सरकार पर जब इन कृत्यों का भी कोई असर न हुआ तो गांधी जी ने वहाँ 'नैटाल इंडियन कांग्रेस' की स्थापना की। वहाँ फोनिक्स में एक आश्रम की स्थापना कर 'इंडियन ओपिनियन' नामक पत्र भी प्रकाशित किया, इनके अनेक प्रयासों के परिणामस्वरूप भारतीयों पर उनके काले-कानूनों के प्रतिबंध हटा दिए गए।
अफ्रीका में गांधी जी लगभग बीस वर्ष रहे। सन् 1914 में जब महायुद्ध आरंभ हुआ तो गांधी जी घायलों की सेवा करने के लिए इंग्लैंड चले गए। इनके भारत लौटने के साथ ही देश के राजनीतिक जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ था। सन् 1919 में इन्होंने देश के राष्ट्रीय आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया और नए मार्ग पर चलाया।
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रोलेट एक्ट के विरोध में बैशाखी के पर्व पर जलियाँवाला बाग़ सैंकड़ों निहत्थों, बाल-वृद्धों, नर-नारियों पर हुई गोलियों की बौछार से लाल हो उठा। इससे गांधी जी हृदय भारतीयों के साथ क्रंदन कर उठा। अगस्त 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ, जिसमें देश के किसान, अध्यापक, विद्यार्थी, वकील तथा सामान्य जन कूद पड़े। विदेशी सरकार काँप उठी।
30 जनवरी, 1948 को जब गांधी जी बिरला मंदिर से प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे थे तो मराठे हिंदू नाथूराम गोडसे ने इन्हें तीन गोलियों से छलनी कर दिया। बापू ‘राम-राम‘ कहते हुए नीचे गिर गए और सदा की नींद सो गए। अहिंसा का पुजारी आखिर हिंसा की बलि हुआ। नेहरू जी के शब्दों में -
''बापू मरे नहीं, वे जो प्रकाश मानव के हृदय में रख गए हैं, वह सदा जलता रहेगा। इसलिए वे सदा अमर हैं।''
महात्मा गांधी का दर्शन और जीवन व्यवहारिक था। इन्होंने अहिंसा एवं सत्य का जो मार्ग विश्व के सामने रखा, वह इनके अनुभव और प्रयोग पर अधारित था। वे एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे, जो भेद-रहित समाज हो तथा जिसमें गुण और कर्म के आधार पर ही व्यक्ति को श्रेष्ठ माना जाए। महात्मा गांधी विचारक तथा समाज-सुधारक थे। उपदेश देने की अपेक्षा वे स्वयं उस मार्ग पर चलने पर विश्वास रखते थे। ईश्वर के प्रति इनकी अटूट आस्था थी और बिना प्रार्थना किए ये रात्रि को नहीं सोते थे। इनका जीवन और दर्शन आज भी विश्व का मार्ग दर्शन करता है। राजनीति के छल-कपट से इनका दर्शन दूर था। इनकी राजनीति धर्म पर अधारित थी। इनके शब्दों में -
''मेरे लिए धर्म से रहित राजनीति की कोई सत्ता नहीं।'' किसी भी गंभीर समस्या का समाधान से सत्य और अहिंसा के माध्यम से ही करना चाहते थे। सत्य और अहिंसा को ये दीपक मानते थे -
''यह दीपक ले लो और सब कुछ साफ़-साफ़ सूझ जाएगा और साँप-बिच्छुओं से रक्षा हो जाएगी।''
बापू के लिए स्वराज्य कोई किताबों पर छपा शब्द नहीं था, वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वराज्य के चिंतन और मूल भावना को देखना चाहते थे। वे देश में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि में क्रांतिकारी व्यवस्था चाहते थे।
ऐसा कोई भी सामाजिक विषय नहीं था, जिससे उनका संबंध न रहा हो। एकता, अछूतोद्धार, शिक्षा, राष्ट्रभाषा, ग्राम-उत्थान, नारी-शिक्षा, मद्य-निषेध, चिकित्सा, चरखा-खादी, स्वच्छता आदि विषयों का आधार उनका मानवतावादी दर्शन था।
इस महामानव की मृत्यु पर इनके प्रशंसक विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा था -
''आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास भी नहीं होगा, कि ऐसा भी कोई महापुरूष हाड़-माँस के रूप में इस पृथ्वी पर रहा होगा।''